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________________ पद्म-पुराण है अर हाथी समारो मदोन्मत्त केते अर निर्मद केते अर घोडे घायु समान है वेग जिनका सो संग लेवहु अर जे योधा रणसंग्राममें विख्यात कभी पीठ न दिखा तिनको लार लेवो, सत्र शस्त्र सम्हारो वक्तरनिकी मरम्मत करावहु अर युद्धके नगारे दिवावहु ढोल बजावहु शंखनिके शब्द करावहु सब सामंतोंको युद्धका विचार प्रगट करहु यह आज्ञाकर दोऊ वीर मनमें युद्धका निश्चयकर तिष्ठे मानों दोऊ भाई इन्द्र ही हैं देवनि समान जे देशपति राजा तिनको एकत्र करिवेको उद्यमी भए तब राम लक्ष्मणपर कुमारनिकी असवारो सुन सीता रुदन करती भई अर सीताके समीप नारदको सिद्धार्थ कहता भया-यह अशोभन कार्य तुम कहा आरंभा ? रण में उद्यम करिवेका है उत्साह जिनके ऐसे तुम सो पिता अर पुत्रनिमें क्यों विरोधका उद्यम किया अब काहू भांति यह विरोध निवारो, कुटुम्ब भेद करना उचित नाहीं तब नारद कही-मैं तो ऐसा कछू जान्या नाही इन विनय किया मैं प्राशीस दई कि तुम राम लक्ष्मणसे होवो, इनने सुनकर पूछी-राम लक्ष्मण कौन हैं ? मैं सब वृत्तांत कहा अब भी तुम भय न करो सब नीके ही होयगा अपना मन निश्चल करहु कुमारनि सुनी कि माता रुदन करे है तब दोऊ पुत्र माताके पास आय कहते भए-हे मात ! तुम रुदन क्यों करो हो ? सो कारण कहो तिहारी आज्ञाको कौन लोपे, असुन्दर वचन कौन कहे, ता दुष्टके प्राण हरें ऐसा कौन है जो सर्पकी जीभतें क्रीडा करे ऐसा कौन मनुष्य अर कौन देव जो तुमको असाता उपजावै है-मातः ! तुम कौनपर कोप किया है जापर तुम कोप करो ताका जानिये आयुका अन्त आया है हमपर कृपाकर कोपका कारण कहहु । या भांति पुत्रनि विनती करी तब माता आमू डार कहती भई-हे पुत्र ! मैं काहू पर कोप न किया न मुझ काहूने असाता दई । तिहारा पितासे युद्धका आरंभ सुन मैं दुखित भई रुदन करूहूं। गौतम स्वामी कहे हैं -हे श्रेणिक ! तब पुत्र मातासे पूछते भये-हे माता! हमारा पिता कौन ? तब सीता आदिसे लेय सब वृत्तांत कहा-रामका वंश अर अपना वंश विवाहका वृत्तांत अर वनका गमन अपना रावणकर हरण अर आगमन जो नारदने वृत्तांत कहा हुता सो सब विस्तारसू कहा कछु छिपाय न राखा अर कही तुम गर्भ में आए तब ही तिहारा पिताने लोकापवादका भयकर मुझ सिंहनाद अटवीमें तनी तहां मैं रुदन करती हुती सो राजा वज्रजंघ हाथी पकडने गया हुता सो हाथी पकड बाहुडे था मोहि रुदन करती देखी सो यह महा धर्मात्मा शीलवंत श्रावक मोहि महा प्रा. दरसूल्याय बडी बहिनका आदर जनाया अर अति सन्मानतें यहां राखी मैं भाई भामंडल समान याका घर जाना, तिहारा यहां सन्तान भया, तुम श्रीरामके पुत्र हो, राम महाराजाधिराज हिमाचल पर्वत सू लेय समुद्रांत पृथवीका राज्य करे हैं जिनके लक्ष्मण सा भाई महाबलवान् संग्राममें निपुण है, न जानिये नाथकी अशुभ वार्ता सुन अक तिहारी अथवा देवरकी तातै आर्त्तचित्त भई मैं रुदन करूहूं अर कोऊ कारण नाहीं । तब सुनकर पुत्र प्रसन्न वदन भए अर मातासे कहते भए-हे माता! हमारा पिता महा धनुष धारी लोकमें श्रेष्ठ लक्ष्मीवान विशाल कीर्तिका धारक है अर अनेक अद्भुत कार्य किए हैं परंतु तुमको वनमें तजी सो भला न किया तातें हम शीघ्रही राम लक्ष्मणका मानभंग करेंगे, तुम विषाद मत करहु तब सीता कहती भई-हे पुत्र हो! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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