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________________ पन-पुराण त्रैलोक्य मंडन नाम धरा, इसको पाय रावण बहुत हर्षित भया । रावणने हाथीके लाभका बहुत उत्सव किया अर सम्मेद शिखर पर्वतपर जाय यात्रा करी। विद्याधरोंने नृत्य किया । वह रात्रि वहां ही रहे । प्रभात हुवा, सूर्य उगा, सो मानों दिवसने मंगलका कलश रावणको दिखाया । कैसा है दिवस ? सेवाकी विधिमें प्रवीण है । तब रावण डेरामें आय सिंहासनपर विराजे । हाथीकी कथा सभामें कहते भये। ता समय एक विद्याधर आकाशके मार्ग रावण के निकट श्राया, अत्यन्त कम्पायमान जिसके पसेवकी बूंद झरे हैं, घायल हुआ बहुत खेदखिन्न अश्रुपात डारता, जर्जरा तनु जाका, हाथ जोड़ नमस्कार कर विनती करता भया । हे देव ! आज दशवां दिन है राजा सूर्यरज अर रक्षरज वानरवंशी विद्याधर तुम्हारे बलसेही है बल जिनमें सो आपका प्रताप जान अपनी किहकू नगरी लेनेके अर्थ अलंकारोदय नगर जो पाताललंका वहांसे उत्साहसे निकसे। दोनों भाई तुम्हारे चलसे महा अभिमान युक्त जगाको तृण समान माने हैं सो उन्होंने किहकूपुर जाय घेरा । वहां इन्द्रका यम नामः दिग्पाल सो उमके योधा युद्ध करनेको निकसे हाथ में हैं आयुध जिनके, बानरवंशियोंके अर यमके लाकोंमें महायुद्ध भया । परम्परा बहुत लोक मारे गए, तब युद्धका कलकलाट सुन यम आप निकसा, कैसा है यम ! महा क्रोधकर अतिभयंकर, न सहा जाय है तेज जाका, सो यमके आवते ही वानरवंशियोंका बल भागा । अनेक आयुथोंसे घायल भए। यह कथा कहता कहता वह विद्याधर मूर्छाको प्राप्त हो गया । तब रावणने शीतोपचारकर सावधान किया अर पूछा-'आगे क्या भया ? तब वह विश्राम पाय हाथ जोड़ फिर कहता भया-'हे नाथ! सूर्यरजका छोटा भाई रक्षरज अपने दलको व्याकुल देख आप युद्ध करने लगे । सो यम के साथ बहुत देरतक युद्ध किया। या अतिवली जपने रक्षरजको पकड़ लिया तव सूर्यरज युद्ध करने लगे। सो यमके साथ बहुत देरतक युद्ध किया। यम अतिबली उसने रचरजको पकड लिया तब र्यरज युद्ध करने लगे, वहुन युद्ध भया यमने आयुधका प्रहार किया सो राजा घायल होय मूर्छित भए तब अपने पक्षके सामंतोंने राजाको उठाय मेघला वनमें ले जाय शीतोपचार कर सावधान किये । यम महापापीने अपना यपना सत्य करता संता एक बंदी गृह बनाया है उसका नरक नाम धरा है, तहां वैतरनी आदि सर्व विधि बनाई हैं जो जो उसने जीते अर पकड़े वे सर्व उस नरकमें बंद किए हैं ,सो उस नरक कवक मर गए, कैयक दुख भोगे हैं , तहां उस नरकमें सूर्यरज अर रक्षरज ये भी दोनों भाई हैं । यह वृत्तांत मैं देखकर बहुत व्याकुल होय आपके निकट आया हूं। आप उनके रक्षक हो अर जीवनमूल हो । उनके आप ही विश्राम हैं अर मेरा नाम शाखाक्ली है , मेरा पिता र दक्ष , माता सुश्रोणी, मैं रक्षरजका प्यारा चाकर , सो आपको यह वृत्तान्त कहनेको आया हूं मैं तो आपको जताया देय निश्चिन्त भया अपने पक्षको दुःख अवस्थामें जान आपको जो कर्तव्य होय सो करो। तब रावणने उसे दिलासा दिया अर उसके घाव का यत्न कराया अब तत्काल सूर्यरज रक्षरजके छुडावनेको महाक्रोधकर यमपर चले अर मुसकराय कर कहते भये-कदा यम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002737
Book TitlePadma Puranabhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Kasliwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size20 MB
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