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________________ vindranamanna विधासीवां पर्ण दीखे है ? तब राम कहते भए. हे देवी! यह सुमेरु पर्वत है । जहां देवाधिदेव श्रीमुनिसुव्रतनाथका जन्माभिषेक इंद्रादिक देवनिने किया। कैसे हैं देव ? भगवान के पांचों कल्यानको जिनके अति हर्ष है । यह सुमेरु रत्नमई ऊचे शिखरनिकर शोभित जगतमें प्रसिद्ध है अर बहुरि आगे आयकर कहते भए-यह दंडक वन है जहां लंकापतिने तुमको हरा अर अपना अकाज किया। या वनमें चारण मुनिको हमने पारणा कराया था याके मध्य यह सुन्दर नदी है अर हे सुलोचने ! यह वंशस्थल पर्वत जहां देशभूषण कुलभूपणका दर्शन किया ताही समय मुनिनिको केवल उपजा अर हे सौभाग्यवती कल्याणरूपिणी! यह ब लखिल्यका नगर जहां लक्ष्मणने कल्याणमाला पाई पर यह दशांग नगर जहां रूपवतीका पिता वज्र ो परम श्रावक राज्य कर बहुरि जानकी पृथिवीपतिको पूछती भई-हे कान्त ! यह नगरी कौन जहां विमान समान घर इंद्रपुरीसे अधिक शोभै हैं। अबतक यह पुरी मैंन कबहुं न देखी ऐसे जानकीके वचन सुन जानकीनाथ अवलोकन कर कहते थए-हे प्रिये ! यह अयोध्यापुरी, विद्याधर सिलान्टोंने बनाई है, लंका पुरीको ज्योतिकी जीतनहारी। बहुरि आगे आए तब रामका विमान सूर्यके विमान समान देख भरत.महा हस्ती पर चढ अति प्रानन्दके भरे इन्द्र समान परम विभूतिकर युक्त सन्मुख आए सवदिशा विमाननिकर आच्छादित देखीं भरतको आवता देखा राम लक्ष्मणने पुष्पक विमान भूमिमें उतारा भरत गजसे उतर निकट आया, स्नेह का भरा दोऊ भाइनिको प्रणामकर बर्षाद्य करता भया अर ये दोनों भाई विमानसे उतर भरलसे मिले उरसे लग य लीया परस्पर कुशल वार्ता पूछी बहुरि भरतको पुष्पक विमानमें चढाय लीया । अर अयोध्या में प्रवेश किया। अयोध्या रामके आगमनकर अति सिंगारी है अर नाना प्रकारकी ध्वजा फरहरे हैं नाना प्रकारके विमान अर नाना प्रकारके रथ अनेक हाथी अनेक घोडे तिनकर मार्गमें अवकाश नाही, अनेक प्रकार वादित्रनिके समूह वाजते भए, शंख भांज भेरी ढोल धूकल इत्यादि वादित्रोंका कहां लग वर्णन करिये महा मधुर शब्द होते भए, ऐसे ही वादित्रोंके शब्द ऐकी ही तुरंगोंकी हींस ऐपी ही गजों की गर्जना सामन्तोंके अट्टहास मायामई मिह व्याघ्रादिकके शब्द ऐसे ही वीणा वांसुरीनिके शब्द तिनकर दशों दिशा व्यास भई, बन्दीजन विरद बखाने हैं, नृ यकरिणी नृत्य करें हैं भांड नकल कर हैं नट कला करें है, सूर्यके रथ समान रथ तिनके चित्राकार विद्याधर मनुष्य पशुनिके नाना शब्द सो कहां लग वर्णन करिए ? विद्याधरनिके अधिपति नेने परमशोभा करी दोनों भाई महा मनोहर अयोध्यामें प्रवेश करते भए । अयोध्यानगी स्वर्गपुरी समान राम लक्ष्मण इन्द्र प्रतीन्द्रसमान समस्त विद्याथर देव समान तिनका कहां लग वर्णन करिए। श्रीरामचन्द्रको देख प्रजारूप समुद्र में आनन्दकी धनि बढती भई भले २ पुरुष अर्घ्यपाद्य करते भए सोई तरग भई पैंड पैंडमें जगतकर पूज्यमान दोनों वीर महाधीर तिनको समस्त जन आशीर्वाद देते भए-हे देव ! जयवन्त होवो वृद्धिको प्राप्त होवो चिरंजीव होवो नादो विरदी । या भांति असीन देते भए अर अति ऊचे विमान समान मंदिर तिनके शिख में तिष्ठती सुन्दरी फूल गए हैं नेत्र कमल जिनके वे मोति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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