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________________ अठासीवा पर्ने *** अथानन्तर भरत के साथ जे राजा महाधीर वीर अपने शरीर में भी जिनका अनुराग नहीं घर से निकसे । जैनेश्वरी दीक्षा थर दुर्लभ वस्तुको प्राप्त भए तिनविषै कैयकनिके नाम कहिये हैं — हे श्रेणिक ! तू सुन - सिद्धार्थ, रतिवर्धन, मेघरथ, जांबू, नंद, शल्य, शशांक, निरसनन्दन, नंद, आनन्द, सुमति, सदाय, महाबुद्धि, सूर्य, इन्द्रध्वज, जनवल्लभ, श्रुतिधर, सुचंद्र, पृथिवीधर, अलॅक, अक्रोध, कुन्दर, सत्यवान, हरि, सुमित्र, धर्ममित्र, पूर्णचन्द्र, प्रभाकर, नघोष, सुनंद, शांति, प्रियधर्मा इत्यादि एक हजारतें अधिक राजा वैराग्य धारते भए विशुद्धकुल में उपजे सदा आचारमं तत्पर पृथिवी में प्रसिद्ध हैं शुभ चेष्टा जिनकी । ये महाभाग्य हाथी घोडे रथ गयादे स्वर्ण रत्न रणवास सर्वं तजकर पंच महाव्रत धारते भए, राज्यको जिनने तृणवत् तजा, महाशांत योगीश्वर नानाप्रकार ऋद्धिके धारक भए सो आत्मध्यानके ध्याता कैयक तो मोच गये कैयक अद्रि भये कैक उत्कृष्ट देव भये । अथानन्तर भरत चक्रवर्ती सारिखे दशरथ के पुत्र भरत तिनको घर से निकसे पीछे लक्ष्मण तिनके गुण चितार चितार अतिशोकवन्त भया अपना राज्य शून्य गिनता भया शोककर व्याकुल है चित्त जाका, अति विपाद आंसू डारता भया, दीर्घ निश्वास नाखता भया नील कमल समान है कांति जाकी सो कुमलाब गया, विराधितकी भुजानिपर हाथ धरै ताके सहारे बैठा मन्द २ वचन कहें, वे भरत महाराज गुण ही हैं आभूषण जिनके सो कहां गए ? जिन तरुण अवस्था में शरीर प्रीति छांडी, इन्द्र समान राजा अर हम सब उनके सेवक वे रघुवंशके तिलक समस्त विभूति तज कर मोक्षके अर्थी महादुद्धर मुनिका धर्म धारते भए । शरीर तो अति कोमल कैसे पह सहेंगे ? धन्य वे अर श्रीराम महा ज्ञानवान कहते भये, भरतकी महिमा कही न जाय जिनका चित्त कभी संसार में न रचा जो शुद्धबुद्धि है तो उनकी ही है और जन्म कृतार्थ है तो उनका ही है, जे विषके भरे अनकी न्याई राज्यको तजकर जिनदीक्षा धरते भये वे पूज्य प्रशंसा योग्य परम योगी उनका वर्णन देवेंद्र भी न कर सके तो औरों की कहा शक्ति जो करें वे राजा दशरथ के पुत्र केकईक नंदन तिनकी महिमा हमतें न कही जाय । या भरतके गुण गावते एक मुहूर्त सभा में तिष्ठे, समस्त राजा भरत ही के गुण गाया करे । बहुरि श्रीराम लक्ष्मण दोऊ भाई भरत के अनुरागकर अति उद्योग रूप उठे सब राजा अपने अपने स्थानकू गये घर घर भरत की चर्चा सब ही लोक आश्चर्य को प्राप्त भये । यह तो उनकी यौवन अवस्था अर यह राज्य ऐसे भाई सब सामिग्री पूर्ख ऐसे ही पुरुष तजें सोई परम पदको प्राप्त होवें या भांति सब ही प्रशंसा करते भये । बहुरि दूजे दिन सब राजा मन्त्रकर राम पै आए नमस्कारकर प्रति प्रीति से वचन कहते भए - हे नाथ ! जो हम समझ हैं तो आपके घर बुद्धिवंत हैं तो आपके, हम पर कृपाकर एक बीनती सुनो - हे प्रभो ! हम सत्र भूमिगोचरी अर विद्याधर आपका राज्याभिषेक करें, जैसे स्वर्गविषै इन्द्रका होय, हमारे नेत्र अर हृदय सफल होवें तिहारे अभिषेकके सुखकर पृथिवी ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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