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________________ ४०५ naamana+raia+ जा सीताके निमित्त तेर सारखे भाईको निर्दय शक्ति कर पृथवी पर पड़ा देखू हूं सो ती समान भाई कहां ? काम अर्थ पुरुषों को सब सुलभ हैं अा और और संबंधी पृथिवी पर जहां जाइये वहां सब मिलें परंतु माता पिता अर भाई न मिलें । हे सुग्रीव, तैंने अपना मित्रपणा मुझे अति दिखाया अब तुम अपने स्थानक जायो अर हे भागण्डल, तुम भी जावो अब मैं सीताकी आशा तजी अर जीवने की भी आशा तजी, अब मैं भाईके साथ निसंदेह अग्निमें प्रवेश करूंगा । हे विभीषण, मोहि सीताका भी सोच नहीं अर भाईका सोच नहीं परंतु तिहारा उपकार हमसे कछु न बना सो यह मेरे मन में महाबाधा है। जे उत्तम पुरुष हैं ते पहिले ही उपकार करें पर जे मध्यम पुरुष हैं ते उपकार पीछे उपकार करें और जो पीछे भी न करें वे अथम पुरुष हैं सो तुम उत्तम पुरुष हो, हमारा प्रथम उपकार किया ऐसे भाईये विरोधका हम पै अाए अर हमसे तिहारा कछु उपकार न बना तातें मैं अतिआतापरूप हूँ। हो भामण्डल सुग्रीव चिता रचो, मैं भाईके साथ अग्निमें प्रवेश करूंगा, तुम योग्य होय सो करियो यह कहकर लक्ष्मणको गम सशंने लगे तब जाबूनन्द महः बुद्धिमान मने करता भया—हे देव, यह दिव्यास्त्रसे मूर्छित भया हे तिहारा भाई सो स्पर्श भत को। यह अच्छा होजायेगा, ऐसे होय है तुम थीरताको धरो, कायरता तजो, आप में उपाय ही कार्यकारी है यह विलाप उपाय नाहीं, तुम सुभट जन हो तुमको क्लिप उचित नहीं, यह विलाप करना क्षुद्र लोगों का काम है तातें अपना चित्त धीर करो कोई यक उपाय अव ही बने है। यह तिहास भाई नारायण है अवश्य जीवेगा। अवार याकी मृत्यु नाहीं । यह कह सब यिावर विषादी भये पर लक्ष्मणके अंगसे शक्ति निकसनेका उपाय अपने मनमें सत्र ही चिंबते भये--यह दिव्य शक्ति है याहि औषधकर कोऊ निवारवे समर्थ नाही अर कदाचिा सूर्य उगा तो लक्ष्मण जीवना कठिन है यह विद्याधर बारम्बार विचारते हुये उपजी है चिंता जिनके सो कमरबंध आदिक सब दर कर आध निमिषमें धरती शुद्ध कर कपडे के डेरे खड़े किये अर कटक की सात चौकी मेली मोबडे बड़े योधा वक्तर पहिरे धनुष वाण धरे बहुत सारधानीस चौकी बैठे, प्रथम चीनील बैठे धनषवाण हाथमें धरे हैं अर दूजी चौकी नल बेठे गदा करमें लिये अर तीजो चौकी विभीषण बैठे महा उदार मन त्रिशल थांभे अर कल्पय हों की माला रत्नोंके आभूषण पहरे ईशानईन्द्र समान अर चौथी चौकी तरकश बांधे कुमुद बैठे मह! साहस धरे, पांचवी चौकी बछी संपारे सुषेण बैठे महा प्रतापी अर छठी चौकी हा दृढभुज आप सुग्रीव इंद्र सारिखा शोभायमान भिंडपाल लिये बैठे, सातवीं चौकी महा शस्त्रका निकन्दक तलवार सम्हाले भाप भामण्डल बैठा पूर्वके द्वार अष्टापदक घजा जाके ऐसा शोभता भया मानों महावलो अष्टापद ही है अर पश्चिम के दूर जाम्बुकुमार विराजता भया अर उत्तरके द्वार मत्रिोंके समूह सहित बालीका पुत्र महावलवान चन्द्रमरीच बैठा या भांति विद्याधर चौकी बैठे सो कैसे साहते भए जैसे आकाशमें नक्षत्रमण्डल भासे अर वानरवंशी महाभट वे सब दक्षिण दिशाकी तरफ चौकी बैठे या भांति चौकी का यत्न कर विद्याधर तिष्ठे, लक्ष्मणकं जीने में है संदेह जिनके, प्र.ल है शोक जिनको । जीवोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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