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________________ पाण्डवपुराणम् प्रबुद्धा नाथतो नूनं तत्फलानि निशम्य च । पुष्पकात्प्रच्युतं देवं सा दधे गर्भपङ्कजे ।।८३ आषाढे सितषष्ठयां च हस्तभे हस्तिगामिनी । सुहस्ता हस्तिसंरूढैः सुरैः संप्राप्तपूजना ॥८४ जज्ञे सा सुसुतं चैत्रे त्रयोदश्यां सितेऽहनि । चतुर्दश्यां सुतो लेभे मेरो स्नानं सुरेन्द्रतः ॥८५ वर्धमानाख्यया ख्यातः क्षितौ क्षिप्तरिपूत्करः। त्रिंशद्वर्ष कुमारत्वे सात सिवे स शुद्धधीः ।।८६ कंचिद्धेतुं हितं वाञ्छन् हेतुं वैराग्यसंततेः । वीक्ष्य दक्षः स आचख्यौ वैराग्यं स्वस्य सज्जनान्।।८७ तदा लौकान्तिका देवाः पञ्चमात्समुपागताः । स्तुत्वा निर्वदिनं तं ते निर्वदाय गताः पुनः।।८८ सुरेन्द्राः सह संप्राप्य ज्ञात्वा वैराग्यमञ्जसा । जिनस्य जनितानन्दा नेमुस्तं नतमस्तकाः ॥८९ संस्नाप्य भूषणैर्भक्त्या विभूष्य भूषणं भुवः । सुरास्ते भक्तितो भेजुर्वैराग्याथै जिनेश्वरम् ॥९० नानारूपान्वितां चित्रां चित्रकूटैर्विचित्रिताम् । चन्द्रप्रभा सुशिबिकामारुह्य पुरतो ययौ ॥९१ मार्ग कृष्णदशभ्यां च हस्ते मे वनसंस्थितः । षष्ठेन त्वपराह्ने च प्राब्राजीजिनसत्तमः ॥९२ मनःपर्ययसद्बोधो दीक्षातस्तत्क्षणे क्षणी । पारणाप्राप्तसंमानो विजहाराखिलां महीम् ॥९३ के समान गतिवाली, सुंदर हाथवाली रानीने आषाढ शुद्ध षष्ठीके दिन हस्तनक्षत्रके होनेपर गर्भ धारण किया । उस समय हाथीपर आरूढ होकर आये हुए देवोंने उनका पूजन किया ॥८३-८४॥ चैत्रशुक्लत्रयोदशीके दिन त्रिशला रानीने भगवान् वीरको जन्म दिया । चतुर्दशीके दिन मेरुपर्वतपर सुरेन्द्रोंसे वे भगवान् अभिषेकको प्राप्त हुए । वे वर्धमान इस नामसे जगतमें प्रसिद्ध हुए । जिन्होंने शत्रुओंको पराजित किया है, ऐसे निर्मल बुद्धिवाले भगवान् वर्धमानने तीस वर्षतक कुमार अवस्थामें सुखोंका अनुभव लिया। अनंतर आत्महितका कोई निमित्त चाहनेवाले विज्ञ भगवान्ने वैराग्यका हेतु देखकर सज्जनोंके पास अपने वैराग्यका वर्णन किया ॥ ८५-८७ ।। तब लौकान्तिक देव पंचमस्वर्गसे आये । उनने विरक्त प्रभुके वैराग्य भावोंकी प्रशंसा की । अनंतर वे पुनः ब्रह्मस्वर्गको चले गये ॥ ८८ ॥ भगवान्को विरक्त जानकर देवेन्द्र चतुर्णिकाय देवोंसहित आनंदके साथ प्रभुके पास पहुंचे और उन्होंने मस्तक झुकाकर उन्हें नमस्कार किया ॥८९॥ पृथ्वीके भूषणरवरूप जिनेश्वरका भक्तिपूर्वक अभिषेक कर देवोंने उन्हें आभूषण पहनाये और वैराग्यके लिये उन्होंने भक्तिसे उनका शरण ग्रहण किया ॥९०॥ नानारूपोंसे युक्त, नानाप्रकारके शिखरोंसे सुशोभित, सुंदर चित्रोंसे युक्त चन्द्रप्रभा नामक मनोज्ञ पालकीमें आरोहण कर भगवानने नगरसे बाहर प्रस्थान किया। मार्गशीर्ष कृष्ण दशमीके हस्तनक्षत्रके अपराह्नमें सज्जनश्रेष्ठ उन जिनेश्वरने वीरप्रभुने-दो उपवासोंकी प्रतिज्ञा धारण कर उद्यानमें दीक्षा ली । दीक्षा लेनेके अनंतर क्षणमात्रमें प्रभु मनःपर्ययज्ञानी हो गये। दो उपवास होने के अनंतर वे पारणाके लिये चले । अतिशय आदरसे दाताने उनको आहार दिया । १शं. सिषेवे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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