SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहवां पर्व सामान्य शस्त्रकर असाध्य है तब इन्द्रने अग्नि बाय रावणापर चलाया उससे र रणकी सेनाविक आकृलता उपजी जैसे वांसोंका वन जलै श्रर इसकी तड़तड़ात नि होय, अग्निकी जाला उठे तैसे अग्निबाण प्रज्वलित आया तब रावणने अपनी सेनाको व्याकुन देख तत्काल जलवाण चलाया सो मेघमाला उठी, पर्वत समान जलकी मटी धारा बरसने लगः क्षणमात्रमें अग्नि बाण बुझ गया । तब इन्द्रने रावणार तामस बाण चलाया उसकर दशों दिशामें अन्धकार हो गया, रावणके कटकविणे किसी को कुछ भी न सूझे तब रावणने प्रभास्त्र कहिए प्रकाश बांण चलाया उसकर क्षणमात्रमें सकल अन्धकार विलय होगया जैसे जिनशार.नके प्रभावकर मिथ्यात्वका मार्ग विलय जाय फिर रावणने कोपकर इन्द्र पर नाग बाण चलाया स महाकाले नाग चलाये मानों भयङ्कर है जिह्वा जिनकी, रन्द्रकै अर सकल सेनाकै लिपट गरे । मोर बेढ़ा इन्द्र अति व्याकुल भया जैग भवसामरविणे जीव कर्म जाजकर वेढा व्याकुन होय है तब इन्द्रने गरुड़वाण चितारा सो सुर्ण समान पीत पंखों के समूहकर पाका पीत हो ग | अर पंखोंकी परनकर रावण का कटक हालने लग मानों हिंडोलेमें भूले है, गड़के प्रभावकर न ग ऐसे विलाय गये जैसे शुक्लध्यानके प्रभाव र मौके बंध विलय हो जाय, जा इन्द्र नागपाणसे छूटकर जेठके सूर्य समान अति दारुणा तपना भया तर रावणने त्रलोक मण्डन हाथीको इन्द्रके ऐरावत हाथीपर प्रेरा । कै।। है लोकमण्डन ? सदा मद भरै हैं अर वैरियों को जीतनहारा है इन्द्रने भी ऐरावतको त्रैलोक्यमण्डन पर धकाया। दोनों ग र महा ग के भरे लड़ो लगे, भरै है मद जिनके, क्रूर हैं नेत्र जिनके, हालै हैं कर्ण जिनके, देदीप्यमान है विजुरी समान स्वर्णकी सांकल जिनके दोऊ हाथी शरदके मेघ समान अति गाजत परस्पर अति भयङ्कर जो दांत तिनके घातोंकर पृथ्वीको शब्ायमान करते चपल है ५र र जिना, परस्पर सूड़ोंसे अद्भुत संग्राम करते भये। तब रवणने उछलकर इन्द्र के हाथीके मस्तकपर पग धर अति शीघ्रताकर गज सारथी को पाद प्रहारतें नीचे डारा अर इन्द्रको वस्त्रसे बांधा अर बहुत दिलासा देकर पकड़ अपने गज पर ले आया अर रावणके पुत्र इन्द्रजीतने इन्द्रका पुत्र जयंत पाड़ा अपने सुप्रटीको मोपा अर आप इन्द्र के सुभटोंपर दौड़ा तारामणने मने किया—हे पुत्र ! अब रणले निवृत्त होगी क्योंकि समस्त विजयाधके जे निवासी विद्याधर तिनका सिर पकड़ लिया है अब सम त अपने अपने स्थानक जावो सुख से वो शालिसे चारल लिया तब परालका कहा काम ? जब रावणने ऐसा कहा तब इन्द्रजीत पिताशी आज्ञासे पीछे बाहुडा अर सर्व देवों की सेना शरदके मेष समान भागे गई जैसे पानकर शरद भेष विलय जाय, रावण की सेना में जीतके वादित बाजे, ढोल नगारे शंख झांझ इत्यादि अनेक वाटित्रोंका शब्द भया, इन्द्रको पकड़ा देख रावणकी सेना अति हर्षित भई । रावण लंकामें चलनेको उद्यमी भया, सूर्यके रथ समान रथ ध्वजावोंसे शोभित कर चंचल तुरंग नृत्य करते भए । अर मद झरते हुए नाद करते हाथी तिन पर भ्रमर गुंजार करे है इत्यादि महासनासे मंडिस राक्षसोंका अधिपति रावण लंकाके समीप आया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy