SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 392
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षोडशं पर्व ३३७ द्वावक्षौ दोलयन्तस्ते कौरवाः शतसंख्यया । धर्मपुत्रेण धैर्येण रेमिरे छअसंगताः ॥१०५ कौरवाणां शतं पुत्रा द्वावक्षौ पातयन्त्यलम् । आज्ञाकराविवात्यन्तं दासेरौ सुष्ठु शिक्षितौ ॥ भीमहुंकारनादेन पेततुस्तावितस्ततः। न स्थिरं तस्थतुर्भीताविव भीमस्य नादतः॥१०७ व्याजेन वेश्मतो वायुपुत्रं ते निरकासयन् । पुन समारब्धं छलेन च्छलवेदिभिः॥१०८ धर्मपुत्रस्तु धर्मात्मा छद्मना तेन निर्जितः। हारितं धर्मपुत्रेण सर्वस्खं स्वविरोधकम् ।।१०९ केयूरकुण्डलस्फारहारहाटककङ्कणम् । धनं धान्यं सुरत्नानि मुकुटं तेन हारितम् ॥११० पुनर्देशो विशेषेण शेषस्तेनैव हारितः। तुरंगमाश्च मातङ्गा रथाः खलु पदातयः ॥१११ । अमत्राणि पवित्राणि सर्वः कोशः सुखावहः । हारयित्वेति संरब्धं द्यूतं धर्मात्मजेन च।।११२ योषितः सकलाः सर्वे भ्रातरस्तु विशेषतः । पणीकृत्य स्वखेलार्थ दर्शितास्तेन भूभुजा ॥ तावता पावनिः प्राप्तो हुंकारमुखराननः । हारितं निखिलं पश्यन् धृतं शेषं व्यलोकयत् ।। राजन्युधिष्ठिर भ्रातीमोऽभाणीद्भयावहः । किमिदं किमिदं द्यूतं त्वयारब्धं सुहानिकृत् ।। कौरवोंके सौ पुत्र दो पासे फेंकते थे अर्थात् दो पासोंसे खेलते थे । वे दो पासे अच्छी तरहसे पढाये गये और अतिशय आज्ञाधारक दो नौकरोंके समान थे। परंतु भीमके हुंकारनादसे वे पासे इतस्ततः पडने लगे, मानो भीमके प्रचंड नादसे भयभीत होकर वे स्थिर नहीं होते थे। यह परिस्थिति देखकर कुछ निमित्तसे कौरवोंने द्यूतगृहसे भीमको बाहर किया और फिर छल जाननेवाले दुर्योधनादिक छलसे-कपटसे द्यूत खेलने लगे। धर्मात्मा धर्मपुत्र उस दुर्योधनके द्वारा कपटसे जीतलिया गया। अपनेको छोडकर धर्मराज सब हार गया। केयूर, कुण्डल, तेजस्वी हार, सुवर्णके कंकण, धन, धान्य, रत्न और मुकुट सब हार गया। पुनः संपूर्ण देश भी विशेषरीतिसे वह हार गया। घोडे, हाथी, रथ और पैदल, सर्व पवित्र पात्र और सुखदायक धनकोष, ये सब हार कर भी धर्मगजने द्यूत खेलना बंद नहीं किया। संपूर्ण स्त्रियां और अपने सब भाई उस राजाने द्यूत खेलनेके लिये पनमें लगाता हूं ऐसा दिखाया । इतने में हुंकारसे जिसका मुख वाचाल बना है ऐसा भीम वहां आया। उसको धर्मराजने सब पदार्थ द्यूतमें हारे हैं ऐसा दीख पडा। पनके लिये कुछ वस्तु, जो बची हुई थी लगाई है ऐसा भीमसेनने देखा और बोला, “हे राजन् , हे भाई युधिष्ठिर, आपने यह हानि करनेवाला द्यूत क्यों आरंभा है" ॥१०५-----११५।। [ द्यूतक्रीडाके दोष ] द्यूतके खेलनेसे लोकापवाद प्राप्त होता है। जिससे संपूर्ण यश नष्ट होता है। तथा पदपदपर सर्व धनहानि होती है। द्यूतसे सर्व प्रकारके अनर्थ होते हैं। द्यूतसे इहलोकका नाश होता है और यह द्यूत प्राणियोंके परलोकका पूर्ण नाश करता है । सब व्यसनोंमें यह द्यूत प्रथम है और इससे दुर्धर दुःख प्राप्त होता है। वस्तुका स्वरूप जाननेवाले प्रकाशमान ज्ञानके धारक मुनियोंने इस द्यूतके ऊपर अच्छा प्रकाश डाला है। जैसे मद्य पीनेवालोंका सदा ... पां. १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy