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________________ पद्म-पुराण प्रवर्ते, अर घोडोंपर चढे सामंत गंभीर हैं नाद जिनके परम तेजको धरे गाजते भए अर अश्व हींसते भए परम हर्षके भरे देदीप्यमान हैं आयुध जिनके अर पियादे गर्वके भरे पृथिवीमें उछलते भए खड्ग खेट बरछी है हाथमें जिनके. युद्धकी पृथिवीमें प्रवेश करते भए परस्पर स्पर्धा करे हैं दौडे हैं हने हैं योथानिमें परस्पर अनेक आयुथनिकर तथा लाठी मूका लोह यष्टिनि कर युद्ध भया परस्पर केश ग्रहण भया, खड्ग कर विदारा गया है शरीर जिनका, कैयक बाणोंकर वींधे गये तथापि योथा युद्धके आगे ही भए, मारे हैं प्रहार करें हैं गाजे हैं घोडे व्याकुल भए भ्रमै हैं कैयक आसन खाली होय गए असवार मारे गए मुष्टियुद्ध गदायुद्ध भया, कैयक बाणनिकर बहुत मारे गये कैयक खड्ग कर कैयक सेलोंकर घाव खाये, बहुरि शत्रुको घायल करते भए, कैयक मनवांछित भोगनिकर इंद्रियनिको रमावते सो युद्धमैं इंद्रिय इनको छोडती भई जैसे कार्य परे कुमित्र तजै कैयक के आंतनिके ढेर हो गये तथापि खेद न मानते भए शत्रुनि पर जाय पडे अर शत्रुमहित भाप प्राणान्त भए, डसे हैं होंठ जिन्होंने । जे राजकुमार देवकुमार सारिखे सुकुमार रत्ननिके महिलों के शिखरमें क्रीडा करते महा भोगी पुरुष स्त्रीनिके स्तनकर रमाये संते वे खडग चक्र कनक इत्यादि प्रायुधनिकर विदारे संत संग्रामकी भूमिमें पडे. विरूप आकार तिनको गृद्ध पक्षी अर स्याल भषे हैं अर जैसे रंगकी भरी रामा नखोंकर चिन्ह करती अर निकट प्रावती तैसे स्यालनी नख दं निकर चिन्द करे हैं पर समीप आवै हैं बहुरि श्वासके प्रकाश कर जीवते जान वे डर जांय हैं जैसे डाकनी मंत्रबादीसे दूर जांय अर सामंतनिको जीवते जान यक्षिणी डर कर उड जाती भई जैसे दुष्ट नारी चलायमान हैं नेत्र जिसके पतिके समीपसे जाती रहे । जीवोंके शुभाशुभ प्रकृतिका उदय युद्ध में लखिये है दोनों बराबर पर कोईकी हार होय कोई की जीत होय अर काहूं अल्प सेन का स्वामी महा सेनाके स्वामी को जीते अर कोई एक सुकृतके सामर्थ्यसे बहुतोंको जीते अर कोई बहुत भी पापके उदयसे हार जाय । जिन जीवोंने पूर्व भवमें तप किया वे राज्यके अधिकारी होय विजयको पावें हैं और जिन्होंने नप न किया अथवा तप भग किया तिनकी हार होय है । गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहे हैं-हे श्रेणिक ! यह धर्म मर्मकी रक्षा करे है अर दुर्जयको जीते है धमही बडा सहाई है बडा पक्ष धर्मका है धर्म सब ठौर रक्षा करै है । घोडोंकर युक्त रथ पर्वत समान हाथी पवन समान तुरंग असुर कुमारसे पयादे इत्यादि सामग्री पूर्ण है परन्तु पूर्वपुण्यके उदय विना कोई राखने समर्थ नाहीं, एक पुण्याधिकारीही शत्रुवोंको जीते है इस भांति राम रावणके युद्धकी प्रवृत्तिमें योषावोंकर योधा हते गए तिनकर रण खेत भर गया, अरकाश नाहीं प्रायुधोंकर योधा उछले हैं परे हैं सो आकाश ऐसा दृष्टि पडता भया मानों उत्पातके बादलोकर मंडित है। अथानन्तर मारीच चन्द्रनिकर बज्राक्ष शक सारण और भी राक्षसोंके अधीश तिन्होंने रामका कटक दवाया तब हनूमान चन्द्रमारीच नील मुकुंद भूतस्वन इत्यादि रामपक्षके योथा तिन्होंने राक्षसनिकी सेना दवाई तब रावणके योधा कुंद कुम्भ निकुंम्भ विक्रम क्रमाण जंबूमाली काकाली सूर्यार मकरध्वज अशनिरथ इत्यादि राक्षसनिके बडे बडे राजा शीघ्रही युद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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