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________________ छठा पर्व सके दांत द डेमके फूतोंसों रंग २ नमाशा देखे अर उनके मुख में सोनके तार लगाय २ कौनहल करे । वे आपस में परस्पर जू का तिनके तमाशे देखे अर वे आपसमें स्नेह करें वा कलइ करें तिनके तमाशे देखे । राजाने ते कपि पुरुषों को रक्षा निमित्त सोंपे पर मीठे २ भोजनसे उनको पोखे । इन बानरोंको साथ लेकर किहकंद पर्वत पर चढे । राजाके चित्स सुन्दर वृक्ष सुन्दर बेलि पानीके नीझरणों से हरा गया । तहां पर्वतके ऊपर विषमता रहित विस्तीर्ण भूमि देखी । वहां किहकुंद नामा नगर बपाया । जिसमें बैरियोंका मन भी न प्रवेश कर सके। चौदह योजन लम्बा अर जो परिक्रमा करिये तो बियालीस योजन कछु इक अधिक होय जाके मणियोंके कोट रत्नोंके दरवाजे वा रत्लोंके महल रत्नोंका कोट इतना ऊंचा है कि अपने शिखरसे मानो आकाशसे ही लग रहा है अर दरवाजे ऊचे मणियोंसे ऐसे शोभे हैं मानों यह अपनी ज्योतिसे थिरीभूत होय रहे हैं घोंकी देहली पद्मराग मणिकी है सो अत्यन्त लाल है मानों यह नगरी नारी स्वरूप है सो तांबूल कर अपने अपर ( होंठ) लाल कर रही है अर दरवाजे मोतियों की मालाकर युक्त हैं सो मानों समस्त लोककी सम्पदाको हंसे हैं अर महलोंके शिखर पर चंद्रकांत मणि लग रहे हैं जिससे रात्रि में ऐसा भात है मानों अंधेरी रात्रिमें चंद्र उग रहा है अर नाना प्रकारके रत्नोंकी प्रभाकी पंक्तिकरि मानों उचे तोरण चढ़ रहे हैं वहां घरों को पंक्ति विद्यादरोंकी बनाई हुई बहुत शोभे है घरोंके चौक मणियोंके हैं अर नगर राजमाग बाजार बहुत सीधे हैं उनमें वक्रता नाहीं, अति विस्तीर्ण हैं मानों रत्नके नागर की हैं । सागर जलरूप है यह थलरूप है अर मंदिरोंके ऊपर लोगोंने कबूतरोंके निवास निमित्त नौल मणियोंके स्थान कर राखे हैं सो कैसे शोभे हैं मानों रत्नोंके तेजने अंधकार नगरीसे काट दिया है सो शरण श्रायकर मामीप पड़ा है इत्यादि नगरका वर्णन कहां तक करिये इन्द्र के नगर समान बह नगर जिसमें राजा श्रीकण्ठ पद्मामा राणीसहित जैसे स्वर्गविष शचीसहित सुरेश रमे है तेसे बहुत काल रमते भए । जे वस्तु भद्रशाल वनमें तथा सोमनस वनमें तथा नन्दनमें न पाइये वह राजाके वनमें पाई जावे । एक दिन राजा महल ऊपर विराज रहे थे सो अष्टानिकाके दिनों में इंद्र चतुरनिकायके देवतावोंसहित नंदीश्वर द्वीपको जाते देखे अर देवोंके मुकुटोंकी प्रमाके समूहसे आकाशको अनेक रंग रूप ज्योति सहित देखा अर बाजा बजानेवालोंके समूहसे दशों दिशा शब्दरूप देखीं, किसीको किसीका शब्द सुनाई न देवे, कई एक देव मायामई हमोंपर तथा तुरंगोंपर तथा हाथियोंपर अर अनेक प्रकार वाहनोंपर चढ़े जाते देखे देवोंके शरीर की सुगंधतासे दशों दिशा व्याप्त होय गई तव राजा ने यह अद्भुत चरित्र देख मनमें विचारा कि नंदीश्वर द्वीपको देवता जाय हैं । यह राजा भी अपने विद्याधरों सहित नंदीश्वर द्वीपको जानेकी इच्छा करते भये, विना विवेक विमानार चढ़कर राणीसहित आकाशके पथसे चले परन्तु मानुपोत्तरके मागे इनका विमान न चल सका देवता चले गये । यह अटक रहे तब राजाने बहुत बिलाप किया मनका उत्साह भंग हो गया कांति और ही हो गई। मनमें विचारे है कि हाय ! बड़ा कष्ट है हम होन शक्तिके धनी विद्याधर मनुष्य अभिमानको धरै सो धिक्कार है हमको । मेरे मनमें यह थी कि नन्दीश्वर द्वीपमें भगवानके अकृत्रिम चैत्यालय हैं उनका मैं भावसहित दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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