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________________ ( ३४ ) दिया । दूतसे यादवोंका अभिमानपूर्ण उत्तर पाकर जरासंघ द्रोणाचार्य, भीष्म और कर्ण आदि महायोद्धाओं के साथ कुरुक्षेत्रकी ओर चल दिया' । 1 कृष्णने दूतको भेजकर कर्णसे निवेदन किया कि आप पाण्डुराजाके पुत्र हैं, युधिष्ठिर आदि पांच पाण्डव आपके सहोदर हैं। आप यहां आइये और कुरुजांगलका राज्यग्रहण कीजिये 1 कर्णने उत्तर में इसे न्यायमार्ग के प्रतिकूल बताकर अस्वीकार कर दिया । वह दूत यहांसे जाकर जरासंघके पास पहुंचा । उसने जरासंध से यादवोंके साथ सन्धि करनेकी अभिलाषा प्रकट करते हुए जिनोक्त वचनद्वारा भविष्य की इस प्रकार सूचना दी- युद्ध में कृष्णके द्वारा आपकी मृत्यु होगी । साथ ही शिखण्डीसे गांगेय, धृष्टार्जुन से द्रोणाचार्य, युधिष्ठिरसे शल्य, भीमसे दुर्योधन, अर्जुनसे जयद्रथ और अभिमन्युसे कुरुपुत्रोंका मरण अवश्यम्भावी है । उक्त सूचना देकर दूत वापिस द्वारिकापुरी पहुंच गया। उसने सत्र समाचार देते हुए कृष्णको जरासंध के कुरुक्षेत्र में पहुंचने की सूचना कर दी है। १.६. पु. ५०, ३२-४८. २ हरिवंशपुराणके अनुसार जब दोनों सेनायें कुरुक्षेत्र में आ पहुंची तब व्याकुलताको प्राप्त हुई कुन्ती कर्णके पास गई । उसने रुदन करते हुए दोनोंके बीच में माता-पुत्रका सम्बन्ध प्रगट किया और कहा कि हे पुत्र ! उठो जहां तुम्हारे अन्य सब भाई एवं कृष्ण आदि सम्बन्धी जन उत्कण्ठित होकर स्थित हैं वहां चलो। इस प्रकार के माता के वचनोंको सुनकर यद्यपि कर्ण भ्रातृस्नेहके वशीभूत गया, फिरभी उसने मातासे निवेदन किया कि यद्यपि माता, पिता व बन्धुजन दुर्लभ अवश्य है, परन्तु स्वामिकार्यके उपस्थित होनेपर उसे छोड़कर बन्धुकार्य अनुचित तथा निन्द्य है । इसलिये स्वाभिकार्य होनेसे अन्य योद्धाओंके साथ युद्ध करना, यह मेरा प्रथम कार्य है । हां, युद्ध समाप्त होनेपर यदि हम जीवित रहे तो हे माता ! निश्चितही हम सब भाईयोंका समागम होगा । आप जाकर यही निवेदन भाईयोंसे भी कर दें। इस प्रकार कह कर कर्णने माताकी पूजा की । कुन्तीने भी जाकर वैसाहि किया । ह. पु. ५०, ८७ - १०१. दे. प्र. पां. च. के अनुसार भी कृष्णने समझाकर कर्णको पाण्डव पक्षमें लानेका प्रयत्न किया था, परन्तु उसने मित्र ( दुर्योधन ) के साथ विश्वासघात करके पाण्डव पक्षमें आना स्वीकार नहीं किया । फिरभी उसने कृष्ण के द्वारा नमस्कारपूर्वक माता कुन्तीसे यह निवेदन किया था कि मैं अर्जुनको छोड़कर शेष चार भाईयोंका घात नहीं करूंगा ( ११, ३२०-३५७ ) । ३ हरिवंशपुराण में यह भविष्यवाणी नहीं उपलब्ध होती । वहां यह कहा गया है कि जब कृष्णादिकने जरासंघके दूतको वापिस किया तब मंत्रियोंने मंत्रणा कर समुद्रविजयसे निवेदन की जैसी युद्ध की साधनसामग्री हमारे पास है वैसीही जरासंघके पासभी है । इसलिये विश्वकल्याणके लिये इस समय सामका प्रयोग करना उचित है । इसके लिये जरासंधके पास दूत भेजना चाहिये । समुद्रविजयने मंत्रियोंकी इस सम्मतिको उचित समझा और तदनुसार लोहजंघ दूतको जरासंघके पास भेज दिया । वह शूरवीर दूत सेनाके साथ चल.कर पूर्व माल पहुंचा, उसने वहां पड़ाव डाल दिया । इतने में वहां वनमें तिलकानन्द एवं नन्दक नामके मासोपवासी दो मुनि आये । लोहजंधने उन्हें नवधा भक्तिपूर्वक आहार दिया । इससे वहां पंचाश्चर्य हुए । तब भूतलपर वह स्थान देवावतार नामक तीर्थस्वरूप से प्रसिद्ध हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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