SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ट्रिप्पणियाँ २. जिस प्रकार वर्णनीय प्रसंग को जानने के लिए 'वष्णभो' शब्द का उपयोग किया गया है उसी प्रकार 'जाव' शब्द का उपयोग भी इसी हेतु से क्रिमा गया है । 'वणओ' में पूरा. वर्णन अभिहित है लेकिन 'जाव' में यह वर्णन सीमित है और इसके लिए वहाँ पर अमुक शब्द से अमुक शब्द तक ऐसा स्पष्ट बतलाया गया है, जैसे-'समोसरिए आव जम्बू' (कंडिका-२) अर्थात् 'समोसरिए' शब्द से 'जम्बू' शब्द तक का प्रसंग, इससे अधिक नहीं । उसी प्रकार 'भगवया महावीरेणं जाव संपत्ता', 'समणेण जाव संपत्तेणं (क २), 'अड्ढे आव अपरिभूए' (कं. ३), 'राईसर जाव सत्यवाहाणं', 'मेढीभूए जाव सव्वकज्जवड्ढावए' (कं. ५), 'महीण जाव सुरूवा', 'सद्द जाव पञ्चविहे' (कं. ६), 'रिद्धस्थिमिय जाव पासादिए' (कं. ७) इत्यादि अनेक ऐसे स्थल हैं जहाँ 'जाव' शब्द का निर्देश किया गया है । ये सब वर्णन भी औपपातिक सूत्र में उपलब्ध है, केवल अन्तर इतना है कि ये वर्णन 'वण्णभो' वाले वर्णनों से छोटे हैं। ३. अनेक जगह अध्याहार्य शब्द तथा अर्थ को जानने के लिए २. ३, ४, ५, ६ इत्यादि अंकों का उपयोग किया गया है उनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है:-- क. जहाँ जहाँ २ अंक का उपयोग हुआ है, जैसे--निग्गच्छइ, २ ता । संपेहेइ, २ ता। पडिणिक्खमइ, २ ता। उवागच्छइ, २ त्ता। और करेइ, २ ता । (कं. ९ और १०) वहाँ क्रियापद के मूल धात्वंश में 'इत्ता' पद लगाकर निग्गच्छित्ता, संपेहित्ता, पडिणिक्खमित्ता उवागच्छित्ता और करित्ता रूप दुहराने चाहिए । ख. 'असद्दहमाणे ३' से 'असद्दहमाणे अरोएमाणे अपत्तियमाणे' पढ़ना चाहिए (कं. ११३)। ग. 'आठक्खएणं ३' से 'आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं' पढ़ना चाहिए (कं. ९.) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002733
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages74
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy