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________________ पाण्डवपुराणम् सानुकूला परां दृष्टिं कुरु मन्मथसंगरे। विषादं भज मा भव्ये मया सत्रं सुखं भज।।७८ वल्लभा भव भूभव्यभावमुपागता । मम मानसजं दुःखं हरन्ती सुखदायिक ।।७९ निशम्येति शुचाक्रान्ता कम्पिताङ्गी स्फुटद्धदा। रुरोद सेति दुःखार्ता बाष्पव्याप्तिमदानना। हा युधिष्ठिर हा ज्येष्ठ हा विशिष्ट सुधर्मधी। हा पावने पवित्रोऽसि वीराणामग्रणीवरः।८१ हा पार्थ नाथ समरे समर्थो दस्युशासनः। दुःखकाले समाक्रान्ते को मां रक्षति दुःखिनीम्।। विना भवद्भिरत्यर्थ किं सुखं मम सांप्रतम् । किंवदन्तीमिमां तत्र को नेष्यति मम प्रियः॥ सुरेणाहं हडिं नीता प्रसुप्ता भुवि विश्रुता। इत्याक्रन्दं प्रकुर्वाणा संतस्थे द्रुपदात्मजा ॥८४ स बभाण महायुक्त्या सुश्रोणि शृणु सांप्रतम् । शोकं हित्वा रमस्वाशु मया साधं सुखाप्तये।। त्यक्त्वा धनंजयस्साशांदत्त्वा तस्मै जलाञ्जलिम् । विषादं च विमुच्याशु भोगे रक्ता भव प्रिये।। तदा निशम्य पाञ्चाली शीलभङ्गोद्धरं वचः । अचिन्तयभिजे चित्ते चिन्तासंचयसंगता ॥८७ कामयुद्ध में तू मुझपर अनुकूल दृष्टिं डाल। हे देवि, विषाद छोड, मेरे साथ तू सुखको भोग। कल्याण खभावको धारण करनेवाली, तू पृथ्वीके पति ऐसे मेरी प्रियतमा बन। मेरे मानसिक दुःखका नाश करनेवाली तू मुझे सुख दे" ॥ ७५--७९ ॥ पद्मनाभके ऐसे वचन सुनकर द्रौपदी शोकयुक्त हुई। उसका अंग कँपने लगा। उसका हृदय फूट गया। वह दुःखपीडित होकर रोने लगी। उसका मुख अश्रुओंसे भीग गया । वह इस प्रकारसे शोक करने लगी “ हे ज्येष्ठ युधिष्ठिर, आपमें विशिष्ट धर्मकी बुद्धि निवास करती है। हे पावने, अर्थात् हे भीम आप पवित्र और वीरोंमें श्रेष्ठ अगुआ है। हे नाथ, अर्जुन, आप युद्ध में समर्थ और शत्रुओंका दमन करनेवाले हैं। प्राप्त हुए इस दुःखकालमें मुझ दुःखिनीका कौन कौन रक्षण करेगा ? ॥ ८०-८२ ॥ आपके नहीं होनेसे अर्थात् आपका अतिशय वियोग हो जानेसे मुझे इस समय सुखप्राप्ति कैसे होगी ? मेरा कौन प्रिय है जो यह वार्ता आपके प्रति पहुँचावेगा ? मैं पृथ्वीमें प्रसिद्ध हूं। मैं सोई थी ऐसे समय देवने मुझे यहां लाकर बंदिशालामें रखा है।" इस प्रकार शोक करती हुई द्रौपदी वहां रही ।। ८३-८४ ॥ पद्मनाभराजा द्रौपदीको पुनः इस प्रकारसे प्रार्थना करने लगा " हे सुश्रोणि, तू इस समय मेरा वचन सुन। तू शोक छोडकर सुखके लिये मेरे साथ क्रीडा कर । अब अर्जुनकी आशा छोडकर उसे जलाञ्जलि दे। हे प्रिये, खिन्नताको छोड दे और शीघ्र भोगोंमें अनुरक्त-तत्पर हो"। ऐसा पद्मनाभने महायुक्तिके साथ भाषण किया ॥८५-८६।। उस समय शीलभंग करनेवाला राजाका प्रवल वचन सुनकर चिन्ताओंके समूहसे पीडित द्रौपदीने अपने मनमें ऐसा विचार स प्रसुप्ता सुश्रुतान्विता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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