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________________ IN.. . पश्चशिं पर्व भवारिसंगमे भीमः पापभीतो भयच्युतः । विभेद पूर्ववद्भन्यो भावुको भव्यसंपदाम् ॥१८ धनंजयो दधौ चित्ते मुक्तिवर्धू सुबन्धुराम् । आराध्याराधनां धीमान्धृत्या सह समुद्धरः ॥ माद्रेयौं निद्रया मुक्तौ द्रव्यपर्यायवेदकौ । द्रव्योपाधिपरित्यक्तौ चेरतुश्वरणं चिरम् ॥२० महाव्रतानि पश्चैव तथा समितयः पराः । पञ्चेन्द्रियनिरोधाश्च परमावश्यकानि षट् ॥२१ लोचोऽचेलत्वमस्नानं तथा भूशयनं महत् । अदन्तधावनं चैव स्थितिभुक्त्येकमक्तके ॥२२ अमून्मूलगुणान्मूलान्समीयुः शमनोन्मुखाः । महामत्या महान्तस्ते मुनयः पञ्च पाण्डवाः ॥ नांनोचरगुणान्भव्या भावयन्तः सुधर्मिणः । दधुवा॑नं सुधर्माख्यं सुधीरास्ते तपोधनाः ॥ तिसृभिर्गुप्तिभिर्गुप्ता गुप्तात्मानः सुगौरवाः । गुणाग्रण्यः सुगायन्ति द्वादशाकं मुनीश्वराः॥ खवीर्य प्रकटीकृत्य विकटाः संकटोज्झिताः । विफटं निकटे तस्य नेमेवेरुः परं तपः ॥२६ वे जगतके गुरु-मान्य हो गये ॥ १७ ॥ पापसे डरनेवाले, भयकर्मसे रहित अर्थात् मुनिव्रत पालनेमें सिंहवृत्ति धारण करनेवाले, कल्याण करनेवाली संपत्तिको रत्नत्रयको प्राप्त करनेवाले भव्य ऐसे भीम मुनिराज संसाररूप शत्रुकी संगतिके लिये भयंकर थे अर्थात् संसार-शत्रुका नाश करनेवाले थे। उन्होंने पूर्ववत् गृहस्थावस्थामें जैसे शत्रुओंको जीता था अब मुनिअवस्थामें उन्होंने मोहरूप शत्रुको जीत लिया ॥ १८॥ धीमान्-निपुण, समुध्दुर-मोहकी धुराको अपने कंधेपरसे हटानेवाले धनंजय मुनिराजने सम्यग्दर्शनादि चार आराधनाओंकी आराधना करके अतिशय सुंदरी ऐसी मुक्तिवधूको संतोषके साथ अपने मनमें धारण किया ॥ १९ ॥ मद्रीके पुत्र नकुल और सहदेव ये दोनों मुनिराज निद्रा स्नेहादि प्रमादोंसे रहित होकर जीवादि द्रव्योंके गुण और पर्यायोंके स्वरूप जानने लगे। वस्त्रादि बाह्य परिग्रहके त्यागी होकर उन्होंने दीर्घकाल तक तपश्चरण किया ॥२०॥ आहिंसादिक पांच महाव्रत, ईर्यासमित्यादि पांच निरतिचार समितियां, पांच इंद्रियोंका संयम, सामायिकादि उत्तम छह आवश्यक, लोंच, नग्नता, अस्नान-स्नानका त्याग, भूमिपर शयन, दन्त-धावन नहीं करना, खडे होकर भोजन करना, एकवार भोजन करना ऐसे मुख्य मूलगुणोंको समताके प्रति उन्मुख हुए, महाबुद्धिसे महत्ताको धारण करनेवाले पंच पांडवोंने धारण किया ॥२१-२३ ॥ उत्तम यतिधर्म धारण करनेवाले, वोर, तपरूपी धनका संचय करनेवाले वे भव्य मुनिराज नाना उत्तम गुणोंको धारण करनेका अभ्यास करने लगे तथा उन्होंने सुधर्म नामका ध्यान धारण किया। अर्थात् आर्तध्यान और रौद्रध्यानको छोड मोक्षके कारण धर्मध्यानका चिन्तन वे करने लगे ॥२४॥ तीन गुप्तियोंसे गुप्त-संरक्षित, जिन्होंने अपने आत्माका विषयासे रक्षण किया है अर्थात् जितेन्द्रिय, महान् गुणोंके गौरवसे शोभनेवाले, गुणोंसे मुनिसमाजमें अगुआ ऐसे वे पाण्डव मुनिराज आचारादि द्वादशांगोंका अध्ययन करने लगे। संकटोंसे रहित, तपमें विकट अर्थात् दृढ ऐसे पाण्डवोंने अपना सामर्थ्य प्रगट करके उन नेमिप्रभुके चरणमूलमें उत्तम-निरतिचार और कठिन तप किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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