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________________ २१२ पाण्डवपुराणम् पाण्डवाः क्रमतो भेजुर्ममन्तो भूतलं शुभम् । विराटविषये रम्यं विराटनगरं वरम् ।।२३० तत्र तैर्विहितो मन्त्रः स्वतन्त्रश्चित्रमानसैः । द्वादशाब्दावधिः पूर्णो जातोऽस्माकं महौजसाम् ।। एतावत्कालपर्यन्तं वनेचरवनेचराः । इव तस्थिम सन्मानधर्मशमविवर्जिताः ॥२३२ वर्षे केवलं कम्राः प्रच्छन्नाः स्वच्छमानसाः। तिष्ठामो दर्शयन्तोत्र स्वकौशल्यं जनोत्करान् ।। ज्येष्ठो जगौ भवाम्यत्र पुरोधा धर्मदेशकः । भीमोऽभाणीद्भवाम्याशु बल्लवो भोजनकृते ॥ पार्थः प्रार्थयते स्पष्टमहं नाटकनायकः । भूत्वा सुनर्तकीर्नित्यं नर्तयामि सुनर्तिताः ॥२३५ देहे च शाटकं धृत्वा निचोलं हृदयस्थले । बृहन्नडाभिधो भूत्वा तिष्ठामि शीलसंयुतः ॥२३६ नकुलः कलयामास वचो वाजिसुरक्षणे । तिष्ठामि स्थिरचेतस्कः सहदेवस्तदा जगौ ॥२३७ रक्षामि गोधनं धन्यं धनधान्यविवर्धकम् । द्रौपदी प्राह सन्मालाकारिणी च भवाम्यहम् ।। इमां सुरचनां चित्ते विरचय्य सुपाण्डवाः । स्वस्ववेषान्परित्यज्य यथोक्ताचारचारिणः॥ सर्वे कार्पटिका भूताः काषायवसनावहाः । महीशमन्दिरं जग्मुर्मनोनयननन्दनम् ।।२४० विराटभूपतिस्तत्र निहताशेषशात्रवः । बभूव भूरिभूमीशमौलिसन्मणिपूजितः ॥२४१ उस समय ज्येष्ठ-धर्मराजने कहा कि ' मैं धर्मोपदेश करनेवाला पुरोहित होकर यहां रहूंगा'। भीमने कहा कि 'मैं भोजन पकानेवाला 'बल्लव ' रसोइया होऊंगा। अर्जुनने स्पष्ट कहा कि 'मैं नाटक-नृत्यका नायक अर्थात् नृत्याचार्य होकर नर्तकियोंको हमेशा उत्तम नृत्य करनेवाली बनाऊंगा । शरीरमें साटक धारण कर हृदयपर निचोल धारण करूंगा' 'बृहन्नड' नाम धारण कर मैं शीलका रक्षण करता हुआ एक वर्षका काल व्यतीत करूंगा।' नकुलने कहा कि, 'स्थिरचित्त होकर मैं घोडोंकी सुरक्षा करूंगा'। सहदेवने उस समय कहा कि “ मैं धनधान्यकी वृद्धि करनेवाले उत्तम गोधनका रक्षण करूंगा। और द्रौपदीने कहा कि “ मैं उत्तम पुष्पमाला बनानेवाली होऊंगी।". इस प्रकारकी सुरचना उन पाण्डवोंने मनमें निश्चित की, तथा अपना अपना पूर्ववेष उन्होंने छोड़ दिया और अपने उपर्युक्त आचारानुरूप वे रहने लगे। वे सब ‘कार्पटिक' हुए काषाय वस्त्र उन्होंने धारण किये। मन और नेत्रोंको आनंदित करनेवाल राजाके मन्दिरको गये ॥ २३०-२४० ॥ जिसने सर्व शत्रुओंको नष्ट किया है, और जो अनेक राजाओंके किरीटोंके मणियोंसे पूजा जाता है ऐसा विराट नामक राजा वहां रहता था। उसके पास पाण्डव आकर रहे । विराटने उनका आदर किया। निर्मल मनवाले विज्ञानयुक्त, सुंदर आकारवाले वे पाण्डव अपना ज्ञान धर्ममार्गमें तत्पर, मर्यादाके पालक विराट राजाको दिखाने लगे ।। २४१-२४३ ॥ पुरोहितादिकोंके सत्कार्य करनेवाले पाण्डवोंके बारह महिने व्यतीत हो गये। मालाकारिणीका कार्य करने ब.मनोल्हादप्रदायकम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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