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________________ ३. कनकध्वजभूपस्य जपमन्त्रविधानतः । सप्तमेजहि कथंचिच्च कृत्या सिद्धिमगात्तदा ॥२०९ सागतादेशमिच्छन्ती साधकच्छन्दवर्तिनी । ययाचे परमादेशं कनकध्वजभूपतिम् ॥२१० अतुला विपुला शक्तिर्भवत्याश्चेत्त्वरा भृशम् । अटित्वा झटिति प्रीते जहि तान्पञ्च पाण्डवान् ।। लब्धादेशा क्रुधा तत्र सा चचाल सुपाण्डवाः । पतिता आसते यत्र मच्छों प्राप्ता मृता इव ।। तावता शबरीभूय धर्मदेवः शुचाकुलः । आयासीत्पाण्डवाभ्यणे पाण्डवान्भाषयन्मृतान् ॥ इतस्ततः परावृत्य गतजीवाञ्शवाकृतीन् । ज्ञात्वा कृत्यापि प्रोवाच शबरं शाम्बरीमयम् ॥ कनकध्वजभूपेन प्रेषितो हन्तुकाम्यया । अहं पाण्डवभूपालान्कुरुजाङ्गलनायकान् ।।२१५ इमे मया मृता दृष्टा दैवतो वद सत्वरम् । किं कर्तव्यं किरातेश समाकयेति सोऽवदत् ।। हताशयं जहि त्वं तं गत्वा सत्वरमञ्जसा । श्रुत्वा सा निर्गता हन्तुं तं खलं विफलोदयम् ॥ पतित्वा तस्य शिरसि सा जघानाघविनितम् । कनकध्वजभूपालमदि वाशनिरूर्जितम् ॥२१८ कृत्या वकृत्यमाकृत्य जगाम स्थानमात्मनः । धर्मोऽथ निखिलं वृत्तं निश्चिकायासुरीभवम् ।। दिन कथंचित् रीतिसे वह कृत्या सिद्ध हो गई। वह कृत्या साधकके च्छंदानुसारिणी थी। साधककी आज्ञाको चाहनेवाली वह कृत्या कनकध्वजराजासे उत्तम आज्ञाकी याचना करने लगी। कनकध्वजराजाने कहा हे कृत्ये, यदि तुझमें अनुत्तम उत्कृष्ट और विपुल सामर्थ्य हो तो त्वरासे और जल्दीसे जाकर उन पांचों पाण्डवोंको मार दे। जिसको कनकध्वजराजाकी आज्ञा मिली है, ऐसी वह कृत्या जहां पाण्डव मृतके समान मूछित पडे थे वहा क्रोधसे आ गई। उतनेमें धर्मदेव भिल्लका रूप धारण करके शोकसे व्याकुल हुआ और पाण्डवोंके समीप आया। उनको देखकर पाण्डव मर गये ऐसा वह बोलने लगा। तथा उनको इधर उधर लौट कर प्राणरहित और शवाकार होगये ऐसा उसने जाना और वह बोलने लगा कि पाण्डव मर गये हैं । कृत्या भी मायारूपधारी भिल्लको कहने लगी “ कनकध्वजराजाने कुरुजांगल देशके स्वामी पाण्डवोंको मारनेके लिये मुझे भेज दिया है और दैवयोगसे ये तो मर गये है, यह मैंने देखा। " हे किरातेश-भिल्ल नायक, इस समय मुझे क्या करना होगा सो सत्वर कहो" ऐसा पूछनेपर वह कहने लगा-हे देवि तुम सत्वर जाकर दुष्टाभिप्रायवाले कनकध्वजराजाको निश्चयसे मार डालो। किरातपतिका भाषण सुनकर जिसका मनोभिप्राय विफल हुआ है ऐसे उस राजाको मारने के लिये निकली और जैसे वज्र उंचे पहाडपर गिर कर उसे चूर्ण कर देता है वैसे पापोंसे विघ्नयुक्त ऐसे कनकध्वजराजाके मस्तकपर प्रहार कर कृत्याने उसे मार डाला। कृत्या अपना कृत्य करके अपने स्थानको चली गई। धर्मदेवने उस असुरीका संपूर्ण वृत्तान्त निश्चित जान लिया ॥२०९:२१९॥ धर्मदेवने सर्व राजाओंको अमृतबिंदुओंसे सिंचित कर मानो सुखसे सोये हुए उनको उठाया। उस समय धर्मराजने उस किरातको "तू कौन है ऐसा प्रश्न किया जैसे प्राणियोंको उनका शुभ कर्म उपकारक होता है वैसे तू हमारा उपकारक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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