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________________ पाण्डव अजेय ह, उनका अल्पायुमें मरण नहीं हो सकता, वे चरमशरीरी हैं। मुनिमहाराजने मुझसे कहा था कि राज्यका भोक्ता युधिष्ठिर होगा, पश्चात् वह तप करके शत्रुञ्जय पर्वतसे मुक्तिको प्राप्त करेगा।" दुर्योधनकी प्रेरणासे विराट नरेशके गोधनका हरण व युद्ध उस समय जालंधर राजाने दुर्योधनसे विराट राजाका मानमर्दन कर उसके विशाल गोकुलके अपहरण करनेकी इच्छा प्रगट की । दुर्योधनने प्रशंसा कर उसे सेनाके साथ वहां भेज दिया। वहां जाकर उसके द्वारा गोधनका अपहरण किये जानेपर परस्पर युद्ध प्रारम्भ हो गया । इस युद्धमें विराट राजाकी सहायता कर पाण्डवोंने शत्रुको पराजित किया । तब दुर्योधन स्वयं सेनासे सुसज्जित हो युद्धार्थ विराट नगर आयो । उसे आया देखकर विराट राजाके पुत्रने कायरता प्रगट की। तब अर्जुनने अपना परिचय देकर उसे स्थिर किया व अपना सारथी बनाया । इस युद्धमें अर्जुनने साक्षर बाणद्वारा गांगेयको अपना परिचय दिया। उसे कर्ण, भीष्मपितामह और द्रोणाचार्य आदिसेभी युद्ध करना पडौं । अन्तमें विजय अर्जुनको प्राप्त हुई । इससे प्रसन्न होकर विराट राजाने अपनी अज्ञताके लिये क्षमा याचना करते हुए अर्जुनसे अपनी पुत्रीके साथ विवाह करनेकी प्रार्थना की। अर्जुनने उसे अपने पुत्र अभिमन्युको देनेके लिये कहा ( १८, १६१-१६३ ) । तदनुसार विराट राजाने अभिमन्युके साथ पुत्रीका विवाह कर दिया। विवाहप्रसङ्गपर कृष्ण व बलभद्र आदि सभी सम्बन्धी सुजन विराट नगर जा पहुंचे थे। तत्पश्चात् पाण्डव कृष्णके साथ द्वारावती १ यह कथन हरिवंशपुराणमें नहीं पाया जाता। २ दे. प्र. पां. च. के अनुसार वृषकपर मल्लके मारे जानेपर उसके घातक सूपकारको भीम होनेका अनुमान कर दुर्योधनने कर्ण, दुःशासन, द्रोणाचार्य और गांगेय आदिके साथ मिलकर विचार किया और तब वह सेनाके साथ विराट नगरकी ओर गया (दे. प्र. पां. च. १०, २१७-२३३ ) । चम्पूभारतके अनुसार गुप्तचरोंसे कीचकादिकोंके वधका समाचार ज्ञातकर दुर्योधनने विराट नगरीमें पाण्डवोंके स्थित होनेका अनुमान किया और उनके अज्ञातवास व्रतको भंग करनेके लिये त्रिगत देशके अधिपति सुशर्माको गोधन हरणार्थ वहां भेजा । चं. भा. ६-८५. ३ दे. प्र. पां. च. (१०, ३२३-३४१) के अनुसार स्वयं विराटपुत्र उत्तरने अपने युद्धसे विमुख होने और बृहन्नट ( अर्जुन) द्वारा धैर्य दिलाकर सारथि बनाये जानेका वृत्तान्त विराट राजासे कहा है । चम्पूभारत (७, ९-३३) में भी प्रायः ऐसाही वृत्त पाया है। ४ ततः किमपि बीभत्सु-शरैराकुलतां गतौ । द्वावपि द्रोण-गाङ्गेयौ रणाग्रादपसस्रतुः ॥ दे. प्र. पां. च. १०-३६७. ५ अर्जुनो मे सुतां कन्यामुत्तरामध्यजीगमत् । तामस्यैवोपदां कुर्वे चेत् प्रसीदस्यनुज्ञया ।। पश्यत्यास्यं ततो ज्येष्ठबन्धौ बीभत्सुरभ्यधात् । उत्तरा देव ! मे शिष्या सुतातुल्यैव तन्मम ।। विराटः कुरुवंश्यैस्तु यदि स्वाजन्यकाम्यति । सौभद्रेयोऽभिमन्युस्तां तदुद्वहतु मे सुतः।। दे. प्र. पां. च १०, ४४१-४४२. चम्पूभारत ७-७२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002721
Book TitlePandava Puranam
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorJindas Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1954
Total Pages576
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Mythology, Story, & Biography
File Size15 MB
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