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________________ उनतालीसवा पव ३११ हरिवे समर्थ, तिहारा आग्रह दुर्निवार है । ऐसा कहकर वह पतित्रता पतिके पीछे चली खिन्न भए हैं- चरण जाके पहाडके शिखर पर ऐसी शोभे मानों निर्मल चन्द्रकांति ही है श्रीरामके पीछे र लक्ष्मणके आगे सीता कैमी सोहै मानों चन्द्रकातिर इंद्रनीलमणिके मध्य पुष्पराग मणि ही है, ता पर्वतका आभूषण होती भई । राम लक्ष्मणको यह डर है जो कहीं यह गिरिसे गिर न पडे तातें याका हाथ पकड लिए जाय हैं, वे निर्भय पुरुषोत्तम विषम हैं पाषाण जाके ऐसे पर्वतको उलंघकर सीतासहित शिखरपर जाग पहुंचे । तहां देशभूषण पर कुलभूषण नामा दीय मुनि महाध्यानारूढ दोऊभुज लुबाए कायोत्सर्ग आसन थरे खडे, परम तेजकर युक्त समुद्र सारिखे गंभीर गिरिसारिखे स्थिर शरीर अर आत्माको भिन्न भिन्न जाननहारे, मोहरहित नग्न स्वरूप यथा जातरूपकं धरनहारे, कांतिके सागर नवयौवन परम सुन्दर महा संगमी श्रेष्ठ हैं आकार जिनके जिनभाषित धर्मके आराधनहारे तिनको श्रीराम लक्ष्मण देखकर हाथ जोड नमस्कार करते भए । अर बहुत आश्चर्यको प्राप्त भए, चित्तविषै चिभवते भए जो संसारके सर्व कार्य असार हैं 1 दुःखके कारण हैं । मित्र द्रव्य स्त्री सर्व कुटुम्ब र इन्द्रियजनित सुख यह सब दुःख ही हैं एक धर्म ही सुखका कारण है । महा भक्तिके भरे दोऊ भाई परम हर्षको धरते विनयकार नीभूत हैं शरीर जिनके, मुनिनिके समीप बैठे । ताही समय असुरके श्रागमते महा भयानक शब्द भया । मायामई सर्प र बिच्छू ति नकर दोनों मुनिनिका शरीर बेष्टित होय गया । सर्प अति भयानक महा शब्द के करणहारे काजलसे कारे चलायमान हैं जिहा जिनकी अर अनेक वर्णके अतिस्थून विच्छु तिनकरि मुनिनि के अंग बेढे देख, राम लक्ष्मण असुरपर कोपको प्राप्त भए । सीता भयकी भरी भरतार के अंग लिपट गई, तब आप कहते भए, तू भय मत करे याको वीर्य बंधाय दोऊ सुभट निकट जाय सांप विच्छु मुनिनिके अंगते दूर किये, चरणारविंदकी पूजा करी अर योगीश्वर निकी भक्ति वंदना करते भए । श्रीराम वीणा लेय बजावते भए अर मधुर स्वरसे गावते भए र लक्ष्मण गान करता भया, गानविषै ये शब्द गाये - महा योगीश्वर धीर वीर मन वचन कायकर बंदनीक हैं मनोग्य है चेष्टा जिनकी, देवनिहूविर्षे पूज्य महाभाग्यवंत जिनने अरिहन्तका धर्म पाया, जो उपमारहित अखंड महा उत्तम तीन भवनविषै प्रसिद्ध जे महामुनि जिनधर्मके धुरंधर ध्यानरूप, वज्र दण्डकरि महामोहरूप शिलाको चूर्ण कर डारें अर जे धर्मरहित प्राणिनिको अधिक जान दयाकर विवेकके मार्ग लावें । परम दयालु आप तिरें औरनिको तारें । या भाति स्तुति कर दोऊ भाई ऐसे गावें, जो वनके तियंचनिके हू मन मोहित भए अर भक्ति की प्रेरी सीता ऐसा नृत्य करती भई, जैसा सुमेरुकेविषै शची नृत्य करे । जाना है समस्त संगीत शास्त्र जाने, सुन्दर लचणको धरे, अमोलक हार मालादि पहिरे परम लील कर युक्त दिखाई है प्रगटपणे अद्भुत नृत्य की कला जाने, सुन्दर है बहुलता जाको, हाव भावादिविषै बण मंद मंद चरगनि को धरती महा लयको लिये मावती गीत अनुसार भाव को बतावती अद्भुत नृत्य करी महाशोभायमान भासती भई भर असुरकृत उपद्रवको मानो सूर्य देख न सका, सो अस्त भया पर संध्याहू प्रकट होय जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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