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________________ २०० पग-पुराण चौरामी हजार वर्ण, उन्न मवेंका पर्चा न ५५ हजार वर्ष, बोसवेंका तीस हजार वर्ष, इक्कीसवें का दश हज र वर्ष, बाईसवेंका हजार वर्ष, तेईसवेंका सौ वर्ण, चौबीसवें का बहरार वर्षका मायु प्रमाण जानना। ___अथानन्तर ऋषभदेवके पहिले जे चौदह कुलकर भए तिनके कायका वर्णन करिए हैप्रथमकुलकर की काय अठारहमो धनुप, दूसरेकी तेरासो धनुन, तीसरेकी पाठलो थनुर, चोथेकी सात सो पिचत्तर धनुष, पांचवेंको साढे सातसो धनुष, छठे की सवा सातमो धनुष, सातवेंकी सासो धनुष, आठवेंकी पौने सातसो धनुष, नवमें की माढ़े छैना धनुष. दम की सवा छैसो धनुष, ग्यारबेकी छैनों धनुष, बारवेंकी पौन छैपो धनुष, तरवका साढे पांचसा धनुष, चौदहवेंकी सवा पांचसो धनुष । अब इन कुलकरों की आयु का वर्णन करें हैं—पहिलेकी आयु पल्यका दसमा भाग, दूजेकी पल्पका सौयां भाग, तीजेकी पत्यका हजारवां भाग, चौथे की पल्यका दस हजारवां भाग पांचौकी पन्यका लाखयां भाग, छठे की पल्यका दसलाखो भाग, सातवेंकी पल्यका कोड़यां भाग, आठवेंकी पल्यका दस कोडयां भाग, नीमको पल्यका सोकोडवां भाग, दशवेंका पल्यका हजार कोडवां माग, ग्यारवेंको पन्यका दस हजार कोड: भाग, बारवेंकी पन्यका लाख कोडवां माग, तेरवेंकी पत्यका दस लाख कोड. भाग, चौदहव का कोट पूर्व की आयु भई । आग बारह चक्रवर्तक भवांतर कहै हैं-प्रथम चक्रवर्ती भरत श्रीऋषभदेवके यशोवती राणी ताको नंदाह कहै है साके पुत्र भया भरतक्षेत्रका प्रथिते, पूर्वभवविष डराकनी नगरोविष पीठ नाम राजकुमार थे। ते कुशसेन स्वामीके शिष्य हाय मुनत धर सर्वार्थसिद्धि गए तहान चयकर षट् खण्डका राज्य कर फिर मुनि होय अंतर्मुहूर्त में केवलज्ञान उपजाय निर्वाणको प्राप्त भए बहुरि पृथिवीपुर नामा नगरविषे राजा विजय ते यशोधरा नामा मुनिके निकट जिनदीक्षा धर विजयनाम विमान गए, तहति चयकर अयोध्याविर्ष राजा विजय राणी सुमंगला तिनके पुत्र सगर द्वितीय चक्रवर्ती मए, ते महाभोग भोगकर, इन्द्रसभान देव विद्याधरोस धारिये है श्राज्ञा जिनकी। वे पुत्रोंके शोकसे राज्यका त्यागकर अजितनाथके समोशरणमं मुनि दाय केवल उपजाय सिद्ध भए बहार पुंडरीकनी नामा नगरविष एक राजा शशिप्रभ ते विमल स्वामीका शिष्य होय अवेयक गये तहान चयकर श्रावस्ती नगरीमें राजा सुमित्र राणी भद्रपती तिनके पुत्र मघवा नाम तृतीय चक्री भए । तक्ष्मीरूप वेलके लिपटने का वृन । ते श्रीधर्मनाथ स्वामीक पाछे शांतिनाथके उपजनेसे पहिले भए समाधानरूप जिनमुद्रा धार सौधर्म स्वर्ग गए बहुरि चाथे चक्रवर्ती जे श्रीसनत्कुमार भए तिनकी आपकी गौतम स्वामीने बहुत बडाई करी तव राजा श्रांणक पूछते भए-हे प्रभा! कोन पुण्यकरि ऐसे रुपवान भए तब उनका चरित्र संघपताकर गणधर कहते भए । कैसा है सनत्कुमारका चरित्र ? जो सौ वर्षवि भी कोऊ कहनेको समर्थ नाहा यह जीव जब लग जैनधर्मको नहीं प्राप्त होय है तब मग तिथंच नारकी कुभानुष कुदेव गतिवि दुःख भोगे है जीवोंने अनन्त भव किए सोको लम कहिए परन्तु एक भव काहर हैं। एक गोवर्धन नामा ग्राम जहां भले मनुष्य बसें तहां एक बिनदर नाना पावक बडा गुरुस्था जैसे व जज स्थानसे. सागर शिराजगी है अरब मेरो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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