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________________ चौवालीसगां पर्ण खेद खिन्न भया पूर्व अवस्थाविषे पुत्र पूर्णमासी के चन्द्रमा समान हुता सो महा भयानक भासता भया । खरपणने अपने घर आय अपने कुटम्बसे मन्त्र किया तब कैएक मंत्री कर्कशचित्त हुते वे कहते भये-हे देव ! जाने खडग रत्न लिया अर पुत्र हता ताहि जो ढीला छोडोगे तो न जानिये कहा करै, सो ताका शीघ्र यत्न करहु पर कैएक विवेकी कहते भए-हे नाथ ! यह लघु. कार्य नाही सर्व सामन्त एकत्र करहु अर रावण ह पत्र पठावहु जिनके हाथ सूर्यहास खडग आया ते सामान्य पुरुष नाही ताते सर्व सामंत एकत्रकर जो विचार करना होय सो करहु, शीघ्रता न करो, तब रावसके निकट तो तत्काल दूत पठाया, शीघ्रगामी अर तरुण सो तत्काल रावण गया रावणका उत्तर पीछा आवे ताके पहिले खरदूषण अपने पुत्रके मरणकर महा द्वेषका भरा सामन्तनिस्कहता भया, वे रंक विद्याबल रहित भूमिगोचरी हमारी विद्याधरनिकी सेनारूप समुद्रके तिरनेको समथं नाहीं। धिक्कार हमारे सूरपनेको जो और का सहारा चाहें हैं हमारी भुजा हैं वही सहाई हैं अर दूजा कौन ? ऐसा कहकर महा अभिमानको थरे शीघ्र ही मन्दिर मू निकसा आकाश मार्ग गमन किया तेजरूप है मुख जाका सो ताहि सर्वथा यद्धको सन्मुख जान चोदइ हजार राजा संग चाले, सो दण्डक वनमें आए तिनकी सेनाके बादित्रांनके शब्द समुद्रके शब्द समान सीता सनकर भयको प्राप्त भई । हे नाथ ! कहा है, कहा है, ऐसे शब्द कह पतिके भंग सू लगी जैसे वेल कल्पवृक्ष संलगे तब आप कहते भए-हे प्रिये ! भय मतकर, याहि धीर्य बंधाय विचारते भए-यह दुर्धर शब्द सिंहका है अक समुद्र का है अक दुष्ट पक्षिनिका है अक आकाश पूरगया है ? तब सीतास् कहते भये हे प्रिये, दुष्टपक्षी हैं जे मनुष्य अर पशुनिको लेजाय हैं धनुष टंकारते इनै भगाऊ हूं इतनेहीमें शत्रकी सेना निकट आई नाना प्रकारके श्रायुपनिकर युक्त सुभट दृष्टि परे, जैसे पवन के प्रेरे मेषघटानिके समूह विचरें तेसे विद्याधर विचरते भए । तब श्रीराम विचारी ये नन्दीश्वर द्वीपको भगवान की पूजाके अथ देव जाय हैं । अथवा पासनिके बीडेमें काहू मनुष्यको हतकर लक्ष्मण खडगल लाया अर वह कन्या बन आई हुती सो कुशील स्त्री हुती ताने ये अपने कुटुबके सामंत प्रेरे हैं। तातें अब परसेना समीप आए निश्चित रहना उचित नाही, धनुषकी ओर दृष्टि धरी पर वक्तर पहिरनेकी तैयारी करी तब लक्षण हाथ जोड सिर नवाय विनती करता भया-हे देर, मोहि तिष्ठते आपको एता परिश्रम करना उचित नाहीं। आप राजपुत्रीकी रक्षा करहु मैं शत्रुनिके सन्मुख जाऊ हूं। सो जो कदाचित् भीड पडेगी तो मैं सिंहनाद करूंगा, तब आप मेरी सहाय करियो । ऐसा कहि कर बक्तर पहर शस्त्रथार लक्ष्मण शत्रुनिके संमुख युद्धको चला सो वे विद्य पर लदाणको उत्तम प्राकारका थारनहारा बीराथिवीर श्रेष्ठ पुरुष देख जैसे मेव पर्वतको वेढे तैसे बढते भए । शक्ति मुरगर सामान्य चक्र बरछी वाण इत्यादि शस्त्रनिकी वर्षा करते भए सो अकेला लक्ष्मण सर्व विद्याधरनिके चलाए वाण अपने शस्त्रनिकरि निवारता भया अर आप विद्याधरनिकी ओर आकाशमें वज्रदंड वाण चलायता भया । यह कथा गौतमस्वामी राजा श्रेणि मूकहे हैं-हे राजन. अकेला लक्ष्मण विद्याथरनिकी सेनाको बाणनिकरि ऐसा रोकता भया जैसे संघमी साधु आत्मज्ञानकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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