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________________ ३८० . पाण्डवपुराणम् पार्थेन पूरितं व्योम विशिखैर्जलदैरिव । शात्रवीयं बलं भङ्गं निन्ये तूलं च वायुना ॥९७ कर्णचापगुणं पार्थश्चिच्छेद सुधनुर्वहन् । स सारथिं रथं तस्य चूर्णयामास चञ्चलम् ॥९८ द्वादशात्मसुतस्तस्थौ स्थिरायां रथवर्जितः । तावच्छ@जयो जेतुं शत्रून्संप्राप संगरे ॥९९ दुर्योधनानुजः सोऽयं छादयशत्रुसंहतीः । शरैः सैन्यं समापूर्ण कुर्वाणो हि मृगारिवत् ॥ अभ्यागमागतं वीक्ष्य तं जगाद धनंजयः । याहि याहि रणाद्वाल किं तिष्ठसि ममाग्रतः।। मृगारिचरणाघातं सहते हरिणः किमु । तायपक्षस्य निक्षेपं क्षमते किं महोरगः ॥१०२ न मुञ्चामि शरं बाल तवोपरि विशक्तिक । तदा तेन विक्रुद्धेन विमुक्ताः पञ्चमार्गणाः ।। ते पार्थहृदये लग्ना भग्ना इव क्षणं स्थिताः । पार्थेन दशबाणेन स हतो गतवान्क्षितिम् ॥ कर्णानुजस्तदा प्राप विकर्णाख्योऽपकर्णयन् । मार्गणान्पार्थसंमुक्तान्रौद्रसंगरकारकः ॥१०५ अर्जुनः सारथिं हत्वा रथं तस्य बभञ्ज च । शरजालेन तं शीघ्रं छादयन्विफलीकृतम् ।। बीभत्साख्यो रणं प्राप कुरुसैन्यं विमर्दयन् । दधानो धन्वसंधानं कालरूप इवोन्नतः ॥१०७ हुआ दुर्योधनका छोटा भाई शत्रुजय दुःशासन शत्रुको जीतनेके लिये युद्धभूमिमें आया। बाणोंसे सैन्यको पूर्ण आच्छादित करता हुआ वह सिंहके समान आया। आक्रमण करने के लिये आये हुए दुःशासनको देखकर धनंजयने उसे कहा कि "हे बालक, तू रणसे चला जा,चला जा । मेरे आगे तू क्यों खडा है ? क्या सिंहके चरणका आघात हरिण सह सकता है ? गरुडके पक्षोंका आघात बडा सर्प भी क्या सहन कर सकता है? तू असमर्थ है अत एव तेरे ऊपर बाण नहीं छोडूंगा।" तब दुःशासन कुपित हुआ और उसने अर्जुनके ऊपर पांच बाण छोडे। वे अर्जुनके हृदय पर लग गये और मानो भग्न हुएसे क्षणपर्यन्त वहां रहे। तब अर्जुनने दशबाणोंसे दुःशासनको ताडन किया जिससे वह जमीनपर गिर कर मूर्छित हुआ ॥ ९७-१०४ ॥ अर्जुनके मोहनास्त्रसे कौरवसैन्यकी मूर्छा ] उस समय विकर्ण नामक कर्णका छोटा भाई अर्जुनके छोडे हुए बाणोंका प्रतीकार करके उससे भयंकर संग्राम करने लगा। अर्जुनने विकर्णके सारथिको मार कर उसका रथ तोडा। बाणसमूहसे उसे उसने आच्छादित किया और उसके बाण विफल कर दिये। धनुष्यका अनुसंधान करनेवाला और मानो कालका उन्नत-रूप धारण करनेवाला, बीभत्स यह अपर नाम जिसका है ऐसा अर्जुन कुरुसैन्यका मर्दन करता हुआ रणमें आया और उसने तत्काल बाणके द्वारा शत्रुमस्तक [विकर्णका मस्तक ] तोड दिया तब वह विकर्ण चिल्लाता हुआ यमके मंदिरमें जा पहुंचा। विकर्णका पतन देख करके कौरव-सैन्य भागने लगा। उस समय १ब, तूलेव वायुना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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