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________________ पाण्डवपुराणम् तावता केशवः प्राप्तो विसर्ण्य वरनिर्जरम् । सरिजलमगाधं स वीक्ष्य ब्रूते स्म पाण्डवान् ॥ कथं तीर्णा सरिच्छीघं भवद्भिः कथ्यतां मम । तनिशम्य तदावोचपाण्डवा छातः खलु ॥ अस्माभिर्भुजदण्डेन तीर्णेयं च तरङ्गिणी । तनिशम्याच्युतो दोभ्यामुत्ततार सरिज्जलम् ।।२१ तीरं गत्वा नृपान्वीक्ष्य हर्षितास्यो जहर्ष सः। जहसुः पाण्डवा वीक्ष्य कृष्णं हडहडखनाः॥ हसतः पाण्डवान्वीक्ष्य प्रोवाच चक्रनायकः । भवद्भिर्हसितं किं भो कथ्यतां कथ्यतां मम ॥ ते जगुर्यमुनातीरं वयं तर्याथ तेरिम । त्वद्वाहुबलवीक्षायै प्रच्छन्ना सा कृता ततः॥२४ नरेन्द्राघटितं कार्यमस्माभिर्घटितं स्फुटम् । प्रत्यर्थिकुम्भिकुम्भानां भञ्जने त्वं हरिहरिः॥२५ श्रुत्वेति क्रोधभारेण बभाषे कम्पिताधरः । माधवः पाण्डवा यूयं सदा कलहकारिणः ॥२६ खजनस्नेहनिर्मुक्ता मायायुक्ताः सदा खलाः। किं सरित्तरणेऽस्माकं माहात्म्यं वीक्षितं ननु । गोवर्धनसमुद्धारे कालिन्दीनागमईने । चाणूरचूर्णने चित्र कंसदस्युविधातने ॥२८ शीघ्र नौका वहांसे हटाकर तटपर ले गया। उतनेमें श्रीकृष्ण उस उत्तम देवको विसर्जित करके आये। उन्होंने नदीका अगाध पानी देखकर पाण्डवोंको कहा कि “ हे पाण्डवो, आप शीघ्र नदी कैसे तीरकर गये मुझे बोलो ? श्रीकृष्णका भाषण सुनकर पाण्डव कपटसे निश्चयपूर्वक यों कहने लगे। "हम लोगोंने अपने बाहुदण्डसे इस नदीको उल्लंघा है" । उनका भाषण सुनकर श्रीकृष्ण अपने दोनो बाहुओंसे नदीका पानी उल्लंघ गये ॥१४-२१॥ तीरको गये श्रीकृष्ण हर्षितमुख पाण्डवोंको देखकर आनंदित हुए। पाण्डव श्रीकृष्णको देखकर अट्टहास्यसे हसने लगे। हसनेवाले पाण्डवोंको चक्रपति श्रीकृष्ण बोलने लगे कि, तुम क्यों हसने लगे मुझे कहो कहो ।।२२-२३॥ वे कहने लगे कि हम नौकाके द्वारा यमुनाके तीरको पहुंचे। परंतु आपका बाहुबल देखनेके लिये उस तटसे उस नौकाको हमने छुपा लिया है। हे राजेन्द्र, आपने हमसे अघटित कार्य स्पष्टतासे कर दिया है अर्थात् धातकीखंडमें जाकर वहां से द्रौपदीको लाना यह कार्य हमसे कदापि होना शक्य नहीं था। ( आप ही ऐसे कार्य करने में समर्थ हैं। ) शत्रुरूपी हाथियोंके गण्डस्थलोंको फोडनेमें हे हरे, आप निश्चयसे हरि हैं- सिंह हैं ॥ २४-२५ ॥ पाण्डवोंका भाषण सुनकर अतिशय क्रोधसे जिनका अधरोष्ठ कंपित हुआ है ऐसे श्रीकृष्ण बोलने लगे " हे पाण्डवो, तुम हमेशा कलह करनेवाले हो । तुम हमेशा स्वजनोंके प्रति स्नेहरहित, कपटयुक्त और सदा दुष्ट हो। नदीके उल्लंघनमें आपने हमारा माहात्म्य बोलो क्या देखा है ? गोवर्धनपर्वतको उठाना, यमुना नदीके कालियसर्पका मर्दन करना, चाणूरको चूर्ण करना, कंसशत्रुका वध करना, अपराजितका नाश करना, गौतम नामक देवकी स्तुतिकर वश करना ( जिससे द्वारिका का निर्माण हुआ।) रुक्मिणीका हरणकार्य, शीघ्र १ब वीक्ष्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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