SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४९. चतुर्विध पर्व अनया च कृतं श्रेयः पूर्वजन्मनि निर्मलम् - समित्या च तथा मुफ्त्या व्रतेच बरभावतः ॥ तत्प्रभावादलं जाता जातरूपसमद्युतिः। भोगोपभोगभूयिष्ठा द्रौपदीयमभूदकिः॥८० . . दृष्ट्वा वसन्तसेनाख्यां पण्यपत्नी सुरूपिणीम् । यदर्जितं त्वया पापं पूर्वजन्मनि दुष्करम् ।।८१ तत्प्रभावादियं जातापकीर्तिर्दुस्तरा भुवि । द्रौपचाः पञ्चभर्तृत्वसंभवा लोकहास्यदा ॥८२ मनसा वचसा वाचार्जितं यत्कर्म जन्तुना । तत्फलत्येव तादृक्षमुप्तं बीजं यथा भुवि ।।८३ अतो दुष्कर्म संकृत्य कर्तव्यः कृतिना वृषः। यत्प्रभावाद्भवत्येव सातं संसारसंभवम् ।।८४ यदचारि पुरानेन चारित्रं परमोज्ज्वलम् । तस्माद्युधिष्ठिरस्यास्य यशोऽभूसत्यसंभवम् ।।८५ अन्वभावि च भीमेन वैयावृत्यं पुराभवे । तत्प्रभावदयं जज्ञे बलिष्ठो वैरिदुर्जयः ।।८६ पार्थेन प्रथितं पूर्व यच्चरित्रं पवित्रकम् । तत्प्रभावदयं जातो धानुष्को धन्ववेदवित् ।।८७ नागश्रीस्नेहतः स्निग्धोऽभूद्रौपद्यां धनंजयः । अतिस्नेहस्तु जन्तूनां जायते पूर्वसंभवः ।।८८ ब्राह्मण्यो यत्पुरा कृत्वा कर्मनिर्बर्हणक्षमम् । तपश्च चेरतुश्चित्रं चरित्रं क्समुज्ज्वलम् ॥८९ तत्प्रभावादिमौ जातौ भ्रातरौ भवतामिह । प्रसिद्धौ शुद्धनकुलसहदेवौ.मनोहरौ ।।। इस द्रौपदीने पूर्वजन्ममें समितियोंसे, गुप्तियोंसे और व्रतीसे तथा उत्तम विचारोंसे निर्मल पुण्य किया था। उसके प्रभावसे यह द्रौपदी सुवर्णके समान अतिशय कान्तिवाली हुई तथा भूतलमें विपुल भोगोपभोगसे युक्त हुई है। हे द्रौपदी, पूर्वजन्ममें सौन्दर्यवती वसन्तसेना वेश्याको देखकर जो. दुर्निवार पापबंध तूने. कमाया है उसके उदयसे इस भूतलमें तेरी दुस्तर अपकीर्ति हुई है। द्रौपदी पांच पतिवाली हो गई ऐसी लोकमें उपहास उत्पन्न करनेवाली अपकीर्ति तेरी हुई है। जैसा बीज बोया. जाता है, वैसा फल उत्पन्न होता है। वैसे मनसे, वचनसे और शरीरसे प्राणीने जो कर्म प्राप्त किया है वह फल देताही है अर्थात् अशुभ कर्म बांधनेसे अशुभ फल और शुभ कर्म बांधनेसे शुभ फल मिलता है । इस लिये अशुभ कर्म तोडकर बुद्धिमानोंको धर्म-पुण्य कार्य करना योग्य है। क्योंकि उसके प्रभावसे सांसारिक सुख प्राप्त होता ही है ॥ ७९-८४ ॥ . . युधिष्ठिरादिकोंमें विशिष्टता प्राप्त होनेके हेतु ] इस युधिष्ठिरने पूर्वजन्ममें जो अतिशय निर्मल चारित्र पाला था उसके सत्यभाषणरूप फलसे इसका यश प्रगट हुआ। पूर्वभवमें इस भीमने वैयावृत्त्य तप्रका. अनुभव किया उसके प्रभावसे यह भीम वैरिओंके द्वारा अजेय और बलिष्ठ हुआ है। इस अर्जुनने पूर्वभवमें जो पवित्र चारित्र प्रसिद्ध रीतीसे पाला था उसके प्रभावसे यह धनुर्वेदङ्गधनुर्धारी वीर हुआ। नागश्रीके स्नेहसे द्रौपदीमें अर्जुन स्नेहाल हुआ। प्राणियोंको जो अतिशय स्नेह उत्पन्न होता है वह सब पूर्वभवसे उत्पन्न होता है । ८५-८८ ॥ धनश्री और मित्रश्री ब्राह्मणियोंने जो पूर्वकालमें कर्म नष्ट करनेमें समर्थ तप किया था तथा जो सम्यग्दर्शनसे उज्ज्वल चारित्र पाला था उनके प्रभावसे ये दोनों यहां इस भवमें आपके मनोहर और प्रसिद्ध शुद्ध नकुल तथा सहदेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy