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________________ इक्कीसवां पर्व २०७ कैसा है वह सुन्दर स्त्रीरूप कमलनिका वन ? सुगन्धकरि व्याप्त किया है दशों दिशाका समूह जाने, बहुरि महादिव्य जे सुगन्धादिक तेई हैं मकरंद जामें और सुगन्धताकर भ्रम हैं भ्रमरोंका समूह जामैं अर हरित मणिकी जे प्रभा तिनके जो पुंज सोई हैं पत्रनिका समूह जाविषै पर दांतों की जो पंक्ति तिनकी जो उज्वल प्रभा सोई है कमल तंतु जाविषै श्रर नानाप्रकार आभूषणों के जे नाद तेई भए पक्षी उनके शब्दकरि पूरित है अर स्तनरूप जे चकवे तिनकर शोभित है अर उज्ज्वल कीर्तिरूप जे राजहंस तिनकरि मंडित हैं सो ऐसे अद्भुत विलास तजकर वैराग्यके अर्थ देवों पुनीत पालिकी में चडकर विपुल नाम उद्यानविषै गए । कैसे हैं भगवान मुनिसुव्रत ? राजनित्रे मुकुटमणि हैं सो वनमें पालकीतें उतरकर अनेक राजावोसहित जिनेश्वरी दीक्षा भरते भए । बेले पारणा करना यह प्रतिज्ञा आदरी । राजगृह नगर में वृषभदत्त महाभक्तिकर श्रेष्ठ कर पारणा करावता भया । आप भगवान महाशक्तिकरि पूर्ण कुछ क्ष बाकी वाघांसे पीडित नहीं परन्तु आचारांग सूत्रकी आज्ञा प्रमाण अन्तरायरहित भोजन करते भये । वृषभदत्त भगवानको आहार देय कृतार्थ भया । भगवान कैयक महीना तपकर चंपाके वृक्ष के तले शुक्लsaनके प्रताप घातिया कर्मो का नाश कर केवलज्ञानको प्राप्त भए तब इन्द्रसहित देव आयकर प्रणामकर स्तुतिकर धर्मश्रवण करते भये । आपने यति श्राकका धर्म विधिपूर्वक वर्णन किया । धर्म श्रवणकर कई मनुष्य मुनि भए, कई मनुष्य श्रावक भए कई तिर्यंच श्रावक के व्रत धरते भये अर देवोंको व्रत नाहीं सो कई देव सम्यक्त्वको प्राप्त होते भये । श्रीमुनिसुव्रतनाथ धर्म तीर्थका प्रवर्तन कर सुर असुर मनुष्योंसे स्तुति करने योग्य अनेक साधुओं सहित पृथ्वीपर विहार करते भये । सम्मेद शिखर पर्वत से लोकशिखर को प्राप्त भये । यह श्रीमुनिसुव्रतनाथका चरित्र जे प्राणी भावधर सुनें तिनके समस्त पाप नाशको प्राप्त होंय वर ज्ञानसहित तपसे परम स्थानको पावें, जहोतें फेर आगमन न होय ॥ अथानन्तर मुनिसुव्रतनाथक पुत्र राजा सुत्रत बहुत काल राज्यकर दक्ष पुत्रको राज्य देय जिनदीक्षा घर मोक्षको प्राप्त भए र दक्षके एलावर्धन पुत्र भया, ताके श्रीवृक्ष, ताके संजयंत, ताके कुगिम, ताके महारथ, ताके पुलोम इत्यादि अनेक राजा हरिवंश कुलमें भए तिनमें कैयक मुक्तिको गए, कई एक स्वर्गलोक गय। या भांति अनेक राजा भत्रे बहुरि याही कुल एक राजा वासवकेतु भया मिथिला नगरीका पति ताके त्रिपुला नामा पटराणी, सुंदर हैं नेत्र जाके, सो वह रानी परम लक्ष्मीका स्वरूप, ताके जनक नामा पुत्र होते भये । समस्त नयोमं प्रवीण वे राज्य पाय प्रजाकों ऐसे पालते भए जैसे पिता पुत्रको पालै । गौतमस्वामी कहे हैं - हे श्रेणिक ! यह जनककी उत्पत्ति तुझे कही, जनक हरिवंशी हैं। अब ऋषभदेवके कुलमें राजा दशरथ भए तिनका वर्णन सुन - ३वाकुवंश में श्री ऋषभदेव निर्माण पधारे बहुरि तिनके पुत्र भरत भी निर्माण पवारे सो ऋषभदेव के समय से लेकर मुनिसुव्रतनाथके समय पर्यंत बहुत काल बीता, तामें असंख्य राजा भए । कैयक महादुर्द्धर तपकर निर्वाको प्राप्त भए कई एक महद्रि भए, कैयक इंद्रादिक बढी ऋद्धिके धारी देव भए, कैथक पापके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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