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________________ इकावनवा पर्ग भई-हे तात धन्य तिहारी जिनेश्वरविणे भक्ति तुम काहु तरफ जाने हुते सो साधुनिकी रक्षा करी हमारे कारण करि वन में उपद्रा भ पा पो पुनि ध्य न बह ध्यान न डिगे तब इन नने पूछी तुम कौन पर निर्जन स्थानक कौन कारण रहो हो तब सबनिमें बडी बहिन कहती भई-यह दधिमुख नामानगर जहां राजा गन्धर्व ताकी हम तीन पुत्री बडी चन्द्ररेखा दूनी विद्युत्प्रभा तीजी तरंगमाला सर्वगोत्रको वल्लभ सो जेते विजयाधके विद्याधर राजकुमार हैं वे सब हमारे विवाहके अर्थ हमारेपितामयाचना करते भए अर एक दुष्ट अंगारक सो अति अभिलाषी निरंतर कामके दाहकर आतापरूप तिष्ठे, एक दिन हमारे पिताने अष्टांग निमित्तके वेत्ता जे मुनि तिनको पूछा हे भगवान ! मेरी पुत्रीनिका वर कौन होयगा, तब मुनि कही जो रणसंग्रामविणे साहसगतिको मारेगा, सो तेरी पुत्रिनिका वर होयगा, तब मुनिके अमोघ वचन सुनकर हमारे पिताने विचारी, विजियार्धकी उत्तर श्रेणीविष श्रेष्ठ जो साहसगति ताहि कौन मार सके जो साहि मारे सो मनुष्य या लोकविष इंद्र समान हे अर मुनिके वचन अन्यथा होय नाहीं सो हमारे माता पिता अर सकल कुटुम्ब मुनिके वचन पर दृढ भए अर अंगारक निरंतर हमारे पितासू याचना करे सो पिता हमको न देय, तब यह अति चिंतावान दुःखरूप वैरको प्राप्त भया अर हमारे यही मनोरथ उपजा जो वह दिन कब होय हम साहसगतिके हनिवेवरेको देखें, सो मनोनुगामिनी नाम विद्या साधिवेको या भयानक वनविषे आई, सो अनुगामिनी नामा विद्या साधते हमको बारवां दिन है अर मुनिनिको आठमा दिन है । आज अंगारकने हमको देख क्रोथकर वन. विषे अग्नि लगाई, जो छह वर्ष कछुइक अधिक दिननिविष विद्या सिद्ध होय हमको उपसर्गते भय न करवे कर बारह ही दिनविय विद्या सिद्ध भई । या आपदावि हे महाभाग ! जो तुम सहाय न करते तो हमारा अग्निकर नाश होता अर मुनि भस्म होते, तातै तुम धन्य हो, तब हनुमान कहते भये तिहारा उद्यम सफल भया । जिनके निश्चय होय तिनको सिद्धि होय ही, थन्य निर्मल बुद्धि तिहारी बड़े स्थान हविष मनोरथ, धन्य तिहारा भाग्य ऐसा कहकर श्रीराम के किहकंधापुर श्रावनेका सकल वृत्तांत कहा अर अपने रामकी आज्ञा प्रमाण लंका जायवेका वृत्तांत कहा ताही समय वनके दाह शांति होयवेका अर मुनि उपसर्ग दूर होनेका वृत्तांत राजा गंधर्व सुन हनूमानपै आया । विद्याधरनिके योगकरि वह वन नंदनवन जैसा सोभता भया अर राजा गंधर्व हनूमानके मुख करि श्रीरामका किहकंधापुर विराजनेका वृत्तांत सुन अपनी पुत्रिनिसहित श्रीरामकै निकट आया। पुत्री महाविभूतिकर रामको परणाई, राम महाविवेकी ये विद्याधरनिकी पुत्री अर महाराज विभूति कर युक्त हैं तोहू सीता विना दशोदिशा शून्य देखते भए, समस्त पृथिवी गुणवान जीवनितें शोभित होय है अर गुणवंतनि विना नगर गहन वन तुल्य भास है कैसे हैं गुणवान जीव ? महामोहर है चेया जिनकी अर अति सुन्दर हैं भाव जिनके, ये प्राणी पूर्योति कर्मके फलकरि सुख दुःख भोगवे हैं तातें जो सुखके अर्थी हैं वे जिनरूप सूर्यकरि प्रकाशित जो पवित्र जिनमार्ग ताविर्षे प्रवृत्ते हैं। इति श्रीरविषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ, ताकी भाषा वचनिकाविषै रामको राजा गंधर्गकी कन्यानिक। लाभ गर्णन करनेबाला इकावनमा पर्न पर्ण भया ॥५१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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