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________________ ५४ पद्म-पुराण अथानन्तर इस कुलमें महोदधि नामा राजा भए तिनके विद्युत्प्रकाशा नामा राणी भई, वह राणी पतिव्रता स्त्रियोंके गुणकी निवान है जिसने अपने विनय अर अंगसे पतिका मन प्रसन्न किया है, राजाके सुन्दर सैकड़ों रानी है तिनकी या राणी शिरोभाग्य है महा सौभाग्यवती रूपaat ज्ञानवती हैं उस राजाके महा पराक्रमी एकसौ आठ पुत्र भए तिनको राज्यका भार दे राजा महासुख भोगते भए । मुनिमवू नायक समय में बानरवंशे में यह राजा महोदधि भयं अर कामे विद्युतकेश र महोदावे के परम प्रीति भई । ये दोऊ मकल प्राणियोंके प्यारे अर आपस में एकचित्त, देह न्यारी भई तो कहा, सो विद्युतकश मुनि नये, यह वृत्तान्त सुन महोदधि भी arit भए, यह कथा सुन राजा श्रेणिकने गौतम स्वामीसे पूजा - "हे स्वामी ! राजा विद्युतकेश किस कारण पैरी नए, तब गौतम स्वामीने कहा कि एक दिन विद्युतकेश प्रमद नामा उद्यान में क्रीड़ा करनेको गये। जहां क्रीड़ाके निवास अति सुन्दर हैं, निर्मल जलके भरे सरोवर तिनमें कमल फूल रहे हैं अर सरोवरमें नावें डार राखी हैं, वन में ठौर ठोर हिंडोले हैं, सुन्दर वृक्ष सुन्दर वेल घर क्रीड़ा करनेके लिये सुवर्णके पर्वत, जिनके रत्नोंके सिवाण, वृक्ष मनोज्ञ फल फूलों से मंडित, जिनके पल्लव लता श्रति से हैं पर लताओंसे लफ्टि रहे हैं ऐसे बनमें राजा विद्युतकेन राशियोंके समूह में क्रीड़ा करते हुए। वह राणी मनको हरणहारी पु प दिकके चूटने में श्रासक्त हैं जिनके पल्लव समन कोमल लुगन्ध हप्त, मुखको सुगन्धसेर जिनपर भ्रमे हैं, क्रीड़ाके समय राणी श्रीचन्द्र के कुच एक नशों विदार तर राणी खेद खिन्न भई, रुधिर आ गया । राजाने रागोका दिलासा देयकर अज्ञान भावते बानरको बाणसे चींवा सो बानर घायल होय एक गग चारण महामुनिके पास जाय पड़ा । वे दयालु वानरको कांगा देख दयाकर पंच नमोकार मन्त्र देते भए सो बानर मरकर उदधिकुपर जातिका भवनवाली देव उपजा । यहां बनमें चानरके मरण पीछे राजाके लोक करबान मर रहे थे जो उदधिकुमारने अवधैिसे विचारकर वानरों को मारो जानमानी वानरोंकी सेना बनाई वह बानर ऐसे बने जिनकी दाढ विरल बदन विकराल यह विकराल सिंदूर सारिखा लाल सुखों डराने शब्द को कहते हुवे आये | कैएक हाथ में पर्वत परं कैएक मूलसे उपारे वृक्षों को थरें, कैंएक हाथसे वरतीको कूटते हुये, कईएक आकाश में उछलते हुई, क्रोके भारकर रौद्र हे अंग जिनका उन्होने 'राजाको घेरा, कहते भए रे दुराचारी सम्हार, तेरी मृत्यु आई है । तू वानरोंको मारकर अव किसी शरण जायगा ! तत्र विद्युतकेश डरा पर जाना कि यह बानरोंका बल नाहीं, देवमाया है तब देहकी आशा छोड़ महामिष्ट बाणी करके बिनती करता भया कि – “महाराज ! आज्ञा करो, आप कौन हो, मदेदीप्यमान प्रचंड शरीर जिनके यह बानरोंकी शक्ति नाहीं । आप देव हैं ।" तब राजाको अति विवान देख महोदधि कुमार बोले “हे राजा ! बानर पशु जाति जिनका स्वभाव ही चंचल है उनको तैन स्त्रीके अपराधसे हते सो मैं साधुके प्रसादसे देव भवा । मेरी विभूति तू देख ।" राजा कांपने लगा हृदयावर्षे भय उपजा, रोमांच होय आए तब महोदधि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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