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________________ १. ४.६] हिन्दी अनुवाद छन्दके द्वारा चलती है, जो बहुत-से शास्त्रोंके अर्थगौरवको धारण करती है, जो चौदह पूर्वो और बारह अंगोंसे युक्त है, जो जिनमुखसे निकली हुई सप्तभंगीसे सहित है, जो ब्रह्माके मुखमें निवास करनेवाली एवं शब्द योनिजा है, जो निश्रेयस् की युक्ति और सौन्दर्य की भूमि है, जो दुःखोंका क्षय करनेवाली और सुखकी खदान है, ऐसी दिव्यवाणी सरस्वती देवीको प्रणाम कर मैं धर्मानुशासनके आनन्दसे भरे हुए, तथा पापसे रहित नाभेय चरित (आदिनाथके चरित) का वर्णन करता हूँ। पत्ता-जिस ( आदिपुराण) चरित्रको सुननेसे मनुष्यको सुखोंके समूह और त्रिभुवनको क्षुब्ध करनेवाले सुन्दर पाँच कल्याण प्राप्त होते हैं, तथा पदार्थों को जाननेवाले प्रशस्त पांचों ज्ञान उत्पन्न होते हैं ॥२॥ मैं विश्वमें सुन्दर प्रसिद्ध नाम महापुराणका सिद्धार्थ वर्षमें वर्णन करता हूँ। जहाँ ( मेलपाटी नगरमें ) चोलराजाके केशपाशवाले भ्रूभंगसे भयंकर सिरको नष्ट करनेवाला, विश्वमें एकमात्र सुन्दर राजाधिराज महानुभाव तुडिग ( कृष्ण तृतीय ) राजा विद्यमान है। दीनोंको प्रचुर स्वर्णसमूह देनेवाले ऐसे उस मेलपाटि नगरमें धरतीपर भ्रमण करता हुआ, खलजनोंकी अवहेलना करनेवाला, गुणोंसे महान् कवि पुष्पदन्त कुछ ही दिनोंमें पहुंचा। दुर्गम और लम्बे पथके कारण क्षीण, नवचन्द्रके समान शरीरसे दुबला-पतला वह, जिसके आम्रवृक्षके गुच्छोंपर तोते इकट्ठे हो रहे हैं और जिसका पवन वृक्ष-कुसुमोंके परागसे रंजित है ऐसे नन्दनवनमें जैसे ही विश्राम करता है वैसे ही वहां दो आदमी आये। प्रणाम कर उन्होंने इस प्रकार कहा-“हे पापके अंशको नष्ट करनेवाले कवि खण्ड (पुष्पदन्त कवि), परिभ्रमण करते हुए भ्रमरोंके शब्दोंसे गूंजते हुए इस एकान्त उपवनमें तुम क्यों रहते हो? हाथियोंके स्वरोंसे दिशामण्डलको बहरा बना देनेवाले इस विशाल नगरवरमें क्यों नहीं प्रवेश करते ?" यह सुनकर अभिमानमेरु पुष्पदन्त कवि कहता है"पहाड़की गुफामें घास खा लेना अच्छा, परन्तु कलुषभावसे अंकित, दुर्जनोंकी टेढ़ी भौंहें देखना अच्छा नहीं।" घत्ता-अच्छा है श्रेष्ठ मनुष्य, धवल आँखोंवाली उत्तम स्त्रोकी कोखसे जन्म न ले, या गर्भसे निकलते ही मर जाये, लेकिन यह अच्छा नहीं कि वह टेढ़ो आँखोंवाले, दुष्ट और भद्दे प्रभु-मुखोंको सवेरे-सवेरे देखे ॥३॥ जो चामरोंकी हवासे गुणोंको उड़ा देती है, अभिषेकके जलसे सुजनताको धो देती है, जो अविवेकशील है, दर्पसे उद्धत है, मोहसे अन्धी और दूसरोंको मारनेके स्वभाववाली है, जो सप्तांग राज्यके भारसे भारी है जो पुत्र और पिताके साथ रमणरूपी रसमें समानरूपसे आसक्त है, जिसका जन्म कालकूट (विष ) के साथ हुआ है, जो जड़ोंमें अनुरक्त है और विद्वानोंसे विरक्त है, ऐसी लक्ष्मीसे क्या? सम्पत्तिमें मनुष्य सब प्रकारसे नीरस होता है, जहाँ गणवान तक द्वेष्य होता है, वहाँ हमारे लिए तो, वन ही शरण है। ( कमसे कम ) स्वाभिमानके साथ मृत्युका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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