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________________ महापुराण (4) महागजों की सूडोंसे अभिषिक्त महालक्ष्मी । (5) दो पुष्पमालाएँ। (6) उगता हुआ चन्द्रमा । (7) उगता हुआ सूरज । (8) मीन-युगल । (9) जलसे परिपूर्ण दो कलश । (10) कमल सरोवर । (11) गरजता हुआ समुद्र । (12) सिंहासन । (13) राजभवन । (14) नागलोक। (15) रत्नराशि। (16) जलती हुई (निर्धूम) आग । इससे स्पष्ट है कि श्वेताम्बर बारहवें और चौदहवें स्वप्नोंको नहीं मानते। और इस प्रकार कुल संख्या चौदह रह जाती है। 7. 5a सोलहकारणभावनाओंका, ध्यान करके, तपस्याके द्वारा तीर्थकर प्रकृतिका बन्ध किया। ये भावनाएं हैं-दर्शनविशुद्धि, विनयसम्पन्नता, शीलवतेषु-अनतिचार; अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग, अभीक्ष्ण संवेग, शक्तितः त्याग, शक्तितः तप, साधुसमाधि, वैयावृत्यकरण, अर्हद्भक्ति, आचार्यभक्ति, बहुश्रुतभक्ति, प्रवचनभक्ति, आवश्यकापरिहाणि, मार्गप्रभावना, प्रवचनवत्सल । 19. 14 मुझे उस देशमें ले जाइए, जहाँ जन्म नहीं है अर्थात सिद्धोंका क्षेत्र । 21. lla जिन वृषभ इसलिए कहलाते हैं क्योंकि उनका आसन वृष (धर्म) से शोभित है। पृष्ठ 425 IV [राजा ऋषभ राजकीय भवनमें बड़े होते हैं, जो आदर्श वातावरणसे अलंकृत था। उनके शरीरमें दस अतिशय हैं, जैसे शरीरकी पवित्रता, स्वेद आदिका न आना । पिता उनका विवाह करनेकी सोचते हैं, पहले राजकुमार ऋषभ मना करते हैं, परन्तु नाभिराजके दबावके कारण उन्हें विवाह करना पड़ा; धमघामसे विवाह हआ। उनकी पत्नियां यशोवती, सुनन्दा क्रमशः राजा कच्छ और महाकच्छकी कन्याएँ थीं। उत्सवकी सन्ध्यामें चांदनीसे आलोकित आकाशमें राजकीय सजधजके साथ नृत्य आदिका आयोजन . किया गया । उत्सवकी समाप्ति दान आदिके साथ की गयी। 1.10a अपनी पीठपर लेटा हुआ बालक देख रहा था परन्तु कविकी कल्पना है कि वह तपस्याका मार्ग देख रहा था जो कि ऊँचेकी ओर जा रहा था। 15a जब कि वह बचपनमें धीरे-धीरे चलते थे। 166 चौंसठ कलाएँ न कि बहत्तर कलाएँ जैसा कि श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें उल्लेख है। 2. कडवक कुछ अतिशयोंका उल्लेख करता है। 3. 10a जो कल्पवृक्ष है वह काठ-काठ है। 4. 14b स्वदेश स्त्री बाल प्रसिद्ध रागध्वनि जो बच्चे को सुलानेके लिए की जाती है ! 9. 10a चन्दोवा और चीनी वस्त्रसे आच्छादित । 10.3a चमकती है, आलोकित होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002722
Book TitleMahapurana Part 1
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1979
Total Pages560
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size11 MB
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