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________________ ४३८ पद्मपुराण मोसे युद्ध किया चाहे है सो जीवनेसे उदास भया है, मूत्रा चाहे है। तब लक्ष्मण बोले तू जैना पृथि चीपति है तैना मैं नीके जानू हूं । आज तेरा गाजना पूर्ण करू हूं। जब ऐसा लक्ष्मणने कहा तब रावणने अपने वाण लक्ष्मणपर चलाए, र लक्ष्मणने रावणपर चलाए जैसे वर्षाका मेघ जलवृष्टिकर गिरिको आच्छादित करे, तैसे बाणवृष्टिकर वाने वाको बेण्या अरवाने वाको बेध्या सो रावण के वाण लक्ष्मणने वज्रदंडकर बीचही तोड डारे, आप तक ग्राबने न दिए, वाणोंके समूह छेद भेद तोडे फोड़े चूर कर डारे, सो धरती आकाश वाण खंडनिकर भर गए, लक्ष्मणने रावणको सामान्य शस्त्रनिकर विह्वल किया तब रावणने जानी यह सामान्य शस्त्रनिकर जीता न जाय तब लक्ष्मण पर रावण ने मेघवाण चलाया सो धरती आकाश जलरूप होय गए तब लक्ष्मणने पवनवाण चलाया क्षणमात्रमें मेघवाण विलय किया, बहुरि दशमुखने व्यग्निवाण चलाया सो दशों दिशा प्रज्वलित भई तब लक्ष्मणने वरुणशस्त्र चलाया सो एक निमिषमें अग्निवाण नाशको प्राप्त भया बहुरि लक्ष्मणने पापवाण चलाया सो धर्मवाणकर रावणने निवारा बहुरि लक्ष्मणने इंधनवाण चलाया सां रावणने अग्निवाण कर भस्म किया बहुरि लक्ष्मणने तिमिरवाण चलाया सो अन्धकार होय गा आकाश वृवनि के समूहकर याच्छादित भया । कैसे हैं वृच ? आसार फलनिको बरसाव हैं आसार पुष्पनिके पटल छा गये तब रावण ने सूर्यवाण कर तिमिरवाण निवारा वर लक्ष्मण पर नागवाण चलाया, अनेक नाग चले विकराल हैं फण जिनके, तब लक्ष्मणने गरुड वाणकर नागवण निवारा, गरुडकी पाखोंपर आकाश स्वर्णकं प्रभारूप प्रतिभासता भया, बहुरि रामके भाईने रावण पर सर्पवाण चलाया प्रलयकाल के मेघ समान है शब्द आकार रूप अग्नि का निकर महाविषम तथ रावणनं मयूरवाणकर सर्पवाण निवारा अर लक्ष्मण पर विघ्नवाण चलाया सो विघ्नवाण दुर्निवार ताका उपाय सिद्धवाण सो लक्ष्मण को याद न आया तब वज्रदंड आदि अनेक शस्त्र चलाये । रावण हू सामान्य शस्त्रनिकर युद्ध करता भया, दोनों योधानिमें समान युद्ध भया जैसा त्रिपृष्ठ पर अश्वग्रीव युद्ध भया हुना, तैसा लक्ष्मण रावणके भया । जैसा पूर्वोपार्जित कर्मका उदय होय तैसा ही फल होय, तैसी क्रिया करें । जे महा क्रोध के वश हैं जो कार्य आरम्भा ता विषै उद्यमी हैं ते नर तीव्र शस्त्र को न गिने अर अग्निको न गिने सूर्यको नगिने वायुको न गिनें । इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महा पद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषावचनिकाविषै रावण लक्ष्मणका युद्ध वर्णन करनेवाला चौहत्तरवां पर्व पूर्ण भया ॥ ७४ ॥ अथानन्तर गौतमस्वामी राजा श्रेणिकस कहे हैं - हे भव्योत्तम ! दोनों ही सेनामें तृषाdant शीतल मिष्ट जल प्याइये है अर चुधावन्तोंको अमृत समान आहार दीजिये है अर खेदवन्तों को मलयागिरि चन्दनसे छिडकिये है, ताडवृक्ष के बीजनेसे पवन करिये, बरफके बारिसे छांcिये है तथा और हू उपचार अनेक कीजिए है, अपना पराया कोई होऊ सबके यत्न कीजिये है यही संग्रामकी रीति है । दश दिन युद्ध करते भए दोऊ ही महावीर अभंगचित रावण लक्ष्मण दोनों समान जैसा वह तैसा वह सो यक्ष गंधर्व किन्नर अप्सरा आश्चयको प्राप्त भए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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