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________________ सातवा पर्व किया, इसलिये इस जन्ममें तौ हम सब बातोंमें इच्छापूर्ण हैं अब जो महा संग्राममें प्राणोंको तमें तो यह शरवीरोंकी रीति ही है परंतु क्या हम लोकोंसे यह कहा कि माली कायर होकर पीछे हट गया अथवा वहां ही मुकाम किया यह निंदाके लोकोंके शब्द धीरवीर कैसे सुनें ? धीरवीरोंका चित्र क्षत्रिय व्रतमें सावथान है भाईको इस भांति कह आप वैताड़के ऊपर सेना सहित क्षणमात्रमें गये, सब विद्याधरों पर आज्ञापत्र भेजे सो कैएक विद्याधरने न माने, उनके पुर ग्राम उजाड़े अर उद्यानके वृक्ष उपार डारे, जैसे कमलके बनको मस्त हाथी उखाडे तैसे राक्षस जातिके विद्याधर महा क्रोधको प्राप्त भये तब प्रजाके लोग मालीके कटकसे डरकर कांपते संते रथनूपुर नगरमें राजा सहस्रारके शरणे गये। चरणोंको नमस्कारकर दीन वचन कहते भए कि हे प्रभो ! सुकेशका पुत्र माली राक्षसकुली समस्त विजयार्धमें आज्ञा चलावे है हमको पीड़ा करें है। आप हमारी रक्षा करो। तब सहस्रारने आज्ञा करी कि विद्याथरो! मेरा पुत्र इंद्र है उसके शरण जाय बीनती करो वह तुम्हारी रक्षा करनेको समर्थ है जैसे इन्द्र स्वर्गलोककी रक्षा करे है सैसे यह इंद्र समस्त विद्याधरोंका रक्षक है। सब समस्त विद्याधर इन्द्रपे गए हाथ जोड़ नमस्कारकर सर्व वृत्तांत कहा । तब इन्द्र माझी पर क्रोधायमान होय गर्वकर मुलकते संते सर्व लोकोंसे कहते भए । कैसे हैं इन्द्र ? पास धरा जो बज्रायुध उसकी ओर देख लाल भए है नेत्र जिनके, मैं लोकपाल लोककी रक्षा करू मो लोकका कण्टक होय ताहि हेरकर मारू अर वह श्राप ही लड़नेको आया तो इस समान और क्या ? रखके नगारे बजाए। वे वादित्र जिनके श्रवणसे मत्त हाथी गज बंधनको उखाडे समस्त विद्याधर युद्धका साजकर इन्द्रपै आए, वकतर पहरे हाथमें अनेक प्रकारके आयुथ महा हर्षसे धरते संते कई एक रथोंपर कइ एक घोड़ोंपर चढ़े तथा हस्ती ऊंट सिंह व्याघ्र स्याली तथा मृग हंस छेला बलद मींडा इत्यादि मायामयी अनेक वाहनोंपर बैठि पाए, कैएक विमानमें बैठे. कैएक मयूरोंपर चढे, कैएक खच्चरोंगर चढे अनेक आए। इन्द्रने जो लोकपाल थापे हैं, ते अपने २ वर्गसहित नाना प्रकारके हथियारों कर युक्त भोह टेढ़ी किये आये भयानक हैं मुख जिनके । पाठ हस्तीकानाम ऐरावत उसपर इन्द्र चढे, वकतर पहिरे शिरपर छत्र फिरते हुए, रथनूपुरसे बाहिर निकसे । सैनाके विद्याधर जो देव कहावै इनके अर लंकाके राक्षसोंके महायुद्ध प्रवरखा। हे श्रेणिक ! ये देव अर राक्षस समस्त विद्याथर मनुष्य हैं, नमि विनमिके वंशके हैं ऐसा युद्ध प्रवरता जो कायर जीवोंसे देखा न जाय, हाथियोंसे हाथी, घोड़ोंसे घोड़े, पयादोंसे पयादे बड़े, सेल मुद्गर सामान्य चक्र खड्ग गोफण मूसल गदा कनक पाश इत्यादि अनेक आयुधों से युद्ध भया । सो देवोंकी सेनाने कछुएक राक्षसोंका बल घटाया तब बानरवंशी राजा सूर्यरज रचरज राक्षसवंशियोंके परम मित्र राक्षसोंकी सेनाको दबा देख युद्धको उद्यमी भये सो इनके युद्धसे समस्त इन्द्रकी सेनाके लोक देव जातिके विद्याधर पीछे हटे । इनका बल पाय राक्षस कुली विद्याधर लंकाके लोक देवोंसे महायुद्ध करते भए । शस्त्रोंके समूहसे आकाशमें अंधेरा कर डारा राक्षस अर पानरशियोंसे देवोंका वल हरा देख इन्द्र आप युद्ध करणेको उद्यमी भए समस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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