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________________ ५०१ raatraai प भए – हे पृथु ! हम अज्ञात कुल शील हमारा कुल कोऊ जाने नाहीं तिन पै भागता तू लज्जावान् न होय है तू खडा रह, हमारा कुल शील तोहि बाणनिकरि बतावें, तब पृथु भागता हुता सो पोछा फिर हाथ जोड नमस्कारकर स्तुति करता भया - तुम महा धीरवीर हो मेरा अज्ञानताजनित दोष क्षमा करहु मैं मूर्ख तिहारा माहात्म्य अब तक न जाना हुता महा धीरवीरनिका कुल, या सामंतताही जाना जाय है कछु वाणीके कहँसें न जाना जाय है सो मैं निसंदेह भया । वनके दाहकू समर्थ जो अग्नि सो तेजहीतें जानी जाय है सो आप परम धीर महाकुलमें उपजे हमारे स्वामी हो, महाभाग्यके योग तिहारा दर्शन भया तुम सबको मन बांछित सुखके दाता हो या भांति पृथुने प्रशंसा करी ।। मिटगया शांतमन अर शांतमुख होय गये पृथुके प्रीति भई जे उत्तम प्रवाह नम्रीभूत जे बेल तब दोऊ भाई नीचे होय गये अर क्रोध वजूजंघ कुमार निके समीप आया अर सब राजा आये कुमारनिके और पुरुष हैं वे प्रणाममात्र ही करि प्रसन्नताको प्राप्त होय हैं जैसे नदी का तिनको न उपाडै अर जे महावृच नम्रीभूत नाहीं तिनको उपाडै फिर राजा वज्रजंध को श्रर दोऊ कुमारनिको पृथु. नगर में लेगया, दोऊ कुमार श्रानंदके कारण | मदनांकुश को अपनी कन्या कनकमाला महाविभूतिसहित पृथु ने परणाई एक रात्री यहां रहे फिर यहां दोऊ भाई विचक्षणदिग्विजय करवेको निव से सुहादेश मगध देश अंगदेश बंगदेश जाता पोदनापुर के राजाको आदि दे अनेक राजा संग लेय लोकाक्ष नगर गए, वातरफ के बहुत देश जीते कुबेरकांत नामा राजा प्रतिमानी ताहि ऐसा वश कीया जैसे गरुड नाग जीतै सत्यार्थपनतें दिन दिन इनकें सेना बढी हजारां राजा वश भए अर सेवा करने लगे फिर लंपाक देश गए वहां एक कर्ण नामा राजा प्रतिप्रबल ताहि जीतकर विजयस्थलीको गए वहांके राजा सौ भाई तिनको अवलोकन मात्र ही जीता, गंगा उतर कैलाश की उत्तर दिशा गए, वहांके राजा नानाप्रकारकी भेट ले आय मिले झप कुंतल नामा देश तथा कालांबु, नंदि नंदन सिंहल शलभ अनल चौल भीम, भूतरव, इत्यादि अनेक देशाधिपतिनिको वशकर सिंधु नदीके पार गये समुद्रके तटके राजा अनेक निको नमाये अनेक नगर अनेक खेट अनेक मटंब अनेक देश वश किये भीरु देश यवन कच्छ चारव त्रिजटनट सक केरल नेपाल मालव अरल सर्वर त्रिशिर पारशैल गोशील कुमीनर सूर्यरक सनत विंध्य शूरसेन बाहीक उलूक कोशल गांधार सौवीर अंध काल कलिंग इत्यादि देश वश कीये, कैसे हैं देश जिनमें नानाप्रकारकी भाषा अर वस्त्रनिका भिन्न २ पहराव अर जुद जुदे गुण नानाप्रकारके रत्न अनेक जातिके वृक्ष जिनविषै अर नानाप्रकार स्वर्ण आदि धनके भरे । कैयक देशके राजा प्रतापही चाय मिले कैयक युद्ध में जीते वश किये, कैयक भाग गए बडे बडे राजा देशपति अति अनुरागी होय लवणांकुशके आज्ञाकारी होते भए, इनकी श्राज्ञा प्रमाण पृथिवी में विचरै । वे दोनो भाई पुरुषोत्तम पृथिवीको जीत हजारों राजानिके शिरोमणि होते भए सबनिको वशकर लार लिए नानाप्रकारकी सुन्दर कथा करते सबका मन हरते पुण्डरीक 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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