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________________ एकसौइ.स वा पर्व है ऐसा कौनका भाग्य जाके घर यह पुण्याधिकारी आहार कर कौनको पवित्र करे ? ताके बडे भाग्य जाके घर पाहार लेय, यह इन्द्र समान रघुकुलका तिलक अक्षोभ पराक्रमी शीलका पहाड रामचन्द्र पुरुषोत्तम है, याके दर्शन कर नेत्र सफल होंय मन निर्मल होय जन्म सफल होय देही पायेका यह फल जो चारित्र पालिये । या भांति नगरके लोक रामके दर्शन कर आश्चर्यको प्राप्त भए नगरमें रमणीक ध्वनि भई श्रीराम नगरमें पैठे अर समस्त गली अर मार्ग स्त्री पुरुषनिके समूह कर भर गया, नर नारी नानाप्रकारके भोजन हैं घरमें जिनके प्रासुक जलकी भारी भरे द्वारापेखन करे है निर्मल जल दिखावते पवित्र धोवती पहिरे नमस्कार करे हैं। हे स्वामी ! अत्र तिष्ठो अन्न जल शुद्ध है या भांति शब्द करे हैं नाही समावे हृदयमें हर्ष जिनके हे मुनींद्र, जयवंत होवो हे पुण्यके पहाड, नादी विरदो इन वचनों कर दशोदिशा पूरित भई, घर घर में लोग परस्पर बात . करे हैं स्वर्णके भाजनमें दुग्ध दधि घृत ईखरस दाल भात क्षीर शीघ्र ही तैयार कर राखो, मिश्री मोदक कपूर कर युक्त शीतल जल सुन्दर पूरी शिखिरणी भली भांति विधिसे राखो। या भांति नर नारिनके वचनालाप तिन कर समस्त नगर शब्द रूप होय गया महा संभ्रमके भरे जन अपने बालकोको न विलोकने भए मार्गमें लोक दोडे सो काहूके धक्के से कोई गिर पडे या भांति लोकनि के कोलाहलकर हाथी खूटा उपाडते भए अर गाममें दोडते भए तिनके कपोलोंसे मद झरिवे कर मार्गमें जलका प्रवाह हो गपा हाथिनकै भयसे घोडे घास तज बन्धन तुडाय २ भाजे अर हींसते भए सो हाथी घोडनिकी घमसाण कर लोक व्याकुल भए तब दानमें तत्पर राजा कोलाहल शब्द मुन मंदिरके ऊपर आय खडा रहा दूरसे मुनिका रूप देख मोहित भया राजाके मुनिसे राग विशेष परन्तु विवेक नहीं सो अनेक सामन्त दौडाए अर माज्ञाकरी स्वामी पधारे हैं सो तुम जाय प्रणामकर बहुत भक्ति विनती कर यहाँ आहारको लावो सो सामन्त भी मूर्ख जाय पायन पड कहते भए हे प्रभो, राजाके घर भोजन करहु वहां पवित्र सुन्दर भोजन हैं अर सामान्य लोकनिके घर आहार विरस आपके लेयवे योग्य नहीं अर लोको को मने किये कि तुम कहा दे जानो हो ? यह वचन सुन कर महा मुनि आपको अन्तराय जान नगरसे पीछे चले तब सब लोक अति व्याकुल भए । वे महा पुरुष जिन आज्ञाके प्रतिपालक आचारांग सूत्र प्रमाण है आचरण जिनका आहार के निमित्त नगर में विहार कर अन्तराय जान नगरके पीछे वनमें गये। चिद्रपध्यानमें मग्न कायो सर्ग धर तिष्ठ वे अद्भुत अद्वितीय सूर्य मन अर नेत्रको प्यारा लागे रूप जिनका नगरसे विना आहार गए तब सब ही खेदखिन्न भये ॥ इतिश्रीरविषेणाचार्यविरचित महा पद्मपुगण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषावनिकावि राममुनिका आहारके अर्थि नगर मेंआगमन बहुरि लोकनिक कोलाहलतै अन्तराय पाछा वनविणे आना वर्णन करनेवाला एकसौ बीसवां पर्व पूर्ण मया ॥१२॥ अथानन्तर राम मुनियों में श्रेष्ठ बहुरि पंचोपवासका प्रत्याख्यान कर यह अवग्रह धारते भए कि वनमें कोई श्रावक शुद्ध आहार देय तो लेना नगरमें न जाना या भांति कांतारचर्याकी प्रतिज्ञा करी सो एक राजा प्रतिनन्द बाको दुष्ट तुरंग लेय भागा सो लोकनिकी दृष्टिसे दूर गया तब राजाकी पटरानी प्रभवा अतिचिन्तातुर शीघ्रगामी तुरंगपर आरूढ राजाके पीछे ही सुभटनिके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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