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________________ विंशतितमं पर्व ४४३ दृष्ट्वा यदुचमूं सोऽथ दूतं पप्रच्छ सोमकम् । ख्याहि सर्वान्नृपाञ्श्रुत्वा सोऽवोचच्चिपूर्वकम् ॥ समुद्रविजयः स्वर्णवर्णाश्वोऽयं हरिध्वजः । अयं तु शुकवर्णाश्वो रथनेमिर्वृषध्वजः ॥३२०, सेना श्वेतवाहोऽयं वैकुण्ठस्तार्क्ष्यकेतनः । रामोऽयं नीलवर्णाश्वोऽस्यावामे तालकेतनः ।। नीलाश्वेन रथेनैष पाण्डुसूनुर्युधिष्ठिरः । भीमोऽयं भाति भीतिघ्नो विचित्ररथसंस्थितः ॥ ३२२ शक्रसूनुरयं श्वेततुरङ्गः कपिकेतनः । उग्रसेनः पुनरयं शुकतुण्डनिभैर्हयैः ॥ ३२३ जरानुरयं स्वर्णतुरगो मृगकेतनः । मेरुः कपिलरक्ताश्वः शिशुमार ध्वजस्त्वयम् || ३२४ काम्बोजैर्वाजिभिश्चायं सिंहलः सूक्ष्मरोमशः । पद्माभैर्वाजिभिश्चैष नृपः पद्मरथः पुरः ॥ ३२५ कृष्णाश्वोऽयमनावृष्टिर्गजकेतुश्चमूपतिः । एवं श्रुत्वा क्रुधाक्रान्तो युयुधे मागधश्विरम् || ३२६ तदा तौ मार्गणायायां टंकारारावपूरिते । चापे संरोप्य मुञ्चन्तौ सिंहाविव विरेजतुः ॥ विष्णुना वह्नबाणेन ज्वालितं मागधं बलम् । चक्रिणा वारिबाणेन शान्ति नीतं निजं बलम् ॥ कहा । उसने चिह्नपूर्वक सबका परिचय इस प्रकारसे दिया || ३१९ ॥ “ यह समुद्रविजय राजा है इसके रथ के घोडे सुवर्णवर्णके हैं और इसकी ध्वजा सिंह की है। यह राजा रथनेमि है, इसके रथके घोडे तोते के समान हरे रंगके हैं तथा इसके रथपर बैलकी ध्वजा है । सेनाके आगे यह कृष्णराजा है और इसके रथ के घोडे शुभ्रवर्णके हैं तथा इसकी ध्वजा गरुडके चिह्नकी है । यह राम-बलभद्र राजा है इसके रथ के घोडे नीलवर्णवाले हैं तथा इसके दाहिने बाजूपर इसका तालवृक्षका ध्वज है । ये पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर नीलाश्व जिसको जोडे हैं ऐसे रथसे शोभने लगे हैं। यह इन्द्रका पुत्र अर्जुन सफेत घोडेवाले थोंमें बैठा है तथा इसके रथके घोडे वानरचिह्नसे सुशोभित हैं । तथा भीतिको नष्ट करनेवाला यह भीम विचित्र रथमें बैठा है यह उग्रसेनराजा तोते की चोंच के समान लाल रंग घोडोंसे युक्त ऐसे रथमें बैठा है और इसका ध्वज वानरचिह्नका है । यह जरानामक राणीका पुत्र जरत्कुमार है। इसके घोडे सुवर्णरंगके हैं तथा इसका ध्वज हरिणोंके चिह्नोंका है। यह मेरु नामक राजा पिंगल और लाल रंगके घोडोंसे युक्त रथमें बैठा है तथा यह राजा शिशुमार ध्वजवाला है। जिसके रथको काम्बोज देशके घोडे जोडे हैं ऐसा सिंहलदेशका राजा 'सूक्ष्मरोमश' नामका है। यह आपके आगे खडा हुआ राजा पद्मरथनामक है तथा इसके घोडे दिवसविकासी कमलके समान रंगवाले हैं। कृष्णका सेनापति अनावृष्टि नामक है। इसके घोडे कृष्णवर्णके हैं और इसके ध्वजपर हाथीका चिह्न है ।" इस प्रकारसे राजाओं का परिचय सुनकर क्रोध से भरा हुआ मागधराजा - जरासंघ दीर्घकालपर्यन्त लडने लगा || ३२० - ३२६ ॥ उस समय वे दोनों ( कृष्ण और जरासंध ) टंकारध्वनि से पूर्ण ऐसे धनुष्यपर दोरके ऊपर वाणको जोडकर अन्योन्यके ऊपर फेंकते समय सिंहके समान शोभने लगे । श्रीविष्णुने अग्निबाणके द्वारा मागधका (जरासंधका ) सैन्य जलाया । तब चक्रवर्तीने जरासंधने जलबाण छोडकर अपना सैन्य शांत किया । पुनः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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