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________________ पंग-पुराण थर इन्द्रनीलके पर्वतममान भासता भया जैसे सांपकी कांचली दर होय तैसे सुग्रीवका रूप दर होगया तब जो आधी सेना बानरवंशिनिकी याके साथ हुती सो याते जुदी याके सन्मुख होय युद्धको उद्यमी भई सब बानरबंशी एक होय नानाप्रकारके आयुषनिकरि साहसगतिसों युद्ध करते भए सो साहसगति महा तेजस्वी प्रयल शक्तिका स्वामी सब बानरवंशिनिको दशोंदिशा को भगाता भया जैसे पवन धूलको उडावे बहुरि साहसगति धनुष बाण लेय राम पै आया सो मेघमंडल समान वाणनिकी वर्षा करता भया, उद्धत है पराक्रम जाका, साहसगतिके अर श्रीराम के महायुद्ध भया प्रवल है पराक्रम जिनका ऐसे राम रणक्रीडामें प्रवीण क्षुद्वाणनिकारि साहसगतिका - तर तोडने भए अर तीक्ष्ण वाणनिकरि साहसगतिका शरीर चालिनी समान कर डारा सो प्राणरहित होय भूमिमें पडा सबनि निरख निश्चय किया जो यह प्राणरहित है तब सुग्रीव राम लक्षण की महास्तुति कर इनको नगरमें लाया, नगरकी शोभा करी, सुग्रीको सुताराका संयोग भया सो भोगसागर में मग्न होय गया, रात दिनकी सुध नाही, सुतारा बहुत दिननिमें देखी सो मोहित होगया अर नन्दनवनकी शोभाको उलंघे है ऐसा आनन्द नामा वन वहां श्रीरामको राखे । ता वनकी रमणीकताका वर्णन कौन कर सके जहां महामनोग्य श्रीच. न्द्रप्रभुका चैत्यालय वहां र म लक्ष्मण ने पूजा करी पर विराधितको आदि दे सर्व कटकका डेरा वनमें भया खेदरहित तिष्ठे. सुग्रीवकी तेरह पुत्री रामचन्द्र के गुण श्रवणकर अति अनुगग भरी वरिवेकी बुद्धि करती भई, चन्द्रमा समान है मुख जिनका तिनके नाम सुनों चन्द्राभा, हृदयावली हृदयथर्मा, अनुधरी, श्रीकांता, सुन्दरी, सुरवती, देवांगना समान है विभ्रम जाका, मनोवाहिनी मनमें बसनहारी, चारुश्री, मदनोत्सवा, गुणवती अनेक गुणनिकर शोभित, अर पमावती फूले कमल समान है मुख जाका, तथा जिनमती सदा जिनपूजा में तत्पर । ए त्रयोदश कन्या लेकर सुग्रीव राम पै पाया, नमस्कारकर कहता भया-हे नाथ ! ये इच्छाकर आपको घरें हैं, हे लोकेश ! इन कन्यानिके पति होवो इनका चित्त जन्मगीते यह भया जो हम विद्याधरनिको न वरें, आपके गुण श्रवणकर अनुरागरूप भई हैं यह कहकर रामको परणाई ये कन्या अति लज्जाकी भरी नम्रीभूत हैं मुख जिनका रामका श्राश्रय करती भई, महासुन्दर नवयौवन जिनके गुण वर्णन में न आवें बिजुरी समान सुर्णपमान कमलके गर्भ समान शरीरकी कांति जिनकी ताकर आकाशमें उद्योत भया । वे विनय रूप लावणता कर मंडित रामके समीप तिष्ठीं सुन्दर है चेष्टा जिनकी । यह कथा गौतमस्वामी राजा श्रेणिक कहे हैं-हे मगधाधिपति पुरुषनिम सूर्य समान श्रीराम सारिखे पुरुष निका चित्त विषय वासनाते विरक्त है परन्तु पूर्व जन्मके सम्बन्धसूकई एक दिन विरक्त रूप गृह में रह वहुरि त्याग करेंगे। इति श्रीरावर्षणाचार्यविरचितमहापद्मपुगणतस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषावनिकावि सुग्रीवका आख्यान वर्णन करनबाला सैतालीसवां पर्व पूर्ण भया ॥४७॥ अथानन्तर ते सुग्रीव की कन्या रामके मनमोहिवे के अर्थ अनेक प्रकारकी चेष्टा करती भई मानो देवलोक हात उतरी हैं वीणादिक वजावना मनोहर गीत गावना इत्यादि अनेक सुन्दर लीला करता भई तथापि रामचन्द्र का मन न मोहा , सब प्रकारके विस्तीर्ण विभव प्राप्त भए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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