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________________ बासठ पर्व निराकरण कर नागबाण र ताहि बढा सो कुम्भव रण भा नागांका बेढा थका धरती पर पडा। यह कथा गौतमण वर राजा श्रेणि इ. से कहे हैं हे श्रेणिक ! बडा आश्चर्य है ते नागवाण धनुष के लगे उल्कापात स्वरूप होय जाय हैं पर त्रुटोंक शरीरके लग नागरूप होय उसको बेढे हैं यह दिव्य शस्त्र देशोपनीत है मा बांछित रूप का हैं एक क्षण में वाण एक क्षण में दण्ड क्षण एकमें पा रूप हाय परणवे हैं जैसे कर्म पाश कर जीव बंधे तैो नागपाशकर कुम्भकरण बधा सो राम की अज्ञा पाय भामण्डलने अपने रथमें राखा, कुम्भकरणको रामने भमण्डलके हवाले किया पर इ द्रजीतको लक्ष्मण ने पकडा सो विराधितके हवाले किया सो विराधि ने अ.ने रथमें राखा खेद खिन्न है शरीर जाका । ता समय युद्धमें रावण विभीषण को कहता भया जो यदि तु आपको योधा माने है तो एक मेग घाव सह, जाकर रण की खाज बुझे। यह रावणने कही। कैसा है विभीषण ? क्रोधकर र वणके सन्मुख है अर विकराल करी है रणक्रीडा जाने, रावणने कोपकर विभीषणपर त्रिशूल चलाया, कैमा है त्रिशूल ? प्रज्वलित अग्निके स्फुलिंगोंकर प्रकाश किया है आकाशमें जाने, सो त्रिशूल लक्ष्मण ने विभीषण तक आवने न दिया, अपने वाणकर बीचही में भस्म किया तब रावण अपन त्रिशलको भस्मकिया देख अति क्रोधायमान भया अर नागेन्द्रकी दई शक्ति महादारुण सो ग्रही अर आगे देखे तो इन्दीवर कहिये नीलकमल ता समान श्याम सुन्दर महा देदीप्यमान पुरुषोत्तम गरुड ज लक्ष्मण खडे हैं तब काली घटा समान गम्भीर उदार है शब्द जाका ऐसा दशमुख सो लक्ष्मणको ऊचे स्वरकर कहता भया मानों ताडना ही करे है तेरा बल कहां ? जो मृत्युके कारण मेरे शस्त्र तू झेले, तू औरानकी तरह मोहि मत जाने, हे दुर्बुद्धि लक्ष्मण ! जो तू मूवा चाहे है तो मेरा यह शस्त्र झेल, तब लक्ष्मण यद्यपि चिरकाल संग्राम कर अति खेदखिन्न भया है तथापि विभीषणको पीछेकर श्राप आगे होय रावण की तरफ दौडे तव रावणने महा क्रोध करि लक्ष्मण पर शक्ति चलाई । कैसी है शक्ति ? निकसे हैं तारावोंके आकार स्फुलिंगनिके समूह जाविणे सो लक्ष्मण का वक्षस्थल मड़ा पर्वतके तट समान, ता शक्ति कर विदारा गया। कैसी है शक्ति ? महा दिव्य अति देदीप्यमान अमोषक्षेपा कहिए वृथा नाहीं है लगना जाका, सो शक्ति लक्ष्मण के अंगों लग कैसी सोहती भई मानो प्रेमकी भरी बधू ही है। सां लक्ष्मण शक्ति प्रहार कर परार्धन भया है शरीर जाका सी भूमि पर पडा जैसे वजका मारा पहड पर सो ताहि भूमि पर पड़ा देख श्रीराम कमललोचन शोकको दबाय त्रु घात करिव निमक्ष उद्यमी भए, सिंहाक रथ चढे क्रांधके भरे शत्रुको तत्कालही रथ हित किया तष रावण और रथ चढा तब रामने रावण का धनुष तोडा बहुर रावण दूजा धनुप लिया तितने रामने रावण का दूजा रथ भी ताडी सो रामक बाणानकर विह्वल हुआ रावण धनुषवाण लेयवे असमर्थ भया तीन वाण निकर राम रावण का रथ तोड डारै वह बहुरि स्थ चढे सो अत्यन्त खेदखिन्न भया । छेदा है था बक्तर जाका सो छहबार रामने रथरहित किया तथापि रावणअद्भुतपराक्रमका धारा राम कर देता न गया तब २.म आश्चर्य पाय राणसे कहते भए-तू अल्पायु नाही, कोइयक दिन श्रायु वाकी है तात मेरे बाणनिकर न मूश मेरी भुजाकर चलाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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