SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 56
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भट्टारकश्रीशुभचन्द्रप्रणीतं महाभारतं नाम पाण्डवपुराणम्। । प्रथमं पर्व। सिद्धं सिद्धार्थसर्वस्वं सिद्धिदं सिद्धसत्पदम् । प्रमाणनयसंसिद्धं सर्वज्ञ नौमि सिद्धये ॥ १ वृषभं वृषभं भान्तं वृषभान्कं वृषोन्नतम् । जगत्सृष्टिविधातारं वन्दे ब्रह्माणमादिमम् ॥ २ चन्द्राभं चन्द्रशोभाढ्यं चन्द्राच्र्य चन्द्रसंयुतम् । चन्द्रप्रभं सदाचन्द्रमीडे सच्चन्द्रलाञ्छनम् ॥३ शान्ति शान्तेर्विधातारं सुशान्तं शान्तकिल्बिषम् । ननमीमि निरस्ताचं मृगाङ्क षोडशं जिनम् ।।४ नेमिधर्मरथे नेमिः शास्तु शंसितशासनः । जगज्जगत्रयीनाथो निर्जितानङ्गसम्मदः॥५ वर्धमानो महावीरो वीरः सन्मतिनामभाक् । स पातु भगवान्विश्वं येन बाल्ये जितः स्मरः॥६ [श्रीसिद्धपरमेष्ठीकी स्तुति ] जिनके कर्मक्षयादि समस्त कार्य सिद्ध हो चुके हैं, जो सर्वज्ञ, सिद्धिके दाता, उत्तम सिद्धपदके धारक और प्रमाण तथा नयोंसे सिद्ध हुए हैं ऐसे सिद्धपरमेष्ठीकी मैं सिद्धपदकी प्राप्तिके लिए स्तुति करता हूं ॥१॥ वृषभादि-तीर्थकरोंकी स्तुति] अहिंसाधर्मसे सुशोभित, शरीरसे निरुपम सुंदर, बैलके चिह्नसे युक्त, धर्मसे उन्नत और असि मषि कृषि आदि षट्कर्मोके उपदेशद्वारा जगत् की रचना अर्थात् समाजरचना करनेवाले आदिब्रह्मा श्रीवृषभनाथ आदिनाथ] को मैं नमस्कार करता हूं ॥२॥ जिनके देहकी कान्ति चन्द्रकी कान्तिके समान है, जो चन्द्रकी कान्तिके समान हैं, जो चन्द्रके समान शोभासे पूर्ण हैं, जो चन्द्रसे पूजित हैं और चन्द्रसे युक्त हैं, जो उत्तम चन्द्रके चिह्नसे युक्त तथा चन्द्रमाके समान निरन्तर आनन्द देनेवाले हैं ऐसे श्रीचन्द्रप्रभप्रभुकी मैं स्तुति करता हूं ॥३॥ जो शान्तिके विधाता है, अतिशय शान्तस्वरूप हैं, जिनके दोष नष्ट हुए हैं और जिन्होंने भव्यजनोंका पाप दूर किया है, ऐसे मगचिह्नधारक सोलहवे शान्ति-जिनेश्वरको मैं बार बार नमस्कार करता हूं ॥४॥ जिनका शासन अर्थात् मत सत्पुरुषोंद्वारा प्रशंसित हुआ है, जो त्रैलोक्यफे नाथ हैं, जिन्होंने कामदेवके हर्षको-गर्वको जीत लिया है, अर्थात् जो बाल-ब्रह्मचारी हैं, और जो धर्मपथके नेमि अर्थात् चक्रधाराके समान हैं, वे नेमिप्रभु जगत् को पालन करें ॥५॥ जिन्होंने बाल्यकालमें कामदेवको जीत लिया है ऐसे महावीर, वीर, सन्मति नामवाले वर्द्धमान भगवान् जगत्का रक्षण करें ॥६॥ १ स. सर्वार्थसर्वस्वं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy