SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पग-पुराण दिन राजसंपदा भोगी प्रजाके दुःख हरे पुत्रकी न्याई प्रजाका पालन किया दान पूजा आदि गृहस्थके धर्म आदरे माधुवों की सेवा करी अब जो पिताने किया सो मैं किया चाहूं हूं अब तुम इस वस्तुकी अनुमोदना को न करो, प्रशंसा योग्य वस्तु में कहा विवाद ? हे श्रीराम, हे लक्ष्मण, तमने महाभयंकर युद्ध में शत्रुषोंको जीत अगले बलभद्र वासुदेवकी न्याई लक्ष्मी उपार्जी सो तम्हारे लक्ष्मी और मनुः सकैती नाहीं तथापि राजलक्ष्मी मुझे न रुचे तृप्ति न करे जैसे गंगादि नदियां समुद्रको तन न करें इसलिए मैं नत्वज्ञानके मार्ग प्रवरतूंगा ऐसा कहकर अत्यंत विरक्त होय राम लक्ष्मणको विना पूछे ही वैराग्यको उठा जैसे आगे भरत चक्रवर्ती उठे। यह मनोहर चाल का चलनहारा मुनिराजके निकट जायोको उद्यमी भया तब अति स्नेह कर लक्ष्मणने थांभा भरतके करपल्लव ग्रहे लक्ष्मण खडा ताही समय माता केकई आँसू डारती आई अर रामकी आज्ञासे दोऊ भ ईनिकी राणी सवहो पाई लक्ष्मी समान है रूप जिनके घर पवन कर चंचल जो कमल ता समान हैं नेत्र जिनके, आय भरतको थामती भई तिनके नाम ___ सीता, उर्वशी, भानुमती, विशल्यासुन्दरी, ऐंद्री, रत्नवती, लक्ष्मी, गुणमती, बंधुमती, सुभद्रा, कुवेरा, नलकूधरा, कल्याणमाला, मदनोत्सवा, मनोरमा, प्रियनंदा, चन्द्रकांता, कलावती. रत्नस्थली, सरस्वती, श्रीकान्ता, गुणसागरी, पद्मावती, इत्यादि सब आई जिनके रूपगुण कार किया न जाय मनको हरं अाकार जिनके दिव्य वस्त्र अर आभूषण पहिरे बडे कुलविणे उपजी सत्यवादिनी शीलवंती पुण्यकी भूमिका समस्त कलामें निपुण सो भरतके चौगिर्द खडी मानों चारों ओर कमलोंका वन ही फूल रहा है भरतका चित्त राजसंपदामें लगायवेको उद्यमी अति आदर कर भरतको मनोहर वचन कहती भई कि-हे देवर हमारा कहा मानों कृपा करो आवो अाज सरोवरों में जलक्रीडा करो पर चिंता तजो जा बातकर तिहारे बड़े भाईयोंको खेद न होय तो करो और तिहारी माताके खेद न होय सो करों पर हम तिहारी भावज हैं सो हमारी विनती अवश्य मानिए तम विवेकी विनयवान हो ऐमा कहकर भरतको सरोवर पर ले गई भरतका चित्त जल क्रीडासे विरक्त यह सत्र सरोवर में पैंठी वह विनय कर संयुक्त सरोवरके तीर ऊभा ऐमा सोहै मानों गिरिराज ही है और वे स्निग्ध सुगन्ध सुन्दर वस्तुनि कर याके शरीरका विलेपन करती भई अर नाना प्रकार जलकेलि करती भई यह उत्तम चेष्टाके धारक काह पर जल न डारतः भेग बहुरे निर्मल जलसे स्नान कर सरोदरके तीर जे जिनमंदिर वहां भगवानकी पूजा करता भया, उसी समय त्रैलोक्यमडा हाथी कारी घटा समान आकार जाका सो गजबंधन तडाय भयंकर शब्द करता निज आवासथकी निकसा, अपने मद झरवे कर चौमासेकैसा दिन करता सता मेघ गर्जना समान ताका गाज सुनकर अयोध्यापुरीके लोग भयकर कम्पायमान भए अर अन्य हाथियों के महावत अपने अपने हाथी को ले दूर भागे अर त्रैलोक्यमंडन गिरि समान नगरका दरबाजा भंग कर जहां भरत पूजा करते थे वहां आया तब राम लक्ष्मणकी समस्त राणी भयकर कम्पायमान होय भरतके शरण श्राई, श्रर हाथी भरतके नजीक पाया तब समस्त लोक हाहाकार करते भए अरं इनकी माता अति विह्वल भई विलाप करती भई पत्रके For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy