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________________ उवसगदाओ सूत्र परिचय इस पुस्तक का नाम 'उवा सगदसा' अथवा 'उबासगदसाओ' है जिसका संस्कृत 'उपासकदशा' अथवा 'उपासकदशा:' होता है । यह जैन अन ग्रन्थों में सातव अङ्ग है । जैन भागम साहित्य में कुल बारह अन है जिसमें से ग्यारहवाँ अङ्ग 'हरिवाद' हजारों वर्षों से लुप्त हो गया है । विद्यमान ग्यारह अङ्ग अपने मूल परिमाण से बहुत कम हो गये हैं । 'समवाय' नामक चतुर्थ अङ्ग के वृत्तिकार श्री अभयदेवसूर के अनुसार उवासगदसा में अग्यारह लाख बावन हजार पद थे । नन्दिसूत्र के वृत्तिकार श्री मलयगिरि भी इसका समर्थन करते हैं । प्राचीन समय में आत्मार्थी संत साधु धर्म सूत्रों को कंठस्थ करके उनका प्रतिदिन स्वाध्याय करते रहते थे, परन्तु मगध देश में भारी दुष्काळ पड़ने से उनकी स्मरण शक्ति कम हो गयी और शास्त्र विस्मृत होने लगे । ऐसे समय में उनकी रक्षा करने के लिए आचार्य स्कंदिल और आचार्य नागार्जुन ने श्रमणों के अलग-अलग सम्मेलन बुलाए और जो शास्त्र बच गये थे उनकी रक्षा की । फिर फिर ऐसी स्थिति उत्पन्न होने और उस से बचने के लिए महाप्रभावक जैनाचार्य श्री देवर्षिगणी क्षमाश्रमण ने वलभीपुर में श्रमणों का एक विशाल सम्मेलन बुलाया और जिसको जितना पाठ याद था उसे ताड़पत्र आदि पर लिखवा दिया । उस समय प्रस्तुन उवासगदसाओ केवल आठ सौ अनुष्टुपू लोक प्रमाण में ही उपलब्ध था और आज भी वह उसी आकार में हमें मिल रहा है । अचेलक -- दिगंबर जैन परम्परा में इसका नाम उपासकाध्ययन है । इसका परिमाण अग्यारह लाख सत्तर हजार पद बतलाया गया है परन्तु वर्तमान में इस परम्परा में भी इस सूत्र का परिमाण कम हो गया है । उपासक - दशा अर्थात् उपासकों की माने भगवान महावीर के गृहFeat उपासकों की दवा याने अवस्था का वर्णन जिसमें भाता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002733
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages74
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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