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________________ ३७४ पाण्डवपुराणम् गृहीत्वा तं नृपं चागात्स्वरथे व्यथयान्वितम् । जालंधरो यथा तायो भुजगं व्योम्नि भीषणम् जीवग्राहं गृहीतं तं विराटं धर्मनन्दनः । उवाचाकर्ण्य संकीर्ण शौर्येण विपुलोदरम् ॥३० रथं वाहय वेगेन तन्मोचय महाहवे । सकलं गोकुलं कुल्यबलं पश्यामि तेऽधुना ॥३१ विराटं संकटाकीर्ण बद्धं भूयिष्ठवन्धनैः । विमोच्य पूरय त्वं मे मनोरथं महारथिन् ॥३२ भावाक्यं समाकर्ण्य नत्वा तं विपुलोदरः । समुत्क्षिप्य महावृक्षं विवेश विषमाहवे ॥३३ कुर्वन्कलकलारावं वैवस्वत इवोन्नतः । मतङ्गज इवात्यर्थ दधाव विपुलोदरः ॥३४ गाण्डीवजीवनः पार्थो नकुलो विपुलाशयः । सहदेवो ययुस्तत्र निर्मर्यादाब्धयो यथा ॥३५ भीमो भीमाकृतिस्तावन्मर्दयन्सिन्धुरारथान् । एकादशशतं भक्त्वा रथानांस स्थितोरथी॥ पञ्चाशता स युक्तानि शतानि नव वाजिनाम् । जघान घनघातेन परिघातेन भूयसा ॥३७ नकुलो निःकुलीकुर्वन्वैरिणो युयुधे रणे । सहदेवः सह प्रौढैविपक्षः कृतवान्रणम् ॥३८ । तदा जालंधरः प्राप्तो धनुधृत्वा च पावनिम् । चिच्छेदाजिह्मगैीरो नभो वा मेघसंचयः॥ भीमोऽपि शरपातेन तत्सारथिमपातयत् । उत्सलय्य रथं तस्यारुरोह रणरङ्गवित् ॥४० युक्त अर्थात् पीडासे दुःखित हुए विराटराजाको पकडकर अपने रथमें ले गया । २७-२९ ॥ [ भीमके द्वारा जालंधरराजाका बंधन ] जालंधरने विराटको जीवंत पकड लिया है यह सुनकर धर्मनन्दन-धर्मपुत्र युधिष्ठिरने शौर्यसे युक्त भीमसे इस प्रकार कहा। "हे भीम, इस समय वेगसे रथको चलाओ और संपूर्ण गोकुलको छुडाओ। आज तेरे कुलका सामर्थ्य मैं देखना चाहता हूं ॥ ३०-३१ ॥ " संकटोंसे विरे हुए और अतिशय बंधनोंसे जकडे हुए विराटराजाको छुडाकर हे महारथिन् भीम, तुम मेरे मनोरथ पूर्ण करो।" भाईका वाक्य सुनकर भीमने उनको नमस्कार किया। और एक बड़े वृक्षको उखाडकर विषम युद्धमें प्रवेश किया, कलकल शब्द करनेवाला वैवस्वत-यमके समान उन्नत भीम हाथीके समान अतिशय जोरसे दौडने लगा। गाण्डीवही जिसका जीवनाधार है ऐसा अर्जुन तथा उदाराशय नकुल और सहदेव ये तीन भाई मर्यादाका उल्लंघन किये हुए समुद्रके समान उस रणमें प्रविष्ट हुए ॥ ३२-३५ ॥ भयंकर आकृतिके धारक भीमने रयों और हाथियोंका मर्दन किया अर्थात् उसने बहुतसे हाथी मारे और ग्यारहसौ रथ चूण कर दिये। पांचसौ रथ नष्ट किये और जिसका आघात प्रचण्ड है ऐसे परिघा नामक आयुधसे नौसौ पचास घोडोंको मार डाला। रणमें वैरियोंको कुलरहित करनेवाले नकुलने युद्ध किया। तथा प्रौढ शत्रुओंके साथ सहदेवने युद्ध किया ॥ ३६-३८ ॥ उस समय जालंधरराजा धनुष्य धारण कर भीमके पास आया और मेघसमूह जैसे आकाशको आच्छादते हैं वैसे उसने सरल गमन करनेवाले बाणोंसे भीमको आच्छादित किया ॥ ३९ ॥ भीमने भी बाणवृष्टि करके जालंधरराजाके सारथिको मार दिया। और रणरंगका ज्ञाता भीम उछालकर जालंधरके रथपर चढ गया। उसने धैर्य से जालं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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