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________________ पञ्चदशं पर्व ३१७ बचोहरो विनीतात्मा वीक्ष्येत्वा द्रुपदं जगौ । मन्मुखेन वदन्त्येते नृपा इति समुद्धताः ॥११९ द्रोणे दुर्योधने कर्णे यादवे मगधेश्वरे । स्थितेष्वेतेषु भूपेषु कन्ययाकारि दुर्णयः ॥१२० अयमज्ञातदेशीयो वाडवो वडवो यथा । अतृप्तस्तु कथं याति कन्या लात्वा नृपे स्थिते ॥१२१ अस्मै वाथ वितृप्ताय काञ्चनं रत्नमुत्तमम् । दत्चैनमृजुभावेन विसर्जय सुसजितः ॥१२२ । नृपयोग्यामिमां कन्यां यच्छ भूपाय भूमिप । अथवा संगरे सजः सद्यो भव नृपैः समम् ॥१२३ द्रपदः कोपतोऽवादीन युक्तमिति भाषणम् । नृपाणां न्याययुक्तानां स्वयंवरविदां सदा।।१२४ अयमेष वरः साध्व्या अस्या भूमिसुरो महान् । स्वयंवरविधौ लब्धो नान्यथा क्रियते मया। तुमुले तूलसादृश्ये कोऽधिकारो नृपेशिनाम् । यतः स्वयंवरे लब्धे नीचो वान्यः पतिः स्त्रियाः॥ संगरे संगरो योग्यो न तेषां तत्र चेन्मतिः । दास्यामि संगरातिथ्यं वितथोत्पथपातिनाम् ।। इत्याकर्ण्य क्षणाद्दतश्चर्करीति स्म भूपतीन् । विज्ञप्तिं भूपसंदिष्टां परावृत्य परार्थवित् ॥ १२८ सुलक्षण दूत द्रुपद राजाके पास भेज दिया। विनयशील वह दूत द्रुपदके पास जाकर और उसे देखकर " मेरे मुखसे ये उद्धत राजा इस प्रकारका भाषण कर रहे हैं ऐसा बोला । द्रोण, दुर्योधन, कर्ण, यादव और मगधाधीश जरासंध ऐसे अनेक भूप स्वयंवरमंडपमें रहते हुए कन्याने यह मर्यादाके विरुद्ध कार्य किया है, अर्थात् ब्राह्मणको वरना यह कार्य नियमबाह्य हुआ है। जिसका निवासदेश अज्ञात है ऐसा यह ब्राह्मण वडवानलके समान अतृप्तही रहेगा। हम देखेंगे, कि यह सब राजसमाजके समक्ष कन्याको उठाकर कैसे ले जावेगा ? अथवा इस अतृप्त ब्राह्मणको सोना और उत्तम रत्न देकर सरलभावसे सुसज्जित होकर आप भेज दो। और राजाके लिये योग्य ऐसी यह कन्या किसी राजाको देदो। यदि यह विचार पसंद न हो तो रणमें राजाओंके साथ लडनेके लिये तत्काल सज्ज होना पडेगा" ॥११८-१२२॥ दूतका भाषण सुनकर द्रुपद राजाने कोपसे कहा कि स्वयंवरकी पद्धति जाननेवाले न्याययुक्त राजाओंके द्वारा ऐसा भाषण किया जाना कभीभी युक्त नहीं है। [द्रपदने प्रत्युत्तर दिया ] यह महान् प्रभावी ब्राह्मण इस साध्वी कन्याका वर है और इसने स्वयंवरविधिमें इसे प्राप्त किया है। अर्थात् मेरी साध्वी कन्याने इसको वरा है इस न्याय्य कार्यमें मैं विपर्यास करना नहीं चाहता हूं। इस समय युद्ध करना कपासके समान महत्त्वहीन है । ऐसा महत्त्वहीन न्यायरहित युद्ध करनेमें राजाओंको क्या अधिकार है। स्वयंवरमें कन्या जिसे वरती है यदि वह नीच अथवा उच्च हो वह उसका पति है। इसलिये युद्धमें ऐसी प्रतिज्ञा करना राजाओंको योग्य नहीं है। अर्थात् राजा यदि युद्ध के लिये तैयार होंगे, तो उनका तैयार होना अयोग्य है, और उनका युद्ध करनेका यदि विचार होगा तो असत्य और कुमार्गमें पडनेवाले इन राजाओंकी मैं युद्धकी पाहुनगत करूंगा, अर्थात् इनके साथ मैं लडूंगा ॥ १२३-१२७ ॥ द्रुपद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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