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________________ २२६ पाण्डवपुराणम् सुमुहूर्ते शुभे लगेऽधिवेदि स च मण्डपे । पाणिग्रहणमाभेजे द्रौपद्याः खचरीसमम् ॥२१९ दखनुः सुन्दरध्वानाः पटहाः प्रकटास्तदा । नेदुर्दुन्दुभयो नित्यं ननृतुर्नर्तकीगणाः ॥२२० संमानिता महीशाना महीशेन महात्मना । द्रुपदेन सुवस्त्रायैर्भूषणैर्वरवस्तुभिः ॥२२१ तद्विवाह समावीक्ष्य भीष्मकर्णादिभूमिपाः । स्व स्वं मन्दिरमासेदुः सुन्दरं युवतीजनैः ॥२२२ चतुरङ्गबलोपेताः पाण्डवाः कौरवास्तदा । हस्तिनागपुरं चेलुश्चञ्चलाश्चतुराश्च ते ॥२२३ ।। उत्तोरणं महाकुम्भशोभाभ्राजिष्णुमन्दिरम् । विविशुः सर्वशोभाढ्यं पुरं ते पाण्डुनन्दनाः ॥ या संशुद्धा विबुधशुभधीः शीलसंपत्समेता दीप्यद्रपा वरगुणनरं सेवते पञ्च नैव।। तत्संसक्ता भवति हि सती कथ्यते चेत्कथं सा साध्वीनां वै प्रथममुदिता द्रौपदी वंशभूषा ॥ २२५ कश्चिल्लोको वदति समदो द्रौपदी दिव्यमाप्य भ; पञ्चाप्यनुमतिगता सेवते यान्सुशीला । जिनका ध्वनि सुन्दर है ऐसे पटह उस समय प्रगट बजने लगे। नगारे बजने लगे और नर्तकियोंका समूह नाचने लगा। महात्मा द्रुपद राजाने वस्त्रादिक, भूषण और उत्तम वस्तुओंसे राजा ओंका सन्मान किया। द्रौपदी और अर्जुनका विवाह देखकर भीष्म, कर्ण आदि राजगण अपनी स्त्रियों के साथ अपने अपने सुन्दर मन्दिरोंको चले गये। हाथी, घोडे, रथ और पैदल ऐसे चतुरंग सैन्यके साथ उस समय चंचल और चतुर पाण्डव तथा कौरव हस्तिनापुरको चले गये॥२१७-२२३।। [ द्रौपदीशीलप्रशंसा ] जिसका तोरण ऊंचा है, महाकुंभकी शोभासे जिसके मंदिर सुंदर दीखते हैं, संपूर्ण शोभापूर्ण ऐसे हस्तिनापुरमें पाण्डुपुत्रोंने प्रवेश किया ॥ २२४ ॥ जो अतिशय शुद्ध है, जो चतुर और शुभमतिवाली है, जिसकी शील-संपदा पूर्ण है, जिसका रूप तेजस्वी है, ऐसी द्रौपदी उत्तम गुणोंका धारक जो अर्जुन उसकाही वह सेवन करती थी अर्थात् वह अर्जुनही की पत्नी थी। वह युधिष्ठिरादि पांच पाण्डवोंकी पत्नी नहीं थी। पांचोपर यदि वह आसक्त हो जाती तो वह 'सती' कैसे मानी जाती ? पति और जनकके वंशोंका अलंकाररूप यह द्रौपदी साध्वीस्त्रियोंमें प्रथम अर्थात् श्रेष्ठ कही गई है।" २२५॥ कोई उन्मत्त लोक कहते हैं, कि सुशील द्रौपदी अपने पतिकी अनुमतिसे दिव्य करके पांचों पाण्डवोंका सेवन करती थी। जिनकी चतुर बुद्धि है ऐसे पांच पाण्डव एक द्रौपदीमें आसक्त थे यह बात कैसी योग्य है ? दरिद्रियोंकी भी पत्नी सदैव भिन्न भिन्न होती है ॥२२६॥ यदि द्रौपदी पांच पाण्डवोंमें आसक्त हो जाती,तो किस प्रकारसे उसमें सतीपना आता इसका विमलमतिबालोंने मनमें विचार करना चाहिये । उत्तम धैर्ययुक्त जिनकी बुद्धि है ऐसे सजन लोक उस द्रौपदीके साध्वीपनाकी सिद्धि करें। परंतु जो अपने मतमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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