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________________ बाइसमा पन २७ पटराणीका पद दिया अर बहुत दिन निष्कण्टक राज किया बहुरि अपने बड़ोंके चरित्र चित्त विष धरि संसारकी मायातें निस्पृह होय सिंहिका राणीका पुत्र जो सौदास ताहि राज देय आप धीर वीर युनिप्रत घरे, जो कार्य परम्पराय इनके बड़े करते आए हैं सो किया । सौदास राज कर सो पापी मांस आहारी भया इनके वंशमें किसीने यह आहार न किया यह दुराचारी अष्टान्हिकाके दिचसमें भी अभक्ष्य पाहार न तजता भया। एक दिन रसोईदारसे कहता भया कि मेरे मांस भक्षणका अभिलाष उपजा है, तब तिसने कही--हे महाराज! ये अष्टानिहकाके दिन हैं सर्व लोक भगवानकी पूजा अर ब्रत नियमविषै तत्पर हैं पृथिवीपर धर्मका उद्योत होय रहा है इन दिनों में यह वस्तु अलभ्य है । तब राजाने कही या वस्तु विना मेरा मन रहै नाही, तातें जा उपाय कर यह वस्तु मिलै सो कर । तब रसोदार यह राजाकी दशा देख नगरके बाहिर गया एक मना हूवा वालक देखा नाही दिन वह मृा था सो ताहि वसमें लपेट वह पापी ले आया। स्वादु वस्तुओंसे उसे मिलाय पकाय राजाको भोजन दिया सो राजा महादुराचारी अभक्ष्यका भक्षण कर प्रसन्न भया पर रसोईदारतें एकान्तमें पूछता भया फि हे भद्र ! यह मांस तू कहांसे लाया अब तक ऐसा मांस मैंने भक्षा नहीं किया हुता तब रसोईदार अभयदान मांग यथावत् कहता भया तब राजा कहता भया ऐसा ही मांस सदा लाया कर । तब यह रसोईदार बालकोंको लाडू बांटता भया, तिन लाडुवोंके लालचक्श बालक निरन्तर आवें सो बालक लाड़ लेकर जाबें तब जो पीछे रह जाय ताहि यह रसोईदार मार राजाको भक्षण करावे निरन्तर बालक नगरविषे छीजने लगे तब यह वृत्तांत लोकोंने जोन रसोईदारसहित राजाको देशतें निकाल दिया अर याकी र णी कनकप्रभा ताका पुत्र सिंहरथ ताहि राज्य दिया तब यह पापी सर्वत्र निरादर हुआ महादुखी पृथिवीपर भ्रमण किया करै । जे मृतक बालक मसानविषे लोक डार भावे तिनको मर जैसे सिंह मनुष्यों का भक्षण करै ताते याका नाम सिंहसौदास पृथिवीविष प्रसिद्ध भया बहुरि यह दक्षिण दिशाको गया तहां मुनिका दर्शन कर धर्म श्रवणकर श्रावकके व्रत थरता भया बहुरि एक महापुर नाम नगर तहांका राजा मूवा ताके पुत्र नहीं था तब सबने यह विचार किया कि जिसे पाटबंध हस्ती जाय कांधे चढाय लावै सो राजा होवै तब याहि कांधे चढ़ाय हस्ती ले गया सव याको राज दिया यह न्यायसंयुक्त राज्य करे अर पुत्र के निकट दूत भेजा कि तू मेरी आज्ञा मान, तब याने लिखा तू महा निन्ध है मैं तोहि नमस्कार न करूं तब यह पुत्रपर घड़कर गया, इसे प्रावता सुन लोग भागने लगे कि यह मनुष्योंको खायगा पुत्र अर याके महायुद्ध भया सो पुत्र को युद्धमें जीत दोनों ठौरका राज्य पुत्रको देकर भाप महावैराग्यको प्राप्त होय तपके अर्थ बनमें गया। अथानन्तर याके पुत्र सिंहरथके ब्रह्मरथ पुत्र भया ताके चतुर्मुख, ताके हेमरथ, ताके सत्यरथ, ताके पृथूरथ, ताके पयोरथ, वाके दृढरथ, ताके सूर्यरथ, ताके मानधाता, ताके वीरसेन, साके पृथ्वीमन्यु, वाके कमलबन्धु दीसिसे मानों पूर्य ही है समस्त मर्यादामें प्रवीण, ताके रवि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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