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________________ तीसग पर्ने २५३ कालके जे महापुरुष तिनके चरित्र सुने । लोकालोकका निरूपण अर छह द्रव्यनिका स्वरूप, वह कायके जीयों का वर्णन, छह लेश्याका व्याख्यान, घर छहों कालका कथन पर कुलकरों की उत्पत्ति र अनेक प्रकार क्षत्रियादिकोंके वंश र सप्त तच्च, नत्र पदार्थ पंचास्तिकायका वर्णन आचार्य मुख श्रवणकर सर्व मुनियोंको बारम्बार नमस्कारकर राजा धर्मके अनुराग करि पूर्ण नगर में आए। जिन धर्मके गुणों की कथा निकटवर्ती राजावों पर मंत्रियों से कर र सबको विदाकर महल में प्रवेश करता भया । विस्तीर्ण हैं विभव जाके र राणी लक्ष्मी तुल्य परमकांतिकर संपूर्ण चंद्रमा समान सम्पूर्ण सुंदर बदनकी धरणहारी, नेत्र अर मनकी हरणहरी, हाव भाव विलास विभ्रमकर मंडित, महा निपुण परम विनयकी करणहारी, प्यारी तेई भई कमलों की पंक्ति विनको राजा सूर्य समान प्रफुल्लित करता भया ।। इति श्रीरमिषेणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वाचनिका गि अष्टान्हिका का आगम अर राजा दशरथका धर्म श्रवण कथन बन करने वाला उनतीसनां पर्व पूर्ण भया ॥ २६ ॥ -**०*०* अथानन्तरमेघ आडम्बरकर युक्त जो वर्षाकाल सो गया अर आकाश संभारे खड्गकी प्रभा समान निर्मल भया । पद्म महोत्पल पुंडरीक इंदीवर दि अनेक जाति के कमल प्रफुल्लित भए । कैसे हैं कमलादि पुष्प, विषयी जीवनिको उन्माद के कारण हैं अर नदी सरोवरादिवि जल निर्मल भया जैसा मुनिका चिच निर्मल होय तैना पर इंद्रधनुष जाते रहे । पृथ्वी कर्दमरहित होय गई। शरदऋतु मानों कमुदोंके प्रफुल्लित होनेसे हंसती हुई प्रकट भई विजुरियोंके चमत्कारकी संभावना ही गई। सूर्य तुलाराशिपर आया । शरद के श्व ेत बादरे कहूं कहूं दृष्टि आवें सो क्षणमात्र में दिलाय जाय । निशारूप नवोढा स्त्री संध्या के प्रकाशरूप महा सुंदर लाल अथरोंको परे चांदनीरूप निर्मल बस्त्रनिको पहिरे चंद्रमारूप है चूड़ामणि जिसका सो अत्यंत शोभती भई र वापिका निर्मल जलकी भरी मनुष्यनिके मनको प्रमोद उपजावती भई । चवा चकवी युगल करें हैं. केलि जहां अर मदोन्मत्त जे सारिस वे करें हैं नाद जहां, कमलनिके वनमें भ्रमते जो राजहंस अत्यन्त शोभाको धरे हैं सो सीताकी हैं चिंता जाके ऐसा जो भामंडल ताहि यह ऋतु सुहावनी न लगी, अग्नि समान भासे है जगत जाको । एक दिन यह भामंडल लज्जाको तजकर पिताके आगे बसंतध्वज नामा जो परममित्र उसे कहना भया । कैसा है भामंडल रतिसे पीडित है अंग जका, मित्रसू कहे है- हे मित्र ! तु दीर्घशोची है भर परकार्यविष उद्यमी है एता दिन होगए तोहि मेरी चिंता नाहीं, व्याकुलतारूप भंवरको घरे जो आशारूप समुद्र तामें मैं डूबा हूं मोहि आलंबन कहा न देवो ऐसे आर्तध्यानकर युक्त भामंडलके वचन सुन राजसभा के सर्वलोक प्रभावरहित विषादसंयुक्त होगए तब तिनको महा शोककर तप्तायमान देख भामंडल लज्जा से अधोमुख हो गया तब एक वृहत्केतुनामा विद्याधर कहता भया अब कहा छिपाव राखो कुमारसों सर्व वृत्तांत यथार्थ कहो जाकरि भ्रांति न रहे त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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