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________________ पभ-पुराण भर इन्द्र धनुषकर युन्छ मेघमालाओंके समूह तिनकर श्रावणमास पूर्ण होय ऐसे एक हजार ऊपर अधिक प्रक्षोहिणी दल रावणके होय चुका दिन दिन बढता जाय है अर हजार हजार देशोंकर सेवा योग्य रत्न नाना प्रकार गुणोंके समू-के धारणहारे उनकर युक्त अर चन्द्राकरण समान उज्ज्वल चमर जिसपर दुरे हैं, उज्वल छत्र सिर पर फिरे हैं, जिसका स्व सुन्दर है, महाबाहु महावली पुष्पक नामा विमान पर चढ सुमेरु समान स्थिर सूर्यसमान ज्योतिवंत अपने विमानादि बाहन सम्पदाकर सूर्यमण्डलको आच्छादित करता हुवा इन्द्रका विध्वंस मनमें विचारकर रावणने प्रयाण किया । कैसा है रावण, प्रबल है पराक्रम जिसका, मानों आकाशको समुद्र ममान करता मया, देदीप्यमान जे शस्त्र सोई भई कलोल पर हाथी घोड़े प्यादे ये ही भए जलचर जीव अर छत्र मरर भए अर चार तुरंग भए नाना प्रकारके रत्नोंकी ज्योति फैल रही है अर चमरोंके दएड मीन भए-हे श्रेणिक ! रवणकी विस्तीर्ण सेनाका वर्णन कहां लग करिये, जिसको देख कर देव डरें तो मनुष्योंकी बात क्या, इन्द्रजीत मेघनाद कुम्भकर्ण विभीषण खन्दूषण निकुम्भ कुम्भ इत्यादि बहुत सुजन रण में प्रवीण, सिद्ध है विद्या जिनको महाप्रकाशवन्त शस्त्र शास्त्र विचामें प्रवीण हैं जिनकी कड़िी है महासेनाकर युक्त देवताओंकी शोभाको जीतते हुये रावण के संग चले । विन्ध्याचल पर्वतके समीप सूर्य अस्त भया मानों रावणके तेजार बिलपा होय तेज रहित भया वहां सेनाका निवास भया मानो विन्ध्याचलने सेना सिर पर धारी हैं विद्याके बलसे नाना प्रकारके आश्रय कर लिये। फिर अपनी किरणों कर अन्धकारके समूहको दूर करना हुआ चन्द्रमा उदय भया मानो रावणके भयकर रात्री रलका दीपक लाई है और मानो निशा स्त्री भई, चांदनी कर निर्मल जो आकाश सोई वस्त्र उसको धरे ताराओंके जो समूह तेई सिरषि फूल गूथे हैं चन्द्रमा ही है बदन जाका । नाना प्रकारकी कथाकर तथा निद्राकर सेनाके लोकोंने रात्री पूर्ण करी फिर प्रभातके यादित्र बाजे मंगल पाठ कर रावण जागे। प्रभात क्रिया करी, सूर्यका उदय भया मानों सूर्य भुवनविष भ्रमणकर किसी ठौर शरण न पाया तब रावण हीके शरण आया। . पुनः रावण नर्मदाके तट आए। कैसी है नर्मदा ? शुद्ध स्फटिक मणि समान है जल जाका अर उसके तीर अनेक वनके हाथी रहै हैं सो जल में कैलि करे हैं उसकर शोभायमान है अर नाना प्रकारके पक्षियोंके समूह मधुर गान करै हैं सो मानों परस्पर संभाषण ही करें हैं। फेन कहिये झागके पटल उन कर मंडित है तरंगरूप जे भोंह उनके विलासकर पूर्ण है । भंवर ही हैं नाभि जाके पर चंचल जे मीन सेई हैं नेत्र जाके अर सुन्दर जे पुलिन तेई हैं कटि जाके, नाना प्रकारके पुष्पोंकर संयुक्त निर्मल जल ही है वस्त्र जाका, मानों साक्षात् सुन्दर स्त्री ही है उसे देखकर रावण बहुत प्रसन्न भए । प्रवल जे जलचर उनके समूहकर मण्डित है, गंभीर है, कहूं एक वेगरूप बहै है, कहूं एक मन्दरूप बहै है, कहूं एक कुण्डलाकार बहै है, नाना चेष्टाकर पूर्ण ऐसी नर्मदाको देखकर कौतुकरूप हुश्रा है मन जाका सो रावण नदीके तीर उतरे नदी भयानक भी है अर सुन्दर भी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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