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________________ पिचानववा पर्श अर उठे हैं तिनकर निर्मल जल कलोल रूप होय रहा है जल तो कमलादिक कर भरा है अर स्थल जो है सो स्थल पमादिक पुष्पनि कर भरे हैं और आकाश पुष्पनिकी मकरंद कर मण्डित होय रहा है, फूलनिके गुच्छे अर लता वृक्ष अनेक प्रकारके फूल रहे है, वनस्पति की परमशोभा होय रही है ता समय सीता कछुगर्भ के भारकर दुर्बलशरीर भई तब राम पूछते भये-हे काँते ! तेरे जो अभिलाषा होय सो पूर्ण करू। तब सीता कहती भई-हे नाथ ! अनेक चैत्यालयनिके . दर्शन करवेकी मेरे संछा है, भगवानके प्रतिबिंन पांचो यणके लोकमें मंगलरूप तिनको नमस्कार करवेको मेरा मनोरथ है, स्वर्ण रत्नमई पुष्पनिकर जिनेंद्र को पूज्जू यह मेरे महाश्रद्धा है अर कहा बांछु ? ये सीताके वचन सुनकर राम हर्षित भये, फूल गया है मुखकमल जिनका राजलोकमें विराजते हुने सो द्वारपालीको बुलाय आज्ञा करी कि हे भद्र ! मंत्रिनिको आज्ञा पहुंचाको जो समस्त चैत्यालयनिमें प्रभावना करें श्रर महेंद्रोदयनाम उद्यान में जे चैत्यालय है तिनकी शोभा करा अर सर्व लोकको आज्ञा पहुंचायो कि जिन मंदिर में पूजा प्रभारना आदि अति उत्सब करें श्रर तोरणध्वजा घंटा झालरी चंदोवा सायवान महामनोहर बस्त्रनिके बनावें तथा सुन्दर सगस्त उपकरण देहुग चढावें, लोक समस्त पृथिवी में जिनपूजा व भर कैलाश सम्मेद शिखर' पावापुर चंगापुर गिरनार शत्र जय मांगीतुगी आदि निर्वाश क्षेत्रनिमें विशेष शोभा करावो कल्याण दोहला सीताको उपजा है सो पृथिवीमें जिनपूजाकी प्रवृत्ति करो। हम सीतासहित धर्म क्षेत्रनिमें विहार करेंगे। यह रामकी आज्ञा सुन वह द्वारपाली अपनी टौर अन्यको राखकर जाय मंत्री को आज्ञा पहुंदावती भई अर वे स्वामीकी आज्ञा प्रमाण अपने किंकर निको प्राज्ञा करते भए । सर्व चैत्यालयनिमें शोभा कराई अर महा पर्व की गुफाओं के द्वार पूर्ण कलश थापे, मोतिनके हारनिकर शोभित अर विशाल स्वर्ण की भीतिमें मणिनिक चित्राम रचे, महेंद्रोदय नाम उद्यान की शोभा नदन बन की शोभा समानकर अत्यन्त निर्मल शुद्धमणिनिक दर्पण थंभमें थापे अर झरोखनिके मुख में निर्मल मोतिनिक हार लटकाये सो जलनीझरना समान सो हैं पर पांच प्रकारके रत्ननिका चूर्णकर भूमि मांडित करी अर सहस्रदल कमल तथा नानाप्रकारके कमल तिनकर शोभा की अर पांच वर्णके मणिनिके दौंड तिन में महा सुन्दर वस्त्रनिके धजा लगाय मदिरनिके शिखर पर चढ़ाई, अर नानाप्रकार के पुषनि की माला जिनपर भ्रमर गुजार करें ठौर २ लुबाई हैं अर विशाल बादिवशाला नाटय शाला अनेक रची हैं तिनकर वन अति शोभै है मानों नदन बन ही है तब श्रीरामचन्द्र इंद्रसमान सब नगर के लोकनियर युक्त समस्त राजलोकनिमदिन वन में पधारे। मोता अा यार गजार प्रारू कैले सोहें ? जैसे शचीसहिन इंद्र ऐराचत गजार चढे सोहै अर लक्ष्मण भी परम ऋद्धिको धरे बन जाते भए अर और हू सब लोक अानन्दसे वनमें गये, अर सवनि के अन्न पान वनही में भया जहां महा मनोग्य लतानिके मडप अर केलिझे वृक्ष तहां राणी तिष्ठी अर और ह लोक यथायोग्य कामें मिष्टे, राम हाधीत उतर कर निर्मल जलका भरा जो सरोवर नानाप्रकारके कालनिकर संयुक उसमें रमते भए जसे इन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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