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________________ पोडशं पर्व ३३५ पश्य पश्य मुरारे त्वं बाणतः सुरसंततिम् । भनज्म्यहं च भक्ष्यामि यशोराशिं यतः स्वयम् ॥ दावानलमहावाण यथेष्टं तिष्ठ निष्ठुर । शीघ्रण सुरसंघातं घातयामि सुघस्मरम् ॥८२ इत्युक्त्वा स करे कृत्वा गाण्डीवं पाण्डुनन्दनः । ज्यायामारोप्य संचके टंकारबधिरं जगत् ।। तटुंकाररवं श्रुत्वा यमहुंकारसंनिभम् । तत्क्षणं सुरसंघाता भेणुर्यद्दर्शितं भयम् ॥८४ किरीटिन्कपटं कृत्वा वनं दग्ध्वा सुराग्रतः । क यास्यसि सुपर्णाग्रे बलवान्पन्नगो यथा ॥८५ अथोग्रधारया देवा ववृषुः क्षुब्धमानसाः । छादयन्तो धरां सर्वां तदिच्छां छेत्तुमिच्छवः।।८६ तदा स शरसंघातविरच्य वरमण्डपम् । वृष्टिं कर्तुं न दत्ते स्म जज्वाल ज्वलनोऽधिकम् ॥८७ द्विगुणस्त्रिगुणस्तूर्ण स ववर्ष चतुर्गुणम् । मेघौषो विनसंघातं चिकीर्षुश्च दवानले ॥८८ तावता केशवः क्रुद्धो वायुवाणं करे पुनः । कृत्वा मुमोच शीघ्रण त्रासयन्तं घनाघनान्।।८९ धनंजयस्य बाणेन तदा नेशुः सुरासुराः । यथा ताय॑सुपक्षण सफूत्काराः फणीश्वराः ॥९० तदा सुराः समभ्येत्य मघवानं महेश्वरम् । अचीकथन्ववृत्तान्तं तत्पराभूतमानसाः॥९१ देव खण्डवनं दग्धं तरुखण्डसमाश्रितम् । भवत्रीडाकृते योग्यं पार्थेन विफलीकृतम् ॥९२ नष्ट करता हूं और उनका यशःसमूह भक्षण करता हूं ॥ ७९-८१ ॥ हे निष्ठुर दावानल महाबाण तुम यथेच्छ वनको भक्षण करते हुए तिष्ठो । मैं शीघ्र इन भक्षक देवसमूहको नष्ट करूंगा। ऐसा बोलकर पाण्डुपुत्र अर्जुनने हाथमें गाण्डीव धनुष्य धारण कर उसे दोरीपर चढाया और उसके टंकारसे जगतको बधिर किया। यमके हुंकारतुल्य उस गाण्डीव धनुष्यका टंकारशब्द सुनकर देव अर्जुनसे कहने लगे, कि क्या हमें तू इसके टंकारसे भय दिखाता है ? हे अर्जुन हम देखेंगे, कि कपटसे वन जलाकर तू हम देवोंके आगे कहां भाग जाता है। गरुडके आगे जैसे बलवान् भी सर्प नहीं चल सकता हैं, वैसे तू हमसे बचकर कहां जाता है हम देखेंगे ॥ ८२-८५ ॥ इसके अनंतर क्षुब्ध अन्तःकरणसे देवोंने उपधारासे जलवृष्टि की। अर्जुनकी इच्छाको तोडनेकी इच्छासे उन्होंने संपूर्ण पृथ्वीको जलसे व्याप्त किया। उस समय अर्जुनने बाणसमूहसे उत्तम मंडपकी रचना की और जलवृष्टिको उसने प्रतिबंध किया जिससे अग्नि अधिक प्रज्वलित हुआ। दावानलको विघ्नसमूह उत्पन्न करनेकी इच्छा करनेवाला मेघसमूह शीघ्र द्विगुण, त्रिगुण और चतुर्गुण जलवृष्टि करने लगा ॥ ८६-८८ ॥ इतनेमें क्रुद्ध होकर केशवने अपने हाथमें मेघोंको डरानेवाला वायुबाण लेकर उसे शीघ्र छोड दिया। जैसे गरुडके पक्षसे फूत्कारवाले सर्पराज भाग जाते है वैसे धनंजयके बाणसे सुरासुर भाग गये ॥८९-९०॥ तब पराभूत चित्तवाले सर्व देव आकर सब देवोंके महास्वामी सौधर्मेन्द्रके पास जाकर अपनी सर्व वार्ता कहने लगे - हे देव आपकी क्रीडाके लिये योग्य अनेक वृक्षोंका आधारभूत खाण्डववन अर्जुनने व्यर्थ किया है, अर्थात् जलाकर भस्म किया है। जिससे हमारा मन कुंठित हुआ, कर्तव्यमूढ हो गया है। हमको वहांसे हठसे हटाया हैं। हम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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