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________________ प्रथम पर्व शुश्रूषाश्रवणाधारो ग्रहण धारणे स्मृतौ । ऊहापोहाविज्ञानी सदाचाररतश्च सः ॥ ५४ सत्कलाकुशलः कौल्यो गुर्वाज्ञाप्रतिपालकः । विवेकी विनयी विद्वांस्तत्वविद्विमलाशयः ॥५५ सावधानो विधानज्ञो विबुधो बन्धुरः सुधीः । दयादत्तिप्रधानश्च जिनधर्मप्रभावकः ॥५६ सदाचारो विचारज्ञो धर्मज्ञो धर्मसाधनः । क्रियाग्रणीः सुगीान्यो महतां मानवर्जितः ॥५७ शुभाशुभादिभेदेन श्रोतारो बहवो मताः । हंसधेनुसमाः श्रेष्ठा मृच्छुकामाश्च मध्यमाः ॥५८ मार्जाराजशिलासर्पककच्छिद्रघटैः समाः । चालिनीदंशमहिषजलौकाभाश्च तेऽधमाः ॥५९ असच्छ्रोतरि निर्णाशमुक्तं शास्त्रं भजेद्यथा । जर्जरे चामपात्रे वा पयः क्षिप्तं कियस्थिति ॥६० सदने कथितं शास्त्रं गुरुणा सार्थकं भवेत् । सुभूमौ पतितं बीजं फलवज्जायते यथा ॥६१ ।। कथा वाक्यप्रवन्धार्थी सत्कथा विकथा च सा। द्विधा प्रोक्ता सुकथ्यन्ते यत्र तत्त्वानि सा कथा।।६२ व्रतध्यानतपोदानसंयमादिप्ररूपिका। पुण्यपापफलावाप्तिः सत्कथा कथ्यते जिनः ॥६३ हुआ ग्रहण करनेवाला तथा उसे कालान्तरमें भी न भूलनेवाला, स्मरणशक्तियुक्त, विचार करनेवाला और दूषणं निवारण करके पदार्थका स्वरूप जाननेवाला, सदाचारमें तत्पर, उत्तम कलाओंमें गानादिककलाओंमें कुशल, कुलीन, गुरुकी आज्ञाका पालन करनेवाला, विवेकी, विनयी, विद्वान् तत्त्वस्वरूप जाननेवाला, निर्मल अभिप्रायवाला, सावधान रहनेवाला, कार्यको जाननेवाला, सम्यगज्ञानी, सुंदर, स्वपरहितकी बुद्धि रखनेवाला, दयादान देनेवालों में मुख्य, जिनधर्मकी प्रभाधना करनेवाला, सदाचारी, विचारवान् , धर्मके स्वरूपका ज्ञाता, धर्म साधनेवाला, धर्मकार्य करने में प्रमुख, मधुर और हितकर भाषण करनेवाला, और गवरहित, ऐसे श्रोताकी सज्जन प्रशंसा करते हैं ॥ ५२-५७ ॥ शुभ श्रोता, अशुभ श्रोता इत्यादिक श्रोताओंके अनेक भेद हैं। हंस और गायके स्वभाव घाले श्रोता श्रेष्ठ हैं, क्योंकि वे उपदेशमेंसे ग्राह्यतत्त्वको लेते हैं और त्याज्यको छोड़ते हैं। मिट्टी और तोताके स्वभाववाले श्रोता मध्यम है और बिल्ली, बकरा, पत्थर, सर्प, बगुला, सच्छिद्र घट चालनी, मच्छर, और जोंकके समान जिनका स्वभाव है वे श्रोता अधम माने गये हैं । अधम श्रोताओंको शास्त्र सुनानेसे शास्त्रका नाश होता है। जीर्ण अथवा कच्चे घटमें रखा हुवा पानी कितने कालतक रहेगा?। जिसतरह उत्तम खेतमें बोया हुआ बीज विपुल फल देनेवाला होता है, उसी तरह सज्जनश्रोताके आगे उत्तम गुरूका कहा हुआ शास्त्र सफल होता है । ५९-६१॥ कथाका लक्षण तथा उसके भेद ] वाक्योंकी रचना करके अपने विषयका वर्णन करनेको, कथा कहते हैं । सत्कथा और विकथा ऐसे कथाके दो भेद कहे हैं । तत्वोंका सुंदर पद्धतिसे निरूपण करनेवाली, व्रत, भ्यान, तप, दान और संयम आदिका वर्णन करनेवाली, पुण्यपापोंके फलकी प्राप्ति बतानेवाली कथाको जिनेन्द्रदेव सत्कथा कहते हैं। सज्जनपुरुष जिस कथामें तद्भवमोक्षगामी तीर्थंकर, गणधर, नारायण, बलभद्र, आदिकोंके धर्म और अर्थकी वृद्धि करनेवाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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