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________________ पद्म-पुराणे बाल अवस्था ही से अति विरक्त जिनदीक्षा धारा च हे अर पिता चाहे घरमें रहे तीन हजार राणी इसे परणाई सो वे नाना प्रकारके चरित्र करें परंतु यह विषयसुखको विष समान गिने केवल मुनि होयवेकी इच्छा, अति शांतचित्त परंतु पिता घरसे निकसने न देय । यह महाभाग्य महा शीलवान महागुणवान महात्यागी स्त्रियों का अनुराग नाहीं याको ते स्त्री भांति भांतिके वचनकर अनुराग उपजावें अति यत्नकर सेवा करें परंतु याको संसारकी माया गर्तरूप भासे जैसे गर्त में पड़ा जो गज ताके पकडनहारे मनुष्य नाना भांति ललचावें तथापि गजको गर्त न रुचे ऐसे याहि जगत् की माया न रुचे यह परम शांतचित पिताके निरोधसे अति उदास भया घरमें रहे तिन स्त्रीनिके मध्य प्राप्त हुआ तीव्र असिधारका पाले स्त्रीनिके मध्य रहना अर शील पालना तिनसे संसर्ग न करना ताका नाम असिधारा वन कहिये । मोतिनके हार बाजूवंद मुकुटादि अनेक भूषण पहिरे तथापि आभूषणम् अनु ग नाहीं यह महाभाग्य सिंहासनपर बैठा नि. रंतर स्त्रीनिको जिनधर्मको प्रशंसाका उपदेश देय त्रैलोक्यमें जिनधर्म समान और नाही ये जीव अनादिकालसे संभार वनमें भ्रमण करे हैं सो कोई पुण्य कर्मके योगसे जीवोंको मनुष्य देहकी प्राप्ति होय है यह बात जाना मन्ता कौन मनुष्य संमार कूपमें पडे अथवा कौन विवेकी विषको पीवै अथवा गिरिके शिखरपर कौन बुद्धिमान निद्रा करे अथवा मणिकी बांछाकर कौन पंडित नागका मस्तक हाथसे स्पर्श, विनाशीक ये कान भोग तिनमें ज्ञानी को कैस अनुराग उपजे ? एक जिनधर्मका अनुराग ही महा प्रशंपा योग्य मोक्षके मुखका कारण है। यह जीवोंका जीतव्य अत्यंत चंच यामें स्थिरता कहा ? जो अवांछक निस्पृक्षचित्त हैं जिनके राज्यकाज अर इंद्रियों के भोगोंसे कौन काम इत्यादिक परमार्थके उपदेशरूप याको बाणी सुनकर म्बी भी शांतचित्त भई नानापारके नियम धरती भई । यह शीलवान तिनको भी शीलमें दृढचित्त करना मया। यह राजकुमार अपने शरीरमें भो रागरहित एकांतर उपास अथवा बेला तेला श्रादि अनेक उपवा. सोंकर कर्म कलंक खिपायता भया नाना प्रकारके तपकर शरीरको शोखता भया जैसे ग्रीष्मका सूर्य जल को शोखे समाधान है मन ज का, मन इंद्रियनिके जीनवे को समर्थ यह सम्यक दृष्टि निश्चलचित्त महाधीर वीर चौठ हजार वर्ष लग दुर्धर तप करता भया बहुरि समाधि मरण कर पंचनमोकार स्मरण करता देह त्यागकर जो ब्रह्मोत्तर स्वर्ग तहां महाऋद्धिका धारक देव भया अर जो भूषगके भामें याका पिता धनदत्त सेठ था विनोद ब्रामणका जीव सो मोहके योगते अनेक होनिनिमें भ्रम कर जम्बूद्वीप भरत क्षेत्र तहां पोदन नाम नगर तामें अग्निमुख नामा ब्राह्मण ताके शकुना नामा स्त्री मृदुमति नामा पुत्र सो नाम तो मृदुमति परंतु कठोर चित्त अतिदृष्ट महाजुबारी विनयी अनेक अपराधोंका मरा दुराचारी सो लोकोंके उराहनोंसे माता पिता ने घरसे निकासा सो पृथिवीमें परिभ्रमण करता पोदनापुर गया, किसीक घर तृषातुर पानी पीने को पैठा सो एक बामणी श्रांसू डारती हुई इसे शीतल जल प्यावती भई यह त्रीतल मिष्ट जलसे वप्त हो ब्राह्मणीको पूछता भया -तु कौन कारणा रुदन करे है तब ताने कही तरे आकार एक मेरा पुत्र था सो मैं कठोर चित्त होय क्रोधकर वासे निकासा सो तैंने भ्रमण करते कहूं देखा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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