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________________ Tho hetho एकसौतनवा पर्य ५३१ अर लक्ष्मण आपको कृतार्थ मानता भया मानों सब लोक जीता हर्षसे फूल गए हैं लोचन जिसके, थर राम मनमें जानता भया मैं सगर चक्रवर्ती समान हूं पर कुमार दोनों भीम अर भगीरथ समान हैं । राम वज्रजंबसे अति प्रीति करता भया जो तुम मेरे भामंडल समान हो अयो. ध्यापुरी तो पहले ही म्वर्गपुरी समान थी सो बहुरि कुमारनिक अायब कर अति शोभायमान भई जैसे सुन्दर स्त्री महजही शोभायमान होय अर शृंगार कर अति शोभाको पावै, श्रीराम लक्ष्मण सहित अर दोऊ पुत्रों सहित सूर्य की ज्योति ममान जो पुष्पक विमान उसमें विराजे सूर्यकी समान है ज्योति जिनकी राम लक्ष्मण अर दोऊ कुमार अद्भुत आभूषण पहिरे सो कैसी शोभा बनी है मानों सुमेरुके शिखरपर महामेव विजुरीके चमत्कार महित तिष्ठा है। भावार्थ-विमान तो सुमेरुका शिखर भया र लक्ष्मण महामेवका स्वरूप भया भर राम तथा राम के पुत्र विद्युत समान भये सो ये चढकर नगरके वाद्य उद्यान में जिनमन्दिर हैं तिनके दर्शनको चल सो नगरके कोटपर ठौर २ ध्वजा चही है तिनको देखते धीरे २ जाय हैं लार अनेक राजा, कई हाथियों पर चढे केई घोडों पर के.ई रथों पर चढे जाय हैं अर पियादोंके समूह जाय हैं, धनुष वाण इत्यादि अनेक आयुध अर ध्वजा छत्रनिकर सूर्य की किरण नजर नहीं पडे हैं अर स्त्रीनिक समूह झरंखनमें बैठी देखे हैं । लव अंकुश के देखबेका सबस्कूि बहुत कौतूल है नेत्ररूप अंजुलिनिकर लवणांकुशकं सुन्द तारूप अमृतका पान कर हैं सो तृप्त नाहीं होय हैं एकाग्रचित्त भई इनको देखे हैं अर नगर में नर नारिनिकी ऐसी भीड भई काहूके हार कुडलकी गम्य नाहीं अर नारी जन परस्पर यार्ता कर हैं कोई ब.हे है-हे माता ! टुक मुख इधर कर मोहि कुमारनिये देखिका कौतुक है । हे अखण्डकौतुके तूने तो धनी लग देखे अब हमें देखने देवो अपना सिर नीचा कर ज्यों हमको दीखै कहा ऊँचा सिर कर रही है, कोई कहे है-हे सखि ! तेरे सिरके वेश विखर रहे हैं, सो नीके समार अर कोई कहे है-हे क्षिप्तमानसे कहिये एक ठोर नाहीं चित्त जाका सो तू कहा हमारे प्राणों को पीडे है तू न देखें यह गर्भवती स्त्री खडी है पीडित है कोऊ कहे टुक परे होहु अचेतन होय रही है कुमारोको न देखने देहै यह दोनों रामदेवके कुमार रामदेव के समीप बैठे अष्टमीके चन्द्रमा समान है ललाट जिनका कोई पूछे है इनमें लवण कोर अर अंकुश कोन यह तो दोनों तुल्यरूप भासे हैं तब कोई कहे हैं यह लाल वस्त्र पहिरे लवण है । पर यह हरे वस्त्र पहिरे अंकुश है । अहो धन्य सीता महापुण्यवती जिनने ऐसे पुत्र जने पर कोई कहे है धन्य है वह स्त्री जिसने ऐसे वर पाए हैं एकाग्रचित्त भई स्त्री इत्यादि वार्ता करती भई इनके देखवेमें है चित्त जिनका, अति भीड भई सो भीडमें कर्णाभरणरूप सर्पको ड ढकर डसे गये है कपोल जिनके सो न जानती भई तद्गत है चित्त जिनका काकी कां वीदाम जाती रही सो बाहि खबर नहीं काहूके मोंतिनिके हार टूटे सो मोती विखर रहे हैं। मानो कुमार आये सो ये पुष्पांजली बरसे हैं अर कई एकोको नत्रों की पलक नहीं लगें है अस. वारी दूर गई है तोभी उसी ओर देखें है नगरकी उत्तम स्त्री वेई भई बेल सो पुष्पवृष्टि करती भई सो पुष्पोंकी मकरंदकर मार्ग सुगन्ध होय रहा है श्रीराम अति शोभाकू प्राप्त भए पुत्रों सहित वनक -निम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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