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________________ बारहगां पर्व बरछी तथा त्रिशूल पाश भुगएडी जातिके शस्त्र कुराडा मुद्गर वज्र पाषाण हल दण्ड कोख जातिके प्रस्त्र चां-नके बाण अर नाना प्रकारके शस्त्र तिनकर परस्पर अति युद्ध भया । परस्पर उनके रास्त्र उनने काटे उनके उन्होंने काटे, अति विकराल युद्ध होते परस्पर शस्त्रोंके घातसे अग्नि प्रज्वलित भई, रणविणे नाना प्रकारके शब्द होय रहै हैं, कहीं मार लो मार लो यह शब्द होय रहे हैं की एक रण २ कहीं किण २ त्रम २ दम २ छम २ पट २ छस २ दृढ़ २ तथा तट २ चट २ वध २ इत्यादि शत्रुओंकर उपजे अनेक प्रकारके जे शब्द उनसे रणमण्डल शब्दरूप हो गया । हाथियोंकर हा मारे गये, घोड़ोंकर घोड़े मारे गए, रथोंकर रथ तोड़े गए, पियादोंकर पियादे हते गए, हाथियोंसी मूडकर उछने जे जलके छांटे तिनकर शस्त्र सम्पात कर उपजी थी जो अग्नि सो शांत भई । परस्पर गज युद्धकर हाथियोंके दांत टूट पड़े, गजमोती विखर गए, योद्धावोंमें परम्पर यह आलाप भए-हो शुरवीर शात्र चला, कहा कायर होय रहा है । हे भटसिंह, हमार खडगका प्रहार सम्हार, हमारेसे युद्ध कर, यह मूबा तू अब कहां जाय है अर कोई कोई कहै है तू यह युद्धकला कहांसीखा, तरवार का भी सम्हारना न जाने है पर कोई कहै है तू इस रणने जा अपनी रक्षा कर तू क्या युद्ध करना जानै, तेरा शस्त्र मेरे लगा सो मेरो खाज भो न सिटी, तें वृथा ही धनीकी आजीविका अब तक खाई, अबतक ते युद्ध कहीं देखा नहीं, कोई ऐस कहे हैं तू क्यों कांप है, तू थिरता भज मुष्टि दृढ़ राख तेरे हायसे खड़ा मिरेगा इत्यादि योद्धावोंमें परम्पर पालाप होते भए । कैसे हैं योधा महा उत्साहरूप हैं, न मरनेका भय नहीं, अपने अपने स्वामीके आगे उभट भते दिख.ए, किसीकी एक भुजा शत्रु की गदाके प्रडारकर टूट गई तो भी एक ही हाथसे युद्ध कर रहा है । किसीका सिर टूट पड़ा तो बड़ी लड़े है, योधायक बालोंसे वक्षस्थल विदारे गए परन्तु मन न चिगे। सामंतो के सिर पड़े परन्तु मान न छडा । सूरवीरोंके युद्ध में मरण प्रिय है टसर जावना प्रिय नहीं, वे चतुर महा धीर वीर मला पराक्रमी महासुभट यशकी रक्षा क ते हुए रास्त्र के धारक प्राण त्याग करते भए परन्तु कायर होकर अपयश न लिया कोई इक सुभट माता हुप्रा भी बैरीके मारनेकी मांभेलापाकर क्रोधका भरा वैरीके ऊपर जाय पड़ा, उसको मार आप मरा । किसीके हाथसे शस्त्र शत्रुके शस्त्रघातकर निपात भए तब वह सामन्त मुष्टिरूप जो मुद्गर उसके घातकर शत्रुको प्राणरहित करता भया । कोई एक महाभट शत्रुओंको भुजाओंसे मित्रवत् आलिंगनकर ममल डारता भया, कोई एक सामन्त पर चक्रके योवाबों की पंक्ति को हणता हुआ अपने पक्षके योधावोंका मार्ग शुद्ध करता भया, कोई एक जो रणभूमिविणे परते संते भी वैरियोंको पीठ न दिखाबते भए सूधे पड़े । रावण अर इन्द्र के युद्ध में हाथी घोड़े रथ योधा हजारों पड़े, पहिले जो रज उठी थी सो मदोन्मत्त हाथियोंक मा झरनेकर तथा सामन्तोंके रुधिर प्रवाहकर दब गई, सामंतों के आभूषणों कर रत्नोंकी ज्योतिकर आकाशविष इंद्रधनुष हो गया। कोई एक योधा बाये हाथकर अपनी प्रांतां थामकर खड्ग काढ वैरी ऊपर गया महा भयकर कोई एक योधा अपनी मांख ही कर गाड़ी कमर बांधे होंठ डसता शत्रु ऊपर गया, कोई एक आयुधरहित होय गमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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